‘कर्ज लेकर सात एकड़ में फसल बोई थी, लेकिन...', पंजाब में बाढ़ से बर्बाद हुई फसल पर छलका किसान का दर्द
फाजिल्का के गांव रेतेवाली भैणी में बाढ़ से हालात गंभीर हैं। 25 दिनों से लोग घरों की छतों पर रहने को मजबूर हैं राहत सामग्री का इंतजार कर रहे हैं। गांव में 2300 एकड़ फसल नष्ट हो गई है और दो लोगों की मौत हो चुकी है। भारत-पाक सीमा के पास होने के कारण यह गांव अक्सर बाढ़ से प्रभावित होता है।

मोहित गिलहोत्रा, फाजिल्का। जिन गलियों में पहले चहल-पहल थी, वहां अब पानी पसरा है। 25 दिन से घरों की छत पर बैठे लोग राहत सामग्री लेकर आने वाली नाव की राह देखते रहते हैं। कारण...पता नहीं दोबारा नाव आए या नहीं। छतों पर रखे बिस्तर और बर्तन गवाही दे रहे हैं कि लोग हर लहर के साथ अपना घर बचाने की जद्दोजहद में हैं।
करीब 1,300 आबादी वाले गांव रेतेवाली भैणी के 30 प्रतिशत लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं, लेकिन बाकी अब भी घरों में पानी से घिरे हैं। दो लोगों की मौत हो चुकी है। 2,300 एकड़ फसल नष्ट हो गई है। हर गुजरते दिन के साथ बाढ़ का दर्द और बढ़ रहा है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की आंखों में भय व उम्मीद का मिला-जुला रंग दिखाई देता है।
भारत-पाक सीमा पर लगी कंटीली तार के बिल्कुल निकट बसे फाजिल्का जिले का गांव रेतेवाली भैणी अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण हर बार कुदरत का पहला निशाना बनता है। यहां 16 अगस्त से पानी बढ़ने लगा था और अब भी गांव व खेतों में पानी भरा है।
गांव को सड़कें चार से पांच फीट पानी में डूबी हैं। खेतों में 10 से 12 फीट पानी है। हर तरफ सिर्फ पानी ही दिखाई देता है। 2,300 एकड़ फसल सतलुज की लहरों ने नष्ट कर दी है। गांव में 70 घर हैं। चार मकानों की दीवार पानी में गिर चुकी है।
ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ ने इस बार सबसे अधिक तबाही मचाई है। अपने ही घर में जाने से डर लगता है। कमरों में पानी भरा है और जिंदगी छतों, तंबुओं व राहत शिविरों तक सिमट गई है। गांव से बाहर जाने का एकमात्र साधन सिर्फ नाव ही है।
दिनभर राहत सामग्री लेकर आने वाली नाव की प्रतीक्षा में रहते हैं। बाढ़ का दर्द बताते हुए 85 वर्षीय कौशल्या बाई की आंखें छलक पड़ीं। रोते हुए बोलीं, ‘बेटों ने कर्ज लेकर सात एकड़ में फसल बोई थी, लेकिन एक दाना भी नहीं बचा। घर में ढाई फीट पानी भरा है। किसी और के घर में शरण लेनी पड़ी है। 2023 में भी बाढ़ आई थी, लेकिन इस बार तबाही अधिक है।’
जगतार सिंह ने कहा कि हम छोटे किसान हैं। पानी ने सब बर्बाद कर दिया। गांव सरहद पर है, इसलिए राहत पहुंचने में भी देर हो जाती है। जिंदगी को फिर पटरी पर लाने में महीनों लग जाएंगे।
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