इंग्लैंड में दोहरा शतक, शुभमन गिल के गांव में जश्न; पिता के सपने को बेटे ने किया साकार
जलालाबाद के शुभमन गिल ने इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट मैच में शानदार पारी खेलकर देश का नाम रौशन किया। गांव जैमलवाला में जश्न का माहौल है लोग उनके दादा-दादी को बधाई दे रहे हैं। शुभमन ने गावस्कर का रिकॉर्ड तोड़कर नया इतिहास रचा है। गांव में खेल के लिए जमीन दी गई है और उनके पिता का सपना साकार हुआ।

मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का। इंग्लैंड के खिलाफ खेले जा रहे दूसरे टेस्ट मैच में जलालाबाद के गांव जैमलवाला के लाल शुभमन गिल ने 250 से अधिक रनों की ऐतिहासिक पारी खेलकर न सिर्फ क्रिकेट जगत को चौंकाया, बल्कि देश और पंजाब को गौरवान्वित कर दिया।
जैसे ही यह खबर गांव में फैली, चारों ओर जश्न का माहौल छा गया। लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई खिला बधाई दी। दादा दीदार सिंह गिल और दादी गुरमेल कौर को बधाई देने के लिए घर पर तांता लग गया।
शुभमन का जन्म आठ सितंबर 1999 को जलालाबाद के गांव जैमलवाला में हुआ। उनके दादा दीदार सिंह गिल व दादी गुरमेल कौर अभी भी फाजिल्का जिले के अपने पैतृक गांव जैमलवाला में ही रहते हैं। जब कभी भी शुभमन गिल क्रिकेट में कोई कमाल करता है तो लोग उनके घर पर पहुंचकर बधाइयां देते हैं और जश्न मनाते हैं।
शुभमन के दादा दीदार सिंह ने शुभमन के बचपन से लेकर अब तक के सारे बैट व बाल संभालकर रखे हुए हैं। शुभमन ने पिछले कुछ समय में कई रिकार्ड अपने नाम किए हैं और वीरवार को दोहरा शतक जड़ इतिहास रच दिया।
तोड़ दिया गावस्कर का रिकॉर्ड
इंग्लैंड के खिलाफ खेले जा रहे टेस्ट मैच के पहले दिन शतक जमाने के बाद जहां दूसरे दिन गिल ने भारतीय पारी को संभाला, वहीं दोहरा शतक जड़ने के बाद 269 रनों की ऐतिहासिक पारी खेली। यह इंग्लैंड की धरती पर अब तक किसी भी कप्तान द्वारा बनाया गया सर्वाधिक स्कोर है।
गांव के सरपंच रंगा राम ने बताया कि शुभमन गिल हमारे गांव की शान हैं। वह इंग्लैंड की धरती पर सबसे बड़ा स्कोर बनाने वाले सबसे युवा भारतीय बल्लेबाज बन गए हैं। उन्होंने सुनील गावस्कर के 221 रन के रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है।
शुभमन की उपलब्धियों को देखते हुए पंचायत की दो एकड़ जमीन बच्चों के खेल प्रैक्टिस के लिए छोड़ी गई है। यहां खेलने बच्चे भी शुभमन की तरह बनने अच्छा क्रिकेटर बनना चाहता हैं। उन्होंने कहा कि अगर पंजाब सरकार और सहयोग करे तो गांव में और भी खेल सुविधाएं दी जा सकती हैं।
पिता ने देखा सपना, बेटे ने किया साकार
शुभमन गिल का क्रिकेटर बनना एक संयोग नहीं, बल्कि लंबे संघर्ष परिणाम है। उनके पिता लखविंदर सिंह गिल ने जब बेटे को बचपन में बैट-बाल से खेलते देखा तो मन ही मन तय कर लिया कि उसे एक दिन भारत के लिए खेलते देखेंगे, लेकिन गांव में संसाधनों की कमी के कारण उन्हें शुभमन को सही प्रशिक्षण दिलाना कठिन हो रहा था।
इसी को देखते हुए उन्होंने चंडीगढ़ में बसने का फैसला किया, ताकि शुभमन को बेहतर कोचिंग और प्लेटफार्म मिल सके। मां और पिता ने पढ़ाई और क्रिकेट दोनों में संतुलन बैठाते हुए हर संभव सहयोग दिया। इस तरह चंडीगढ़ में शुभमन के सपनों को पंख लगे।
दादा की पिच पर आज भी गूंजती हैं शुभमन की आवाज
शुभमन गिल के दादा दीदार सिंह गिल ने भी इस सफलता में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने अपने पोते को बचपन में खुद क्रिकेट सिखाया। आज भी उनके घर में वह पुरानी पिच मौजूद है, जहां शुभमन ने अपनी पहली बैटिंग की थी।
दीदार सिंह ने शुभमन के पुराने बैट, दस्ताने और क्रिकेट की यादों को आज तक सहेज कर रखा है, जब भी शुभमन मैदान में कमाल दिखाते हैं, सबसे पहले बधाई उनके दादा-दादी दीदार सिंह-गुरमेल कौर को ही मिलती है।
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