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    नियमबद्ध जीवन ही सफलता की कुंजी : संदीप भारती

    दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने स्थानीय आश्रम में साप्ताहिक सत्संग करवाया।

    By JagranEdited By: Updated: Tue, 12 Nov 2019 12:25 AM (IST)
    नियमबद्ध जीवन ही सफलता की कुंजी : संदीप भारती

    संवाद सहयोगी, फाजिल्का : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने स्थानीय आश्रम में साप्ताहिक सत्संग करवाया। साध्वी संदीप भारती ने प्रवचन करते कहा कि आधुनिक जीवन शैली में अक्सर देखा जाता है कि लोग नियमों में बंधना पसंद नहीं करते। फिर चाहे वे नियम उनके व्यवसायिक, सामाजिक या व्यक्तिगत जीवन से संबंधित क्यों ना हो। उनके हिसाब से नियम स्वयं की स्वतंत्रता में दखल पैदा करते हैं, लेकिन वास्तविकता में एक नियमबद्ध जीवन ही सफलता की कुंजी होता है।

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    किसी भी खेल को खेलने के लिए उससे संबंधित नियम होते हैं, उसी प्रकार जीवन भी एक खेल है, जिसके कुछ विशेष नियम हैं, उन नियमों को निभाने पर ही जीवन रूपी खेल में विजयश्री का वरण किया जा सकता है। एक सुदृढ़ समाज का निर्माण भी नियमों की पालना से ही पूरा होता है। अगर समाज में कोई नियम ही ना हो, प्रत्येक व्यक्ति को मनचाहा कर्म करने की स्वतंत्रता हो तो उस समाज में केवल अव्यवस्था, अत्याचार, अनुचित, अन्याय, अर्थहीन व्यवहार की ही झलक दिखेगी। अंत: जब कोई नियम के विरुद्ध जाता है, तब वह स्वार्थी होकर स्वयं को ही नहीं बल्कि समूह समाज को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए कह सकते हैं कि नियम ही सुव्यवस्थित समाज की नींव होते हैं यदि हम बात करें गुरु शिष्य के सर्वोत्तम संबंध की, तो यहां भी नियमों का विशिष्ट स्थान है। गुरुदेव की आज्ञा शिष्य के लिए नियम समान होती है, हालांकि यह आज्ञा रूपी नियम कठोर अवश्य लगते हैं। कभी-कभी तो निजी आजादी के अवरोधक पर यह सर्वविदित है कि जो नदी स्वयं को बांध के समक्ष समर्पित कर देती है, वही संयम होकर विद्युत उत्पन्न करने में भी सक्षम हो पाती है। लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को रोशन करने का एक सशक्त माध्यम बन जाती है। ठीक उसी प्रकार जब एक शिष्य गुरु आज्ञा के बांध में बंध जाता है, उसका शिष्यत्व उत्कृष्टता को प्राप्त होता है। साथ ही वह अपने श्रेष्ठ आचरण और व्यक्तित्व से विश्व-पटल पर ऐसी अनूठी छाप छोड़ता है, जो आने वाली अनेक पीढि़यों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन जाती है। अंत में उन्होंने कहा के एक शिष्य के जीवन में गुरु के द्वारा दी गई आज्ञा का पालन करना भी बहुत जरूरी होता है तभी वह एक ही श्रेष्ठ शिष्य बन सकता है।