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    कलानौर में बाढ़ के तांडव के बाद रजाई भरने के काम ने पकड़ा तूल, पुरानी रूई पिंजकर सर्दी से मुकाबला करेंगे लोग

    Updated: Tue, 28 Oct 2025 04:52 PM (IST)

    कलानौर में बाढ़ के कारण लोगों के घरों में पानी घुसने से रजाई और गद्दे खराब हो गए थे। सर्दी बढ़ने के साथ ही रजाई और गद्दे बनाने का काम तेज हो गया है। कारीगरों के अनुसार, इस बार रजाई और तलाई बनवाने के लिए ग्राहकों की संख्या बढ़ रही है। लोग पुरानी रूई पिंजवा रहे हैं और नई रजाईयां भी बनवा रहे हैं। युवा पीढ़ी को अपनी पुरानी विरासत को संभालने की जरूरत है।

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    कलानौर में अजीत सिंह व अमरजीत कौर रजाई और तलाई भरते हुए (फोटो: जागरण)

    महिंदर सिंह अर्लीभन्न, कलानौर। पिछले महीने रावी दरिया और सक्की किरण नाले में अाई बाढ़ का पानी लोगों के घरों में घुस गया था। जिससे बारिश के पानी ने लोगों के घरेलू सामान को नुकसान पहुंचाया था।

    जिसके चलते रजाई, गद्दे आदि पानी में खराब हो गए थे। वहीं अब सर्दी अाने के चलते ठंड से बचने के लिए रजाई, गद्दे आदि का काम भी तेज हो गया है।
    सीमावर्ती इलाके से सटे ऐतिहासिक कस्बा डेरा बाबा नानक और कलानौर में रजाई, गद्दे, गद्दे और रूई पिंजने वाले कारीगरों का काम शुरू हो गया है।

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    रजाई, गद्दे और रुई पिंजने वाले कारीगरों का काम शुरू होने से उनके चेहरों पर खुशी साफ दिखाई दे रही है। जानकारी देते हुए कारीगर सुनील कुमार तुली, पवन कुमार, रमेश कुमार, काली चरण आदि ने बताया कि फैशन के दौर में जहां युवा पीढ़ी सर्दी से बचने के लिए महंगे कंबल खरीदना पसंद कर रही है।

    वहीं इस बार बाढ़ के दौरान पानी से लोगों के घर का सामान और बिस्तर खराब होने के बाद बाढ़ प्रभावित गांवों के लोगों के साथ-साथ आम लोग भी सर्दी से बचने के लिए गर्म बिस्तर तैयार करवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बार पिछले साल की तुलना में उनकी दुकानों पर रजाई और तलाई बनवाने और पुरानी रूई पिंजने के ज्यादा ग्राहक आ रहे हैं।

    उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे मौसम ठंडा हो रहा है, वैसे-वैसे ज्यादा से ज्यादा लोग उनकी मशीनों पर रजाई और तलाईयां भरवाने आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि पुरानी रजाई और तलाईयां की रूई पिंजने के अलावा लोगों ने नई रजाई और तलाईयां बनाना भी शुरू कर दिया है। इस बार बाढ़ के कारण घर का सामान पानी से खराब हो गया है। इसलिए रजाई और तलाई बनाने का काम बढ़ने की उम्मीद है।

    इस मौके पर तलाई बनाने आई बीबी अमरजीत कौर ने कहा कि जहां आज की युवा पीढ़ी को रुई पिजंने वाली मशीनों के पास आने में शर्म आती है, वहीं बचपन में वह अपनी मां और दादी के साथ घर पर बनी रूई पिंजने के बाद दहेज के लिए घर पर बनी रूई से रज़ाइयां, तलाईयां, सिरहाना और दरी बनाती आ रही हैं।

    अमरजीत कौर ने कहा कि उन्होंने अपनी शादी की रज़ाई की रूई को दोबारा पिंजवाया है। अमरजीत कौर ने कहा कि फैशन के दौर और मोबाइल फोन के चक्कर में युवा पीढ़ी अपने मेहनत के काम को भूल गई है।

    उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को अपनी पुरानी विरासत को संभालकर रखने की जरूरत है। रूई पिंजवाने आए गांव सालेचक्क के अजीत सिंह ने कहा कि पुराने जमाने में हमारे घरों में पहले हम रूई बोते थे।

    फिर उसे रोलर से कातते थे और फिर रूई बनाते थे और रज़ाइयों में भरते थे। अब हम खुद दूसरे राज्यों से आए मजदूरों से रजाईयां आदि तैयार करवा रहे हैं, जबकि पुराने ज़माने में हमारे घरों की महिलाएं ही रजाईयां बनाती थीं। उन्होंने कहा कि अब जमाना दिन-प्रतिदिन बदल रहा है और दुनिया में बड़ा बदलाव हो रहा है और लोग पुराने ज़माने की बातों को भूलते जा रहे हैं।

    इस मौके पर रजाई बनाने आई महिलाओं ने बताया कि पहले जहां गृहणियां ही अपने घरों में रजाईयां भरती थीं। लेकिन आज के समय में कुछेक महिलाएं ही अपने घरों में रजाई आदि भरती है।

    उन्होंने बताया कि फाइबर रुई 150 से 240 रुपये प्रति किलो और रुई करीब 240 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। उन्होंने बताया कि डबल रजाई 200 रुपये, सिंगल रजाई 100 रुपये तथा तलाई 80 रुपये प्रति पीस मेहनत ली जा रही है।

    कारीगर सल मोहम्मद और करवां मोहम्मद ने बताया कि रजाई और तलाई बनाने वाले कारीगरों की कमी है और नई पीढ़ी यह काम सीखने से बच रही है। उन्होंने बताया कि वे पिछले कुछ दिनों से लगातार रजाई और तलाई बनाने का काम कर रहे हैं और काम दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है।