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    83 वर्ष का हुआ फाजिल्का का ऐतिहासिक घंटाघर

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 05 Jun 2022 09:49 PM (IST)

    भले ही अब पंजाब के विभिन्न जिलों में कई क्लाक टावर बन चुके हैं लेकिन अंग्रेजों के जमाने में छह जून 1939 में महज 10200 रुपये की लागत से अस्तित्व में आया फाजिल्का का ऐतिहासिक घंटाघर आज भी यहां लड़े गए संघर्षो के लिए पंजाब में अलग पहचान बनाए हुए हैं।

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    83 वर्ष का हुआ फाजिल्का का ऐतिहासिक घंटाघर

    संवाद सूत्र, फाजिल्का : भले ही अब पंजाब के विभिन्न जिलों में कई क्लाक टावर बन चुके हैं, लेकिन अंग्रेजों के जमाने में छह जून 1939 में महज 10,200 रुपये की लागत से अस्तित्व में आया फाजिल्का का ऐतिहासिक घंटाघर आज भी यहां लड़े गए संघर्षो के लिए पंजाब में अलग पहचान बनाए हुए हैं। इस घंटाघर का नामकरण इसे बनाने वाले पेड़ीवाल परिवार के मुखिया राम नारायण पेड़ीवाल के नाम पर रखा गया है। अगर ये कहा जाए कि घंटाघर में ही फाजिल्का की आत्मा बसती है तो गलत नहीं होगा। ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर जहां पंजाब विधानसभा की आर्ट गैलरी की शान है, वहीं देश का गौरव भी है। एक ऐसा ही घंटाघर पाकिस्तान के लायलपुर में भी है। इसकी ऊंचाई 95 फीट है।

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    इतिहासकारों के अनुसार फाजिल्का की पहचान ऊन के व्यापार के रूप में थी। व्यापार की दृष्टि से अंग्रजों के न्योते पर यहां पेड़ीवाल, अरोड़वंश, अग्रवाल और मारवाड़ी समुदाय के लोगों ने व्यापार कार्य आरंभ किया। इस प्रकार फाजिल्का एशिया की प्रसिद्ध ऊन मंडी बन गया। ऊन की गांठें यहां से तैयार होकर रेलगाड़ी के जरिये, दिल्ली, लाहौर और सिंध व कराची तक जाने लगी। लेकिन इस दौरान बंटवारे की ऐसी लकीर खींची कि सभी उद्योग समाप्त हो गए। साथ ही फाजिल्का के साथ पिछड़ेपन का दाग भी लग गया, लेकिन पिछड़ेपन का दाग झेलने वाले फाजिल्का के इस ऐतिहासिक घंटाघर ने अपने बुलंद वजूद के साथ यहां के लोगों के हौसले को नहीं टूटने दिया। 1990 में फाजिल्का को पुन: विकास की राह पर चलाने के लिए जिला बनाने की मांग के 21 साल बाद 27 जुलाई 2011 को पंजाब सरकार ने आखिरकार फाजिल्का को जिला बना ही दिया, तब फाजिल्का वासियों ने जिला मुख्यालय निवासी बनने का जश्न भी घंटाघर परिसर में पटाखे फोड़कर व नाच गाकर मनाया था। इस प्रकार समय-समय पर फाजिल्का में हुए बदलावों का साक्षी ऐतिहासिक घंटाघर बनता रहा है।

    पाकिस्तान में भी है फाजिल्का के जैसा घंटाघर पेड़ीवाल परिवार के मुखिया सुशील पेड़ीवाल बताते हैं कि इस घंटाघर का निर्माण उनके दादा श्योपत राय पेड़ीवाल ने अपने चचेरे भाई राम नारायण पेड़ीवाल की याद में करवाया था। इससे पहले इस जगह पर कुआं हुआ करता था। इसलिए कुआं बंद किए बिना इस घंटाघर की नींव भी कुएं जितनी ही गहरी रखी गई है, तब इस घंटाघर का निर्माण करने वाले आर्किटेक्ट व राजमिस्त्री ने उसी समय के दौरान लायलपुर जोकि अब पाकिस्तान में है, में भी ऐसे ही घंटाघर का निर्माण करवाया था। खास बात ये है कि दोनों घंटाघर का उद्घाटन भी एक ही दिन छह जून 1939 में किया गया था।