फाजिल्का में बाढ़ के कहर से तंबुओं में जिंदगी काट रहे परिवार, सता रही बर्बाद फसलों और मवेशियों की चिंता
फाजिल्का में बाढ़ से प्रभावित हुए कई परिवार मंडी लाधूका में तंबू लगाकर रहने को मजबूर हैं। लगभग 30 तंबुओं में 60 से अधिक परिवार 15-20 दिनों से शरण लिए हुए हैं अपने घरों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। राहत शिविरों में रह रहे इन परिवारों को खेतों में बर्बाद हुई फसल मवेशियों की परेशानी और घरों के नुकसान का दर्द सता रहा है।

मोहित गिलहोत्रा, फाजिल्का। बरसों की मेहनत से बनाए घरों से दूरी बनाकर फाजिल्का के गांव बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के कई परिवार अब खुले आसमान के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं। अनाज मंडी लाधूका के खाली भूखंड पर त्रिपाल से बने अस्थायी तंबू ही इनका सहारा हैं।
करीब 30 तंबुओं में 60 से ज्यादा परिवार बीते 15 से 20 दिनों से रह रहे हैं। घरों की असली स्थिति का अंदाजा लगाना अभी मुश्किल है, क्योंकि कहीं पानी अब भी भरा है तो कहीं दरारों का डर सताता है। धूप और बारिश के बीच बच्चे भी तंबुओं में हर पल गुजार रहे हैं।
मवेशियों की देखभाल और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने की चिंता ने इनकी मुसीबतें और बढ़ा दी हैं। थकान और परेशानी के बावजूद ये परिवार अपने घर लौटने की उम्मीद को दिल से लगाए हुए हैं, मानो आसमान के नीचे भी उम्मीद का दिया टिमटिमा रहा हो।
बाढ़ का प्रकोप झेल रहे फाजिल्का के 35 गांव
फाजिल्का के लगभग 35 गांव पिछले 23 दिनों से बाढ़ की मार झेल रहे हैं। 16 अगस्त से पानी बढ़ना शुरू हुआ था। पहले पानी केवल खेतों और गलियों तक सीमित था, लेकिन धीरे-धीरे सतलुज ने बाहरी जमीनों को भी निगल लिया और गांव दरिया में तब्दील हो गए।
कई परिवार रिश्तेदारों के यहां शरण लिए हुए हैं, जबकि कईयों को राहत केंद्रों में आना पड़ा। जिले में करीब 30 राहत केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें से 14 केंद्रों पर 2,700 से ज्यादा लोग रह रहे हैं। इनमें ज्यादातर स्कूल भवन हैं, जहां छाया और अन्य प्रबंध मौजूद हैं, लेकिन सबसे कठिन तस्वीर मंडी लाधूका की अनाज मंडी में देखने को मिली, जहां परिवार त्रिपाल के नीचे बीते 10 से 15 दिनों से घर लौटने का सपना आंखों में सजा कर रह रहे हैं।
गांव घूरका निवासी परमजीत कौर की जुबानी दिल को झकझोर देती है। 10 साल पहले पति के निधन के बाद उसने अपने बच्चों का पालन-पोषण पशुओं के दूध के सहारे किया। अब बाढ़ ने उसका घर भी छीन लिया।
वह कहती है कि मवेशी खुले आसमान के नीचे खड़े हैं, बच्चों की पढ़ाई ठप हो गई है, और घर ठीक है या नहीं, इसका अंदाजा कोई नहीं। अब सिर्फ यही दुआ है कि पानी जल्द कम हो और हम अपने घर लौटें। परिवारों का कहना है कि राहत भले मिल रही है, लेकिन यह लंबे समय तक सुकून नहीं दे सकती।
गांवों में पानी अब भी खड़ा है, घरों की हालत का अंदाजा नहीं, और भविष्य की चिंता दिलों में घर कर गई है। खेतों की बर्बाद फसल, मवेशियों की परेशानी और घरों के नुकसान का दर्द इन परिवारों के चेहरों पर साफ झलकता है। उम्मीद सिर्फ इतनी है कि हालात जल्द सामान्य हों और जिंदगी फिर से पटरी पर लौटे।
आढ़ती से पैसे उधार लेकर की थी बिजाई
गांव घूरका निवासी बलविंदर सिंह ने बताया कि उसने आढ़ती से पैसे उधार लेकर 3 एकड़ में फसल बोई थी, लेकिन बाढ़ ने एक दाना भी नहीं छोड़ा। मजबूरी में घर छोड़ तिरपाल के तंबू में रहना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि अब राहत भी कम हो गई है, रातभर मच्छर काटते हैं, नींद नहीं आती। मेडिकल टीम है, लेकिन दवाओं का असर भी कम हो रहा है। घर तो घर होता है, यहां हर दिन बस गुजारना है।
घर की रखवाली करना बना चुनौती
गांव घूरका निवासी मांगा सिंह की जिंदगी इन दिनों तंबू और घर के बीच फंसी हुई है। वह हर सुबह पानी से होकर अपने घर जाता है और फिर शाम को तंबू में लौटता है। घर में अब भी 3 से 4 फीट पानी भरा है।
फर्नीचर और सामान की हालत का अंदाजा नहीं, लेकिन चोरी का डर हर वक्त बना रहता है। मजबूरी में पानी के बीच जाकर घर देखना पड़ता है। रात को छत ही एकमात्र सहारा है, जहां किसी तरह सो पाते हैं। मांगा सिंह कहते हैं कि राहत शिविर में रहना भी मुश्किल है, लेकिन घर से दूरी उन्हें और बेचैन कर रही है।
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