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    सिर पर सामान, गोद में बच्चे और थकान से बोझिल कदम...पंजाब में बाढ़ के बाद के हालात

    Updated: Sun, 14 Sep 2025 02:27 PM (IST)

    फाजिल्का में बाढ़ का पानी उतरने के बाद लोग घरों को लौट रहे हैं पर रास्ते मुश्किल हैं। 15-20 दिन बाद लौटे लोगों को तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है। कई घरों की दीवारें ढह गई हैं और खेत बर्बाद हो गए हैं। सतलुज का पानी 1988 से 2025 तक 11 बार फाजिल्का के गांवों में घुसा है।

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    सड़क टूटी होने के कारण खेत के पानी में से ही निकाल कर अपने घरों की ओर जाते ग्रामीण

    मोहित गिलहोत्रा, फाजिल्का। सिर पर सामान, गोद में बच्चे और थकान से बोझिल कदम... यह हालात उन परिवारों के हैं, जो बाढ़ का पानी उतरने के बाद अब अपने घर की ओर लौट रहे हैं। रास्ते आसान नहीं हैं, कहीं टूटी हुई सड़कों पर पड़े पत्थरों से होकर तो कहीं खेतों में जमा पानी को पार कर ग्रामीण घर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।

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    कोई 15 दिन बाद लौट रहा है, तो कोई 20 दिन बाद, लेकिन लौटते ही उनका सामना तबाही के मंजर से हो रहा है। किसी के घर की दीवारें ढह चुकी हैं तो किसी को पूरा मकान जमींदोज मिला। खेतों में फसल भी बर्बाद हो चुकी है। लोगों को अब सिर्फ इस चिंता में हैं, जिंदगी की गाड़ी फिर कैसे पटरी पर लाई जाए।

    बता दें कि सतलुज का दरिया का पानी 1988 से लेकर 2025 तक 11 बार सीमावर्ती जिले फाजिल्का और आसपास के गांवों को अपनी चपेट में ले चुका है। 1988 की बाढ़ सबसे बड़ी त्रासदी बनी थी, जब लगभग सभी गांव पानी में समा गए थे। इसके बाद कभी खेतों में तो कभी घरों तक पानी पहुंचता रहा, लेकिन सही मायनों में 1988 के बाद सबसे बड़ी तबाही 2023 में देखने को मिली।

    जुलाई से लेकर सितंबर के पहले सप्ताह तक दो महीने तक पानी खेतों और घरों में जमा रहा। ग्रामीणों में किसी ने एक बार, किसी ने दो बार और किसी ने तीन बार फसलें दोबारा बीजी, लेकिन हर बार पानी ने उन्हें तबाह कर दिया। 2023 की तबाही के बाद टूटी सड़कों को बनाने की मांग उठी, कुछ काम शुरू भी हुए, लेकिन पूरी तरह से हालात सुधरे ही नहीं थे कि 2025 में फिर से बाढ़ ने सभी जख्म हरे कर दिए।

    15 अगस्त को कई गांवों के लोग घर छोड़कर रिश्तेदारों और राहत कैंपों में शरण लेने को मजबूर हो गए। अब करीब 26 दिन बाद पानी नीचे उतरने लगा है, तो घर लोग घर लौटने लगे हैं, लेकिन गांवों की राह पहले जैसी नहीं रहीं। कावावाली पुल से लेकर अंदरूनी रास्ते पूरी तरह टूट चुके हैं। कहीं खेतों में खड़े पानी से होकर गुजरना पड़ रहा है, तो कहीं गड्ढों में धंसते पांव संभालने के लिए एक-दूसरे का सहारा लेना पड़ रहा है।

    गांव राम सिंह भैनी की शीला देवी ने बताया कि करीब 15 दिन बाद वह गांव लौटी हैं। घर का क्या हाल है यह तो पहुंचने पर ही पता चलेगा, लेकिन रास्ते देखकर लग रहा है कि बर्बादी का मंजर बड़ा ही भयानक है। हमारी 19 एकड़ फसल पूरी तरह से तबाह हो चुकी है। वहीं गांव रेते वाली निवासी सिमरो बाई ने कहा कि वह चार सदस्यों के परिवार के साथ रिश्तेदारों के पास रुके थे। अब लौटे हैं तो घर का केवल एक कमरा बचा है।

    बाढ़ का पानी लगातार घट रहा है। अब सतलुज में पानी का बहाव एक लाख क्यूसेक से भी कम रह गया है। इसके बावजूद कई गांवों की सड़कों और गलियों में अब भी पानी जमा है, जिससे ग्रामीणों की मुश्किलें बनी हुई हैं। पानी पूरी तरह निकलने में अभी और समय लग सकता है। ऐसे हालात को देखते हुए प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्रों के 30 सरकारी स्कूलों को अगले आदेश तक बंद रखने का फैसला लिया है।