कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया ने विदेशी धरती पर लिखी थी बहादुरी की इबारत
राष्ट्र की एकता व अखंडता को बरकरार रखते हुए हमारे असंख्य वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश के गौरव को बढ़ाया है।

संवाद सहयोगी, दीनानगर : राष्ट्र की एकता व अखंडता को बरकरार रखते हुए हमारे असंख्य वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश के गौरव को बढ़ाया है। शहीदों की इस फेरहिस्त में एक नाम गांव जंगल के शहीद कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया का भी आता है। उन्होंने विदेशी धरती दक्षिणी अफ्रीका के कांगो शहर में भारत द्वारा भेजी गई शांति सेना का नेतृत्व करते हुए न सिर्फ 40 विद्रोहियों को मार गिराया बल्कि खुद शहादत का जाम पीते हुए स्वतंत्र भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता होने का गौरव प्राप्त किया।
शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविदर सिंह विक्की ने बताया कि कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया का जन्म 29 नवंबर 1935 को अविभाजित भारत की तहसील शकरगढ़ (अब पाकिस्तान) के गांव जमवाल में माता धन देवी व पिता मुंशी राम सलारिया के घर में हुआ था। बैंगलोर के किग जार्ज स्कूल से 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे 1952 में एनडीए में प्रवेश पाने वाले पहले कैडिट बने। उन्होंने नौ जून 1956 को एनडीए से पासिग आउट की और भारतीय सेना की 3/1 गोरखा राइफल्स में भर्ती होकर देश सेवा में जुट गए। इनकी लीडरशिप क्वालिटी के मद्देनजर उन्हें मार्च 1961 में भारतीय शांति सेना का नेतृत्व करने के लिए दक्षिणी अफ्रीका भेजा गया। पांच दिसंबर 1961 को इनका मुकाबला वहां के विद्रोहियों से हुआ। इस मुकाबले में उन्होंने 40 विद्रोहियों को मार विदेशी धरती पर बहादुरी का परचम फहराते हुए खुद शहादत का जाम पी लिया। इनकी बहादुरी का सम्मान करते हुए देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राधाकृष्णण ने इन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया। शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविदर सिंह विक्की ने बताया कि इस शूरवीर की शहादत को नमन करने के लिए पांच दिसंबर को उनकी बरसी पर गांव जंगल में उनकी याद को समर्पित सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जा रहा है। उसमें कई गणमान्य लोग शामिल होकर इस वीर योद्धा को श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे।

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