फोटो--बकरे की जगह गाय व भैंस का मांस
निर्दोष शर्मा, गुरदासपुर
होटलों व रेस्टोरेंटों में बकरे का कीमा खाने वाले थोड़ा सावधान रहें। हो सकता है कि आप जो कीमा बड़े मजे से खा रहे हैं वह भैंस या गाय के मांस का हो।
एकत्र जानकारी के अनुसार जिले के कुछ होटेलों व रेस्तरों में जहां बकरे का बोनलेस मांस अथवा कीमा कलेजी पकाई जाती है, में बकरे के गोश्त की जगह गौमांस व भैंस का मांस सप्लाई हो रहा है। उल्लेखनीय है कि पहले सर्दियों में मांस की मांग ज्यादा होने से बकरे व मुर्गे के मांस कर भाव बढ़ जाया करता था जबकि गर्मियों में भाव सामान्य रहा करते थे। वर्ष 2012 के गर्मियों के सीजन में शादियों के सीजन चलते मुर्गे का मांस 180 रुपये किलो तक बिकता रहा। जबकि सर्दियां शुरू होने पर भी मुर्गे का मांस जहां 200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुका है वहीं बकरे का मीट 300 से 350 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच पहुंच चुका है। ऐसे में यदि कोई बोनलेस मुर्गे का मांस खरीदना चाहे तो वह उसे 300 रुपये प्रति किलों व बकरा बोनलेस 400 से 500 रुपये प्रति किलो के बीच मिल रहा है। ऐसे में लाभ कमाने के लिए बड़े रेस्तरां व होटल मुर्गे, बकरे के नाम पर भैंस व गाय का बोनलेस मांस जो 60 से 100 रुपये प्रति किलो के बीच मिल जाता है, को ग्राहकों को परोस कर चौगुना लाभ कमा रहे हैं। मांस से धंधे से जुड़े एक सप्लायर ने अपना नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया कि यदि कोई मरी हुई गाय व भैस का मांस कोई लेना चाहे तो वह तो मात्र 50 से 60 रुपये प्रति किलो गाय व भैंस का ताजा मांस 100 रुपये तक आसानी से उपलब्ध हो जाता है। उसने बताया कि पीजा बेचने वाले नानवेज पीजा में अक्सर मुर्गे अथवा बकरे का कीमा इस्तेमाल करते हैं जो उन्हें काफी महंगा पड़ता है ऊपर से सभी ग्राहक इतना पैसे भर भी नहीं पाते ऐसे में वे गाय व भैंस का सस्ता मांस इस्तेमाल करते हैं व लाभ के साथ ग्राहकों को भी खुश रखते हैं। उसने बताया कि जिस तरह बकरा हरा चारा खाता है उसी तरह गाय व भैंस भी हरा चारा खाती है। दोनों के मांस का स्वाद व रंग एक समान होने के कारण कोई पके हुए मांस खास कर बोनलेस मांस को पहचान भी नहीं पाता है। उसने यह भी बताया कि जिले के कुछ होटल व रेस्तरां वाले जो खाना शुद्ध देशी घी में पका होने का दावा करते है उनमें से ज्यादातर सूअर की चर्बी का इस्तेमाल करते हैं जो तेज आंच कर पकाए जाने पर देशी घी की तरह पिघल जाती है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जो गाय व भैंस के मांस की बजाय खालिस बकरे व मुर्गे के मांस का धंधा करते हैं उनसे मांस खरीद कर घर में पका कर खाना भी खतरे से खाली नहीं है।
10 से 15 साल पहले तक शहर में नगर कौंसिल की देखरेख में एक स्लाटर हाऊस चलता था। जहां नगर कौंसिल की तरफ से एक डाक्टर तैनात होता था। तब शहर में बिकने वाले बकरे व मुर्गे के मांस को डाक्टर चेक कर उसे बीमारी मुक्त करार देने की मोहर लगाता था तभी यह मांस शहर में बिक सकता था। लेकिन अब स्लाटर हाऊस बंद हो चुका है। जिसके चलते शहर में मांस का धंधा करने वाले दुकानदार बिना किसी डाक्टर से जांच कराए अपने आप ही बकरे व मुर्गे काट कर बेचते हैं। ऐसे में किसका मांस बीमारी युक्त हो कुछ नहीं कहा जा सकता।
इस संबध में जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. बीएस बाजवा से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि उन्हें बतौर डीएचओ कार्यभार संभाले 6-7 महीने हुए हैं। उनका सामना आज तक शहर में गौ अथवा भैंस का मांस अथवा बीमारी युक्त मांस बिकने की कोई शिकायत नहीं आई है। उन्होंने भरोसा दिलाते हुए कहा कि सोमवार 18 फरवरी से वे जिले में मौजूद तमाम रेस्तरां, होटल, पीजा पार्लर व ढाबे जहां भी मांस पका कर अथवा कच्चा बेचा जाता हो में जांच अभियान चलाएंगे व शक होने की स्थिति में मांस के सेंपल भर कर भेजा जाएगा। उन्होंने बताया कि उन्हें मांस में रंग की मिलावट संबधी शिकायत मिली है, जो सेहत के लिए नुकसान दायक हो सकता है। इसके आधार पर पठानकोट व बटाला के कुछ रेस्तरां में बिकने वाले मांस का सेंपल भर भरे गए थे जिनकी रिपोर्ट अभी आनी है।
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