बटाला में मुस्लिम अबादी का गवाह मियां मोहल्ला
बटाला शहर का मुस्लिम धर्म से गहरा नाता है।

संजय तिवारी, बटाला
बटाला शहर का मुस्लिम धर्म से गहरा नाता है। इस शहर की बुनियाद भी हिदू धर्म से मुस्लिम बने राजा रामदेउ भट्टी ने रखी थी। इस तरह बटाला वर्ष 1465 से 1947 तक मुस्लिम बहुल शहर रहा। बटाला शहर के मियां मोहल्ले में 100 फीसद आबादी मुस्लिम की होती थी और आज भी इस मुहल्ले का नाम मियां मोहल्ला है।
बटाला शहर का मियां मोहल्ला शहर के एक प्रसिद्ध मियां परिवार से जाना जाता है। बादशाह शाहजहां के शासनकाल में बटाला शहर में एक काजी हुआ था, जिसका नाम खान बहादुर सैयद इनायत-उल-शाह था। उनका एक पुत्र सैयद मुहम्मद फाजिल-उद-दीन कादरी था। इस्लामिक दुनिया में उनका बहुत सम्मान था। उन्होंने बटाला के मियां मोहल्ले में एक कादिरिया फाजलिया दरगाह की स्थापना की और अपने समय में सूफी दरवेश के रूप में प्रसिद्ध हुए। 1711 में बाबा बंदा सिंह बहादुर ने पहली बार बटाला पर विजय प्राप्त की
औरंगजेब के शासनकाल के दौरान सैयद मुहम्मद फाजिल-उद-दीन ने बटाला शहर में एक लंगरखाना और मदरसा-ए-फजलिया की स्थापना की। वर्ष 1711 में बाबा बंदा सिंह बहादुर ने पहली बार बटाला शहर पर विजय प्राप्त की। उन्होंने युद्ध के दौरान मदरसे पर भी कब्जा कर लिया था। मदरसे को बाद में मुगल बादशाह फर्रुखशीयर द्वारा फिर से बनाया गया। मदरसे के तत्कालीन प्रमुख सैयद गुलाम कादिर को दरगाह के लिए जागीर घोषित किया गया। महाराजा रणजीत सिंह के दरबार की सैयद अहमद शाह भेजते थे खुफिया जानकारी
कादिरिया फाजलिया के शुरू से ही कोर्ट में ब्रिटिश सरकार के साथ अच्छे संबंध थे। जब 18वीं शताब्दी की शुरुआत में पंजाब में शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का राज कायम हुआ तो मियां परिवार के तत्कालीन उत्तराधिकारी सैयद अहमद शाह ब्रिटिश सरकार के सहायक साबित हुए। सैयद अहमद शाह का लुधियाने में ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेंट लेफ्टीनैंर मुरे और कैप्टन वाडे के साथ मेल-मिलाप था। वे उनके तक महाराजा रणजीत सिंह के दरबार की महत्वपूर्ण जानकारी और खुफिया जानकारी भेजता था। सैयद हुसैन शाह भी रहा अंग्रेजों का वफादार
जानकारी के अनुसार सैयद अहमद शाह के पुत्र सैयद हुसैन शाह ने भी अंग्रेजों के प्रति अपनी वफादारी बनाए रखी और वर्ष 1857 के विद्रोह में पूरी तरह से अंग्रेजों का समर्थन किया। ब्रिटिश मदद के बदले में बटाला के मियां परिवार को अंग्रेजों द्वारा एक बड़ी जागीर दी गई थी। सैयद हुसैन शाह को अंग्रेजों ने दरबारी का दर्जा दिया था। बाद में उन्होंने बटाला शहर में एक जिला स्कूल खोला। सैयद हुसैन शाह के पोते खान बहादुर सैयद मोहि-उद-दीन कादरी ने भी इस्लामी जगत में काफी प्रसिद्धि प्राप्त की। उन्हें भी ब्रिटिश सरकार का समर्थन मिलता रहा। वे दरगाह के धार्मिक नेता थे और अपने पूर्वजों के मदरसे और लंगर को जारी रखा। उनके पुत्र सैयद बदर मोही-उद-दीन बाद में पंजाब विधानसभा के सदस्य बने। उन्हें अंग्रेजों द्वारा मानद मजिस्ट्रेट और संयुक्त रजिस्ट्रार बटाला नियुक्त किया गया। मियां सैयद बदर मोहि-उद-दीन का दरबार श्री हरगोबिदपुर रोड पर उमरपुरा (नया आबदी) में था, जहां अपने मामलों की करते थे सुनवाई उमरपुरा में था मियां सैयद बदर मोहि-उद-दीन का दरबार
मियां सैयद बदर मोहि-उद-दीन का दरबार श्री हरगोबिदपुर रोड पर उमरपुरा (नया आबदी) में था, जहां वे अपने मामलों की सुनवाई करते थे। यह दरबार बहुत बड़ा और सुंदर था, लेकिन कुछ साल पहले इसे कुछ लोगों ने ध्वस्त कर दिया था। मियां मोहल्ले के मियां गेट (नसीरुल हक गेट) से उमरपुरा तक की जमीन भी मियां सैयद बदर मोही-उद-दीन की जागीर थी। वहां अमरूद और अन्य फलों के बाग थे। देश विभाजन के दौरान सभी मुसलमानों ने बटाला छोड़ दिया
बटाला के इस मियां परिवार को इस्लामिक दुनिया में काफी माना जाता था। दरबार कादरिया फजलिया मुस्लिम समुदाय के बहुत श्रद्धेय थे। बटाला और लाहौर और जम्मू-कश्मीर सहित पूरे देश के मुस्लिम तीर्थयात्री उनके सम्मान का भुगतान करने के लिए यहां आते थे। 1947 के देश विभाजन के दौरान सभी मुसलमानों ने बटाला छोड़ दिया और दरगाह को मलबे में बदल दिया गया। अंत में 1971 में जम्मू और कश्मीर के मुसलमानों ने दरगाह के रखरखाव को फिर से शुरू किया और इसे अभी भी कश्मीरियों की समिति द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है। कादिरिया फाजलिया दरबार अभी भी मियां मोहल्ले में है। सैयद मोहम्मद फाजिल-उद-दीन कादरी का मकबरा दरबार कादिरिया का•ालिया में स्थित है। इसके चारों ओर बाद के खलीफाओं की कब्रें हैं। सैयद गुलाम कादिर का मकबरा भी पास में ही स्थित है। दरगाह कादिरिया फाजलिया में हर साल एक बड़ा मेला लगता है। उसमें पंजाब और जम्मू-कश्मीर से हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं अदा करने आते हैं। पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में दरगाह कदीरिया फजलिया के अनुयायी हैं। दरबार कादिरिया फाजलिया के कारण इस्लामिक दुनिया में बटाला शहर को बटाला शरीफ कहा जाता है। मियां मोहल्ले की तंग गलियां आज भी वही
गुरुद्वारा मस्तगढ़ के साथ मियां मोहल्ले में एक और बड़ी मस्जिद है। अब कादिरिया फाजलिया के लंगर की जगह पर एक मकबरा है। मियां मोहल्ले के गेट को नसीरुल हक गेट कहा जाता था और एक खूबसूरत गेट भी है, लेकिन आज इस गेट का कोई निशान नहीं बचा है। मियां मोहल्ले की तंग गलियां आज भी वही हैं और इस मोहल्ले में आज भी कबूतरों का बसेरा है। हालांकि आज के बटाला शहर में मियां मोहल्ले की 95 प्रतिशत आबादी हिदू है, लेकिन दरगाह कादिरिया फाजलिया विभाजन से पहले बटाला शहर में मुस्लिम आबादी की गवाह है।
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