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    Gurdaspur: मेजर बाजवा की जोश भरी कहानी... कश्मीर में अफगान आतंकियों से लड़ते हुए दी अपने प्राणों की आहुति

    By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya
    Updated: Thu, 22 Jun 2023 05:30 AM (IST)

    Gurdaspur News मेजर बीएस बाजवा का जन्म 8 दिसंबर 1963 को गांव लालेनंगल में हुआ। मेजर बाजवा बहुत ही बहादुर अफसर थे जिस भी आपरेशन में उन्हें भेजा जाता उसे अंजाम तक पहुंचा कर ही वे वापस लौटते। आपरेशन बाना में भी उन्होंने ओपी अफसर की ड्यूटी निभाते हुए अपने अदभुत अदम्य साहस का परिचय दिया। इसके लिए उन्हें चीफ आफ द आर्मी स्टाफ कमडेशन कार्ड से सम्मानित किया गया।

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    Gurdaspur: मेजर बाजवा की जोश भरी कहानी... कश्मीर में अफगान आतंकियों से लड़ते हुए दी अपने प्राणों की आहुति

    गुरदासपुर, संवाद सहयोगी। जम्मू-कश्मीर में पाक द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से लड़ते हुए हमारे कई जांबाज सैनिक अपना बलिदान देकर राष्ट्र की एकता व अखंडता को बरकरार रख रहे हैं। बलिदानियों की इसी श्रेणी में 23 साल पहले 22 जून 2000 को एक नाम और जुड़ गया, जब जम्मू-कश्मीर के बड़गाम जिले के कुलहामा क्षेत्र में अफगान आतंकियों से लड़ते हुए सेना की 313 फील्ड रेजीमेंट के मेजर बीएस बाजवा ने अपना बलिदान दे दिया।

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    इनको नमन करने के लिए 22 जून को इनकी याद में बने शहीद मेजर बीएस बाजवा पार्क जहां इनकी प्रतिमा लगी है। यहां श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया जाएगा। शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविंदर सिंह विक्की ने बताया कि मेजर बीएस बाजवा का जन्म 8 दिसंबर 1963 को गांव लालेनंगल जो कि उनका ननिहाल है, में माता सरदारनी सुरजीत कौर तथा पिता सरदार इकबाल सिंह के घर हुआ।

    सरकारी कालेज गुरदासपुर से बीए करने के बाद दिल में सैन्य अधिकारी बनने का सपना लिए मेजर बाजवा ने डायरेक्ट एंट्री के माध्यम से बतौर लेफ्टीनेंट आइएमए देहरादून में प्रवेश किया। वहां से 1985 को पासिंग आउट होकर यह सेना की 313 फील्ड रेजीमेंट में बतौर लेफ्टीनेंट शामिल होकर देश सेवा में जुट गए। उनकी पहली पोस्टिंग ही विश्व के सबसे दुर्गम व ऊंचे हिमखंड ग्लेशियर में हो गई।

    मेजर बाजवा बहुत ही बहादुर अफसर थे, जिस भी आपरेशन में उन्हें भेजा जाता उसे अंजाम तक पहुंचा कर ही वे वापस लौटते। आपरेशन बाना में भी उन्होंने ओपी अफसर की ड्यूटी निभाते हुए अपने अदभुत अदम्य साहस का परिचय दिया। इसके लिए उन्हें चीफ आफ द आर्मी स्टाफ कमडेशन कार्ड से सम्मानित किया गया। ड्यूटी के प्रति उनकी कर्तव्य निष्ठा को देखते हुए उन्हें सन 2000 को 34 राष्ट्रीय राइफल्स में शामिल कर आतंकवाद से प्रभावित सेक्टर बड़गांव भेजा गया, जहां 22 जून 2000 को इन्हें सूचना मिली कि कुलहामा क्षेत्र में अफगान आतंकियों ने यात्रियों से भरी एक बस को हाईजैक कर लिया है।

    मेजर बाजवा ने अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ उस बस को घेर लिया, जहां आतंकियों से उनकी मुठभेड़ हो गई तथा मेजर बाजवा ने दो अफगान आतंकियों को मार गिराया। इसी बीच आतंकियों द्वारा दागी एक गोली उनके सिर को भेदते हुए निकल गई, जिससे वे वीरगति को प्राप्त कर अपना सैन्य धर्म निभा दिया। मेजर बाजवा अगर चाहते तो वे बस को राकेट लांचर से उड़ाकर अपनी जान बचा सकते थे, मगर उन्होंने बस में मौजूद यात्रियों के प्राणों की सुरक्षा करते हुए अपना बलिदान देकर देशवासियों को यह संदेश दिया कि एक सैनिक के लिए राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरी होती है।

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