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    ग्राउंड रिपोर्ट: दिल में दर्द और चेहरे पर उदासी, 25 दिन बाद घर लौटे लोग; बाढ़ में हो गया सब कुछ बर्बाद

    Updated: Tue, 16 Sep 2025 07:41 PM (IST)

    फिरोजपुर के गांव निहाला किल्चा व कालूवाला में बाढ़ से भारी तबाही हुई है। लगभग 25 दिनों बाद घर लौटे लोग अपनी बर्बादी देखकर रो रहे हैं। खेतों में रेत जमा है और मकान क्षतिग्रस्त हो गए हैं। भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित इन गांवों की करीब 150 एकड़ जमीन सतलुज दरिया में समा गई है।

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    25 दिन बाद घर लौटे सतलुज किनारे बसे लोग। फोटो जागरण

    कपिल सेठी, फिरोजपुर। बाढ़ में सब कुछ बर्बाद होने के लगभग 25 दिनों बाद घर लौट रहे लोगों की आंखों से आंसू का दरिया बह रहा है। सतलुज दरिया के किनारे बसे गांव निहाला किल्चा व कालूवाला में बाढ़ से जहां खेतों में 4-4 फीट रेत जमा है, वहीं ज्यादातर मकान भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं।

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    घरों से पानी तो निकल चुका है, लेकिन दो फीट तक जमी गाद मुसीबत बन गई है। सतलुज दरिया में जलस्तर बेशक कम हो गया है, मगर बाढ़ के निशां अभी बाकी हैं। भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित गांव निहाला किल्चा व कालूवाला की करीब 150 एकड़ जमीन को दरिया निगल गया है और एक हजार एकड़ जमीन में धान की फसल बर्बाद हो चुकी है।

    ग्रामीणों का कहना है कि वर्ष 2023 में भी बाढ़ ने उनके गांवों को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद उनकी सार लेने कोई नहीं पहुंचा। इस बार बाढ़ अपने साथ उनके खेत ही बहाकर ले गई। उन्होंने सामाजिक संस्थाओं से उम्मीद जताई है कि उन तक पहुंचकर उनका दर्द सुनें व उनका साथ दें।

    गांव कालूवाला की शांति बाई ने कहा कि 25 दिन पहले वह अपने घर से बच्चों को लेकर बाहर निकल गए थे, तब दरिया उफान पर था और लगता था कि दो-तीन दिन में सब ठीक हो जाएगा, लेकिन 25 दिन बाद जब घर लौटे तो घरों में रखा सारा सामान नष्ट हो चुका है।

    घर के आंगन के अलावा कमरों में दो-दो फीट गाद जमा है, जिसे निकालने के लिए वह जद्दोजहद कर रहे हैं। गांव कालूवाला में पहुंची पंजाबी गायिका जसविंद्र बराड़ के गले लगकर शांति बाई अपनी व्यथा सुनाने हुए बोली कि उनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है। हर बार वह इसी तरह उजड़ते हैं, फिर बसते हैं और फिर उजड़ जाते हैं, मगर उनकी कोई सुध नहीं लेता है।

    गांव कालूवाला के काला सिंह व पप्पू सिंह ने कहा कि घरों में जमा गाद निकालने में उनको कई दिन लगेंगे। इससे पहले वह अपने खेतों में काम करने के लिए चले जाते थे। बाढ़ से अब उनके खेत ही नहीं बचे तो कहां जाएं। पप्पू ने कहा कि वर्ष 2023 में आई बाढ़ के बाद उन्होंने अपने रिश्तेदारों व आढ़तियों से पैसा लेकर खेतों से रेत निकालकर जमीनों को उपजाऊ बनाया था, जोकि बाढ़ में तबाह हो चुकी है।

    खेतों से रेत निकालने के लिए पैसा कहां से लाएं गांव निहाला किल्चा के मुख्त्यार सिंह ने कहा कि उनके गांव के बाहर दरिया के किनारे तटबंध था जो तेज बहाव का रास्ता मोड़कर उनकी जमीनों को बचाता था। इस बार तटबंध के टूटने से गांव की करीब 50 एकड़ जमीन को दरिया बहाकर ले गया और लगातार कटाव जारी है।

    इसके अलावा उनकी 15 एकड़ जमीन में तीन से चार फीट तक रेत जमा है, जिसे निकालने के लिए अब उसके पास पैसा नहीं है। अब सरकार ने जिसका खेत उसकी रेत कह तो दिया है मगर वह अब अपने खेतों से रेत निकालने के लिए पैसा कहां से लाएं।