Happy Fathers Day 2025: पिता ने दी कुर्बानी तो बेटे ने विधायक बनकर दिलाया सम्मान, पढ़िए बरिंदरमीत पाहड़ा की कहानी
गुरदासपुर के विधायक बरिंदरमीत सिंह पाहड़ा और उनके पिता गुरमीत सिंह पाहड़ा की कहानी त्याग और समर्पण का प्रतीक है। गुरमीत सिंह ने अपने बेटे बरिंदरमीत के लिए अपना राजनीतिक सपना त्याग दिया जिससे बरिंदरमीत को कांग्रेस का टिकट मिला। बरिंदरमीत ने दो बार चुनाव जीता और अपने पिता के योगदान को हमेशा सराहा। दोनों ने मिलकर क्षेत्र के विकास के लिए काम किया।
सुनील थानेवालिया, गुरदासपुर। "पिता वह होते हैं जो अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए बच्चों से निस्वार्थ प्यार करते हैं, त्याग करते हुए उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाते हैं। पिता के इस निस्वार्थ प्रेम और संघर्ष को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
कल का दिन उन सभी पिता को समर्पित है, जो अपने बच्चों के लिए सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है गुरदासपुर के मौजूदा कांग्रेस विधायक बरिंदरमीत सिंह पाहड़ा और उनके पिता गुरमीत सिंह पाहड़ा की।
करतार सिंह पाहड़ा गुरदासपुर से 1997 में अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार में विधायक बने थे। वर्ष 2006 में करतार सिंह पाहड़ा के निधन के बाद उनके बेटे गुरमीत सिंह पाहड़ा राजनीतिक वारिस के रूप में सामने आए।
उन्होंने अपने तीन बेटों बरिंदरमीत सिंह पाहड़ा, किरणप्रीत सिंह पाहड़ा और एडवोकेट बलजीत सिंह पाहड़ा के साथ मिलकर टिकट हासिल करने के लिए दिन रात एक कर दिया।
हालांकि उस समय उनको टिकट नहीं मिल पाया। लंबे समय तक राजनीति में सरगर्म रहने के बाद वर्ष 2017 में हलके से टिकट के प्रबल दावेदारों की कतार में शामिल हो गए।
भले ही पिता के बाद गुरमीत सिंह पाहड़ा के साथ उनके तीनों बेटों ने भी काफी मेहनत की, लेकिन टिकट के लिए हमेशा से एक ही नाम पेश करते रहे और वो था गुरमीत सिंह पाहड़ा का नाम।
विधायक बनना केवल गुरमीत सिंह का ही नहीं, बल्कि उनके तीनों बेटों का भी सपना था। अपने पिता को विधायक बनते देखने के लिए एकजुटता से दिन-रात मेहनत कर रहे थे।
बेटे के लिए पिता ने दी कुर्बानी
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले आखिरकार वह दिन आ गया, जिसका पाहड़ा परिवार को 11 साल से इंतजार था। कांग्रेस पार्टी की ओर से टिकट के प्रमुख दावेदारों में गुरमीत सिंह पाहड़ा का नाम भी शामिल हो गया।
परंतु हालात कुछ ऐसे बने कि पार्टी हाईकमान ने गुरदासपुर विधानसभा हलके का टिकट यूथ कोटे से देने का निर्णय ले लिया।
इसके बाद गुरमीत सिंह पाहड़ा ने अपने सपनों को अपने बेटे के लिए कुर्बान कर दिया और कभी चुनाव लड़ने का सपना भी नहीं देखने वाले अपने बड़े बेटे बरिंदरमीत सिंह पाहड़ा का नाम यूथ कोटे से पेश किया और उन्हें टिकट मिल गया।
आप की लहर के बावजूद चुनाव जीत रचा इतिहास
भले ही पिता के कहने पर बरिंदरमीत सिंह पाहड़ा ने चुनाव लड़ा और लगातार दो बार जीत भी गए, लेकिन वह अब भी अक्सर ये जिक्र करते हैं कि वह अपने पिता को ही चुनाव लड़ाना चाहते थे। पिछले करीब नौ साल से पिता-पुत्र की जोड़ी ने हलके में विकास और लोगों का दिल जीतने में सफलता हासिल की और जब पंजाब में आम आदमी पार्टी की लहर चल रही थी, तब भी चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया।
विधायक पाहड़ा विकास के लिए फंड जुटाने में जब चंडीगढ़ में व्यस्त होते हैं तो उनके पिता गुरमीत सिंह पाहड़ा घर में काम के लिए आने वाले एक भी वर्कर को निराश नहीं लौटने देते। दूसरी तरफ विधायक पाहड़ा भी हर बड़े कार्यक्रम और पार्टी लीडरशिप के आगे अपने पिता की कुर्बानी, मेहनत और काम करने के जज्बे की तारीफ करना नहीं भूलते हैं।
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