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    Punjab Flood: फाजिल्का में 17 दिनों से छतों पर ठहरी जिंदगी, सड़कों पर 10 फीट पानी

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 06:05 PM (IST)

    फाजिल्का के गांव मुहार जमशेर में सतलुज नदी में आई बाढ़ से तबाही मची है। गांव चारों तरफ से पानी से घिरा हुआ है जिससे लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। 600 एकड़ कृषि भूमि डूब गई है और गांव वाले छतों पर रहने को मजबूर हैं। किसान रेशम सिंह का कहना है कि बाढ़ ने उनका पीछा नहीं छोड़ा।

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    फाजिल्का में 17 दिनों से छतों पर ठहरी जिंदगी। फोटो जागरण

    मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का। छात्रों के बस्ते व पुस्तकें ऊंचे शेल्फ पर रखी हैं, घरों पर ताले हैं, आंगन वीरान हैं, मवेशी घुटनों तक पानी में खड़े हैं और लोग आंखों में उम्मीद की टकटकी लगाए सतलुज के उफान को देख रहे हैं। सीमा पर बसे फाजिल्का के गांव मुहार जमशेर की यह दुखदायी तस्वीर है।

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    तीन ओर पाकिस्तान और चौथी ओर उफनते दरिया से घिरा यह गांव अब पूरी तरह पानी में कैद है। जिंदगी छतों पर ठहरी हुई है और पानी हर घंटे लोगों के सब्र का इम्तिहान ले रहा है। लगभग 700 आबादी वाले गांव की 600 एकड़ कृषि भूमि बाढ़ से लगभग पूरी तरह तबाह हो चुकी है।

    तार के पार का इलाका बीते 17 दिनों से जलमग्न है, जबकि तार के इस पार का गांव पिछले पांच दिनों से बाढ़ की चपेट में है। सतलुज किनारे बसा मुहार जमशेर भौगोलिक रूप से इतना संवेदनशील है कि यहां युद्ध की आहट हो या कुदरत का प्रकोप, हर बार सबसे पहले यही गांव निशाने पर आता है।

    गांव के लोगों का मुख्य सहारा खेती है, जबकि कुछ परिवार दरिया पार कर शहर में व्यापार करते हैं। हालात इस बार इतने बिगड़े कि गांव की ओर जाने वाली सड़कों पर 10-10 फीट पानी भर गया है। खेत पानी में डूब गए हैं। जो हिस्से ऊंचाई पर हैं, वहां पानी अब घरों के दरवाजे तक पहुंच चुका है। नावें ही गांव का एकमात्र सहारा रह गई हैं।

    गांव के एक घर में भरे बाढ़ के पानी में चारपाई पर बैठकर खाना खा रहे किसान रेशम सिंह ने बताया कि उनका घर पहले तार के पार था जो तीन तरफ से पाकिस्तान से घिरा है। युद्ध के हालात व प्राकृतिक आपदा की मार झेलते-झेलते हमने तार के इस पार घर बना लिया लेकिन इस बार की बाढ़ ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा। उनकी 10 एकड़ जमीन पूरी तरह डूब चुकी है। परिवार को सुरक्षित जगह भेज दिया है लेकिन वह खुद अपने मवेशियों के बीच पानी में ही रह रहे हैं।

    कुदरत की मार की आदत पड़ी, घर नहीं छोड़ेंगे गांव के 80 वर्षीय बुजुर्ग खुशहाल सिंह बताते हैं कि उन्होंने 1988 में बाढ़ का ऐसा कहर देखा था। उस समय पानी गांव तक आया था और तेजी से चला भी गया था लेकिन इस बार पानी खेतों व घरों दोनों में जड़ें जमा चुका है। कुछ दिनों पहले लोगों ने गांव के निकट अस्थायी बांध बनाया लेकिन बांध भी पानी को रोक नहीं सका।

    कुदरत की मार की हम आदत डाल चुके हैं इसीलिए अब घर छोड़कर कहीं नहीं जा रहे। बच्चों को कैसे संभालें, कहां सुलाएं गांव की रहने वाली सुनीता रानी अपने परिवार व बच्चों के साथ पड़ोसी गांव के एक परिचित के घर शरण लिए हुए है। उनका घर पूरी तरह पानी से घिर चुका है और जो भी सामान घर में था, वह अब पानी में खराब हो गया है।

    उन्होंने बताया कि हमने जो थोड़ी-बहुत जरूरी चीजें बचाईं, उन्हें ट्राली में भरकर किसी के घर पर रखवा दिया है। बच्चों के लिए ये हालात सबसे मुश्किल हैं। दिनभर बच्चों को कैसे संभालें, कहां सुलाएं, यह सबसे बड़ा सवाल है। हालात कठिन पर हौसले बुलंद, कम पहुंच रहा राशन गांव निवासी सतनाम सिंह ने बताया कि उनका घर तार के भीतर है जहां सड़कों पर पानी ही पानी है।

    प्रशासन के साथ-साथ समाजसेवी मदद के लिए आगे आ रहे हैं लेकिन कई बार सामान व राशन कम पहुंचता है। जब उन्हें पता चला कि गांव के इस पार कुछ लोग राशन लेकर आए हैं तो वह पैदल ही पानी में चलकर राशन लेने पहुंचे और अब राशन लेकर उसी रास्ते से लौटेंगे।

    उन्होंने कहा कि लोगों का हौसला अभी भी बुलंद है, लेकिन खेतों में बर्बाद खड़ी फसल और मवेशियों के चारे की कमी से परेशानी बरकरार है।