गुरु हरगोबिंद साहिब के वरदान से बसा है मंडी गोबिंदगढ़ शहर
छठे पातशाह साहिब श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के वचनों से बसी मंडी गोबिंदगढ़ को आज एशिया की प्रसिद्ध लोहानगरी से जाना जाता है जिसकी कभी कोई अपनी कोई पहचान नहीं थी। यह पहचान गुरु हरगोबिंद सिंह जी के वरदान से मिली।
इकबालदीप संधू, मंडी गोबिंदगढ़ :
छठे पातशाह साहिब श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के वचनों से बसी मंडी गोबिंदगढ़ को आज एशिया की प्रसिद्ध लोहानगरी से जाना जाता है जिसकी कभी कोई अपनी कोई पहचान नहीं थी। यह पहचान गुरु हरगोबिंद सिंह जी के वरदान से मिली। श्री हरगोबिंद साहिब ग्वालियर किले से जहांगीर की कैद से रिहा होकर आते समय यहा फाल्गुन की पंचमी वाले दिन इस धरती पर पानी की एक कच्ची ढाब पर 40 दिनों तक रुके थे यहा मौजूद एक बेरी से उन्होंने अपना घोड़ा बांधा था वह आज भी वहीं पर मौजूद है। गुरु साहिब ने यहा 40 दिनों तक संगत को धर्म मार्ग से जोड़ा व प्रवचनों से निहाल किया था। जिस ढाब पर गुरु साहिब रुके थे उन्होंने वचन दिया था कि कोई भी दुखी व्यक्ति अगर सच्चे मन से इस ढाव पर चेत्र की पूर्णमासी वाले दिन स्नान करेगा तो उसके दुख दूर होंगे। इसी स्थान पर एक जानकी दास लौहार गुरु साहिब के संपर्क में आया जिसने गुरु साहिब को आकर कहा कि गुरु साहिब मेरे माता जी आपके दर्शन करना चाहतीं हैं लेकिन व आखों से देख नहीं सकती।
इस पर गुरु साहिब ने कहा कि माता जी को चेत्र की पूर्णमास को इस ढाब पर स्नान करवाएं जिसके बाद माता शोभी जी को स्नान करवाया तो उनकी आखों की रौशनी वापिस आई और गुरु साहिब के दर्शन किए। यहा से युद्ध के लिए जाते समय जानकी दास ने गुरु साहिब को लोहे से शस्त्र बनाकर किए, जिसे गुरु साहिब बहुत प्रसन्न प्रसन्न हुए और जानकी दास को वरदान दिया कि यह जगह लोहा शहर के नाम पर दुनिया भर में शूमार होगी।
40 दिनों तक चलते हैं धार्मिक कार्यक्रम
गुरुद्वारा साहिब के हेडग्रंथी कुलविंदर सिंह ने बताया कि गुरुजी के चरण छोह समारोह सवा महीने तक निरंतर जारी रहते हैं जिसमें सिख इतिहास, गुरु की वाणी व संगतों को गुरु से जोडऩे के लिए कीर्तन दरबार, रागी-ढाड़ी, कथा वाचक व विद्वान सिख कौम का मार्ग दर्शन करते हैं बच्चों को धार्मिक मुकाबले व दस्तार मुकाबले, रक्तदान आदि आयोजन 40 दिन तक जारी रहते हैं। जोकि 11 मार्च को शुरु हुए थे और 19 अप्रैल को संपन्न होंगे। यह समारोह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और मीरी पीरी धार्मिक संस्था की ओर से करवाया जाता है।
पुरानी ढाब पर बनी है सुंदर इमारत
पुरातन समय में स्थान एक ढाब था वहा पर अब सुंदर सरोवर बन चुका है जहा गुरु जी ने विश्राम किया था वहा पर बड़ी सुंदर इमारत बन चुकी है जहा रोजाना ही हजारों संगत दर्शनों के लिए आती है। गुरु का लंगर अटूट बरता जाती है। जबकि लोग दिन भर यहा सेवा कार्य में जुटे रहते हैं। 800 के करीब लोहा ईकाईया लाखों लोगों को दे रही रोजी-रोटी
मंडी गोबिंदगढ़ में लाखों टन रोजाना लोहे की खप्त होती है। यहा 800 के करीब छोटी बड़ीं लोहा ईकाईया हैं जिनसे करीब लाखों लोग विभिन्न राज्यों से आकर अपना गुजर बसर और परिवार का पेट पाल रहे हैं। अरबों रुपयों का टैक्स सरकार को जाता है। जब जब कभी लोहे के कारोबार में मंदी आती है तो लोहा कारोबारी गुरुद्वारा साहिब में जाकर गुरु साहिब को याद करते हैं। सच्चे मन से की अरदास के बाद फिर मंदी के बाद अच्छे दिन आ जाते हैं।