आस्था व इतिहास का प्रतिक काठगढ़ का शिव मंदिर
सूरज प्रकाश/पप्पी धालीवाल,पठानकोट/डमटाल। प्राचीन महा पवित्र स्थल काठगढ़ के प्रसिद्ध मन्दिर में हर
सूरज प्रकाश/पप्पी धालीवाल,पठानकोट/डमटाल।
प्राचीन महा पवित्र स्थल काठगढ़ के प्रसिद्ध मन्दिर में हर सोमवार वाले दिन श्रद्धालु आते जाते रहते है परतु महाशिवरात्रि पर तीन दिवसीय मेला आयोजित किया जाता हैं। जोकि इस वर्ष 16,17 व 18 फरवरी को आयोजित होगा।
यहां एक प्राचीन शिव मन्दिर है। इस मंदिर में चेयरपरसन यूपीए सोनिया गांधी और सांसद विनोद खन्ना व हिमाचल प्रदेश एवं पंजाब के वरिष्ठ नेता भी इस पवित्र स्थान के दर्शन कर आर्शीवाद प्राप्त कर चुके हैं।
इस मन्दिर में स्थापित शिवलिंग दो भागों में विभक्त है। एक भाग को मा पार्वती एवं दूसरे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है। इस स्थान की यह भी विशेषता है कि इन दो भागों के बीच का अंतर ग्रहों व नक्षत्रों के अनुरूप घटता बढ़ता रहता है। इतिहास की दृष्टि से सन 326 ई.पूर्व) दिग्विजयी सिकन्दर की सेना इस स्थान से आगे नहीं बढ़ सकी थी उसके सामने टीले पर विराजमान शिवलिंग के चमत्कार का आभास हुआ। उन्होंने इसके चारों तरफ चबूतरा बना कर यूनानी सभ्यता की छाप छोड़ी ओर अपनी श्रद्धा भावना व्यक्त की।
ऐसे ही इस शिवलिंग का चमत्कारी दृष्टांत महाराजा रणजीत सिंह को भी हुआ था जिन्होंने यहां आकर शिवलिंग पर विधि विधान से मन्दिर बनवाया। काठगढ़ महादेव का ऐतिहासिक महत्व रामायण काल में भी है। प्रभुश्री राम के भाई भरत जी जब कैकेय देश (कश्मीर )अपने ननिहाल आते जाते तो इस पावन स्थान पर स्वयं भू-शिवंलिंग की पूजा अर्चना करते थे। अयोध्या में आते हुए वर्तमान मीरथल गाव के पास से ही इस स्थान से कैकेय देश को मार्ग जाता था। कहा जाता है कि भरत के बड़े शिव भक्त थे वह जहा से पवित्र जल के साथ स्नान करने उपरात अपने राजपुरोहित व मंत्रियों के साथ शिवलिंग की पूजा अर्चना करते थे। आज मन्दिर में शिव का अटूट लंगर चल रहा है वहीं मन्दिर में रेस्ट हाऊस एवं स्नान करने के लिए भव्य व विशाल सरोवर निर्माण अधीन है।
शिवलिंग के बारे में प्रचलित कथा
शिवलिंग के बारे में एक कथा प्रचलित है कि ब्रह्मा व विष्णु जी का आपस में युद्ध हुआ दोनों एक दूसरे पर शस्त्रों से प्रहार करने लगे तभी भगवान शिव शंकर आकाश मंडल से युद्ध को देखने लगे। इस महा युद्ध को देखकर भगवान शिव से रहा नहीं गया और युद्ध शांत करवाने के लिए वह महा अग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में दोनों के बीच प्रकट हुए इस महा अग्नि के प्रकट होते ही ब्रह्मा व भगवान विष्णु शांत हो गए और कहने लगे कि यह अग्नि स्तंभ क्या हैं हमे इसका पता लगाना चाहिए। भगवान विष्णु शुक्र का रूप धारण कर तथा ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर इस स्तंभ के आधार को तलाशने चल पडे़। विष्णु पाताल में बहुत दूर तक गए लेकिन जब काफी समय तक उन्हें स्तंभ के मूल का पता नहीं चला तो वह वापस चले आये।
उधर ब्राहमा आकाश में केतकी का फूल लेकर विष्णु के पास आये और झूठा विश्वास दिलाया कि स्तंभ का अंत मैं देख आया हूं जिसके उपर यह केतकी का फूल था। तब भगवान विष्णु ने ब्राहमा के चरण पकड़ लिये। ब्राहमा जी के इस छल को देखकर भगवान शिव का साक्षात्कार प्रकट होने लगा और विष्णु जी ने भगवान शिव के चरण पकड़ लिये। उन्होंने कहा कि विष्णु आप बड़े सत्यवादी हो। अंत में तुम्हे अपनी समानता प्रदान करता हूं। उन्होंने कहा कि आप दोनों का युद्ध शांत करने के लिए ही अग्नि स्तंभ का रूप धारण करना पड़ा।
तीन दिवसीय मेला आज से
16 से 18 फरवरी तक चलने वाला महाशिवरात्रि का मेला आज से शुरू होगा। जिसके चलते कमेटी की ओर से श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। इस दौरान कई शिव भक्त लंगर के स्टाल लगाते हैं। महंत कालीदास ने कहा कि महाशिवरात्रि के लिए विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं। महाशिवरात्रि महोत्सव
काठगढ़ का शुभारंभ 16 फरवरी को विधायक मनोहर धीमान करेंगे। कमेटी द्वारा शुभारंभ पर स्वयं भू प्रकट शिवलिंग की पूजा अर्चना के साथ-साथ कलश यात्रा भी निकाली जाएगी। 18 फरवरी को समापन समारोह में वन विभाग के मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी मुख्य अतिथि होंगे। मेले में आने के लिए निजी बसों के साथ-साथ हिमाचल पथ परिवहन की बसे भी लगाने की व्यवस्था की गई हैं। मंदिर प्रागंण में हुई बैठक में कमेटी प्रधान ओम प्रकाश कटोच, महासचिव सुभाष शर्मा, प्रेस सचिव सुरेन्द्र शर्मा, कुलदीप सिंह, युद्धवीर
सिंह, रमेश कटोच, गणेश दत्त, प्रेम सिंह, रमेश पठानिया, बनारसी लाल, गोपाल शर्मा, कृष्ण मन्हास, रघुवीर सिंह, बलवीर सिंह आदि मौजूद थे।
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