Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बाबा फरीद के चमत्कार को देख राजा को हुआ था गलती का अहसास, चरण छू मांगी थी माफी

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 20 Sep 2020 03:55 PM (IST)

    बाबा शेख फरीद जी का फरीदकोट शहर के साथ गहरा और अटूट रिश्ता है।

    बाबा फरीद के चमत्कार को देख राजा को हुआ था गलती का अहसास, चरण छू मांगी थी माफी

    जागरण संवाददाता, फरीदकोट : बाबा शेख फरीद जी का फरीदकोट शहर के साथ गहरा और अटूट रिश्ता है। वे वर्ष 1215 में यहां पधारे थे। उस समय शहर का नाम यहां के राजा मौकलहर के नाम पर था। बेरहम राजा ने शहर में आए बाबा फरीद जी को बंदी बना लिया था, लेकिन बाबा जी के चमत्कार से राजा को गलती का अहसास हुआ। राजा ने बाबा फरीद जी के चरण छूते हुए माफी मांगी। यहां पर 40 दिन तक तपस्या करने के बाद बाबा शेख फरीद जी पाकपटन (अब पाकिस्तान) रवाना हो गए। उस दिन से शहर का नाम मौकलहर से बदल कर फरीदकोट रखा गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बाबा फरीद संस्था के मुख्य सेवादार एडवोकेट इंद्रजीत सिंह खालसा व सेवादार महीपइंद्र सिंह सेखो ने बताया कि बाबा फरीद जी ने अपनी वाणी में मानवता की सेवा का संदेश दिया है, उनके 112 श्लोक और चार शबद श्री गुरु ग्रंथ साहिब में भी दर्ज है। उनके चरण छोह वाले स्थानों पर गुरुद्वारा टिल्ला बाबा फरीद और गुरुद्वारा गोदड़ी साहिब बने हुए हैं, यहां हर वीरवार को हजारों लोग नमन करने आते हैं। महीप सेखो ने बताया कि बाबा फरीद के प्रति लोगों में अटूट आस्था है, पंजाब ही नहीं देश व विदेश से भी श्रद्धालु यहां नतमस्तक होने के लिए आते है।

    महीप सेखों ने बताया कि बाबा फरीद की समृद्ध विरासत को संस्था ने संभालने के साथ ही उसे आधुनिक रंग-रूप में लोगों के मध्य बनाया हुआ है। इस बार कोरोना महामारी के कारण मेले का स्वरूप छोटा कर दिया गया है, अन्यथा हर वर्ग व आयु के लोगों को उनके अनुकूल विषय वस्तु देखने व सुनने को मिलते थे। बाबा फरीद का परिचय

    फरीदुद्दीन गंजशकर जिन्हें बाबा फरीद और शेख फरीद के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 1173 में अविभाजित भारत के पंजाब के गांव कोठेवाल में हुआ, जोकि मुल्तान से दस किलोमीटर दूर है। इनके पिता का नाम जमालुद्दीन सुलेमान और माता मरयम बीबी था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह दिल्ली आ गए, जहां उन्होंने अपने गुरु कुतबुद्दीन बख्तियार काकी से इस्लाम मत की शिक्षा ली। 1235 में कुतबुद्दीन बख्तियार काकी की मृत्यु होने पर बाबा फरीद उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बने और अजोधन चले गए, जिसे आज पाकिस्तान में पाकपट्टन (पाकपट्टन शरीफ) के नाम से जाना जाता है। पाकपाटन जाते समय वह फरीदकोट में 40 दिनों तक रहे। फरीदकोट शहर में प्रवेश करने से पहले वह जहां रुके उसे गौदड़ी साहिब के नाम से जाना जाता है। इसी दौरान फरीदकोट शाही किले का निर्माण कार्य चल रहा था तो बाबा फरीद से भी मजदूरी करवाई गई थी, परंतु जब बाबा फरीद के सर पर मिट्टी से भरी टोकरी रखी गई तो बहुत ही चमत्कारी तरीके से वो टोकरी उनके सर के ऊपर हवा में ही लटकती रही। जिससे राजा और लोग बहुत प्रभावित हुए और राजा ने उनसे माफी भी मांगी।

    इबन्बतूता भी बाबा फरीद से मिला था

    अरब यात्री इबन्बतूता भी बाबा फरीद से मिले थे। उन्होंने बाबा फरीद के बारे में कहा है कि वो दिल्ली सुल्तान के आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे, और सुल्तान ने ही उन्हें अजोधन गांव दिया था। मशहूर सूफी संत खलीफा निजामुद्दीन औलिया भी बाबा फरीद जी के चेले थे और बाद में उनके उत्तराधिकारी बने।

    बाबा फरीद के कुछ प्रमुख दोहे-

    रुखी सुक्खी खाय के, ठण्डा पाणी पी,

    वेख पराई चोपड़ी, न तरसाइये जी।

    अर्थात रुखी सूखी जो मिले खाओ और ठंडा पानी पियो। दूसरे की चुपड़ी रोटी देखकर ईष्र्या मत करो।