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    मिर्गी लाइलाज बीमारी नही : डॉ.अभिमन्यु

    By Edited By:
    Updated: Fri, 15 May 2015 01:09 AM (IST)

    संवाद सहयोगी,पठानकेाट : मिर्गी लाइलाज बीमारी नहीं है। यदि वैज्ञानिक तरीके से इलाज किया जाए तो इस बीम

    संवाद सहयोगी,पठानकेाट : मिर्गी लाइलाज बीमारी नहीं है। यदि वैज्ञानिक तरीके से इलाज किया जाए तो इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है। यह जानकारी वीरवार को सुभाष गुप्ता अस्पताल में आयोजित जागरूकता कैंप के दौरान डीएम(न्यूरोलोजी)डॉ. अभिमन्यु गुप्ता ने दी। इस मौके सिपला कंपनी के ट्रेटोरी मैनेजर मनन खरबंदा, पूजा वर्मा भी मौजूद थे।

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    डॉ. गुप्ता ने बताया कि मिर्गी की बीमारी को लेकर अधिकतर लोग अंधविश्वास में फंस कर टोना-टोटका अपनाने की पहल करते हैं। ऐसे में पीड़ित में भूत, पागलपन होने तक का वहम पाल लेते हैं। उसके परिणाम स्वरूप मरीज की हालत और बिगड़ जाती है। उन्होंने बताया कि मिर्गी की बीमारी एक बिजली के करंट के समान होती है। झटका लगते ही व्यक्ति प्रभावित होकर बेहोशी की हालत में आ जाता है। पर इस बीमारी का विशेषज्ञ न्यु टेक्नालाजी के माध्यम से इस करंट का कनेक्शन काट कर मरीज को रहात प्रदान करवा देता है। उन्होंने बताया कि मिर्गी की बीमारी विभिन्न प्रकार की है, जिसका उपचार व मेडिसीन भी अलग-अलग है। यदि अनाड़ी डाक्टर या अन्य के पास हम जाएंगे तो वह एक ही प्रकार की दवाई हमें दे सकता है। इससे हमें बचने की आवश्यक्ता है।

    बाक्स के लिए-

    क्या करें,क्या न करें-

    -व्यक्ति को मिर्गी का दौरा पड़ते ही उसके आराम से पकड़ कर किसी हवादार स्थान में बैठाएं, उसे टोना टोटका कर जूता न सघाएं, न ही मूंह में चम्मच डालें।

    -ऐसे मरीजों का सुबह चार से आठ बजे तक विशेष ध्यान रखें, आग के निकट, डीजे के निकट, खाली पेट न रखें, चमकने वाली वस्तु के निकट ना जाने दें।

    -स्पेशलिस्ट डाक्टर की सलाह अनुसार उपचार के दौरान दवाई से नींद पूरी करवाने की ओर विशेष ध्यान दें, ऐसी हालत में मीठे खाने में परहेज रखने की ओर खास ध्यान दें।

    गर्भवती को एचआईई से बचने की जरूरत

    डॉ. गुप्ता ने बताया कि माता के गर्भ में पहले वाले बच्चे के लिए एचआईई बीमारी से बचाने की आवश्यक्ता है। उन्होंने बताया कि माता के गर्भ में छह माह के भीतर उक्त बीमारी के पनपने की अधिक आशंका रहती है। पल रहे बच्चे को आक्सीजन की कम मात्रा मिलने के कारण बच्चे के सैल में गिरावट आने के बाद उसके दिमाग में असर पड़ता है। ऐरी हालत में बच्चे के जन्म के बाद 1 से 2 वर्ष तक बच्चे को दौरे पड़ने शुरू हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि इसका उपचार पूरी तरह से संभव है। ऐसे बच्चों का इलाज पांच वर्ष तक होना अति जरूरी है। पांच वर्ष तक बच्चे को विशेषज्ञ डाक्टर का उपचार मिलने से बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है।

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