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    आजादी आंदोलन में प्रजामंडल का अहम रोल

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 24 Mar 2021 07:07 PM (IST)

    प्रजामंडल लहर के तहत सबसे तेज विरोध देश भर में अंग्रेजी हुकूमत की हुई थी।

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    आजादी आंदोलन में प्रजामंडल का अहम रोल

    प्रदीप कुमार सिंह, फरीदकोट

    प्रजामंडल लहर के तहत सबसे तेज विरोध देश भर में अंग्रेजी हुकुमूत की समर्थक फरीदकोट रियासत के विरूद्ध 1946 में हुआ था। विरोध इतना ज्यादा तीखा था कि रियासत के अंतर्गत आने वाले सभी हिस्सों में 28 दिनों तक मुकम्मल हड़ताल रही।

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    कांग्रेस पार्टी की ओर से पंडित जवाहर लाल नेहरू हड़ताल को समर्थन देने के लिए 27 मई 1946 की सुबह फरीदकोट पहुंचे थे। फरीदकोट रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते हुए ही फरीदकोट रियासत के मजिस्ट्रेट ने रियासत में धारा 144 लागू होने की बात करते हुए, रियासत में न दाखिल होने का उन्हें नोटिस थमा दिया, जिसे नेहरू ने फाड़ कर फेंक दिया और फरीदकोट शहर में दाखिल हुए। कुछ समय उपरांत वह हड़ताली लोगों के साथ पुरानी दानामंडी पहुंचे और नीम के पेड़ के पास तिरंगा झंडा लहराया। नेहरू द्वारा तिरंगा फहराने के बाद फरीदकोट रियासत के राजा हरेन्द्र सिंह को लगा कि अब नेहरू से वार्ता करनी चाहिए। इसके बाद शाम के समय राजा हरेन्द्र सिंह व पंडित नेहरू के मध्य बैठक हुई, जिसमें रियासत द्वारा जेल में बंद किए गए सत्याग्रहियों को छोड़ने की सहमति बनी। इसे नेहरू-हरेन्द्रा पैक्ट के रूप में जाना जाता है। शाम को सबकुछ ठीक होने पर उसी दिन रात्रि में पंजाब मेल से पंडित नेहरू दिल्ली वापस लौट गए। ऐसे बनी हड़ताल की रूपरेखा

    अंग्रेजी हुकुमत समर्थक फरीदकोट रियासत किसी को तिरंगा फहराने नहीं दे रही थी। कुछ उत्साही युवकों द्वारा वर्तमान खजाना दफ्तर के पास तिरंगा फहरा दिया गया। यह तिरंगा फरीदकोट रियासत के राजमहल के समक्ष फहराया गया था, जो कि फरीदकेाट रियासत के झंड़े से ऊपर फहरा रहा था, जिसे देख युवकों को पकड़कर जेल में डालने के आदेश रियासत के राजा द्वारा दिए गए। उक्त घटना ने धीरे-धीरे तूल पकड़ा और फरीदकोट रियासत के विरूद्ध व देश की आजादी के समर्थन में हड़ताल शुरु हो गई।

    27 मई 1946 को नेहरू व ज्ञानी जैल सिंह की पहली मुलाकात हुई थी-

    1946 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया और यहां के हालात के चलते 27 मई 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू फरीदकोट आऐ। पंडित जी भी ज्ञानी जी के व्यक्तित्व व जोश से काफी प्रभावित हुए। पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पीए रहे व वर्तमान कांग्रेस जिला अध्यक्ष सुरेन्द्र गुप्ता ने बताया कि आजादी आंदोलन के दौरान फरीदकोट रियासत में प्रजामंडल नामक आंदोलन जोर-शोर से चल रहा था। इसी दौरान आजादी के दीवानों को तिरंगा झंडा यहां पर फहराने से रोक दिया गया और शहर में धारा 144 लागू कर दी गई। इसकी खबर लगने पर 27 मई 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू फरीदकोट आए। इसी दिन पंडित नेहरू व पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की फरीदकोट में पहली मुलाकात हुई थी। आंदोलन को दबाने के लिए किए गए जुल्मों के आगे ज्ञानी जी कभी नहीं झुके। इसके चलते उन्हें पांच वर्ष की सजा सुनाई गई।

    बाक्स-

    फरीदकोट में प्रजामंडल लहर के संस्थापक थे बाबा दियाल सिंह-

    रियासत फरीदकोट में बगावत का झंडा बुलंद करने वाली प्रजामंडल लहर के संस्थापक स्वतंत्रता सेनानी बाबा दियाल सिंह ने अपना सारा जीवन देशभक्ति के नाम अर्पित किया। 33 महीने लगातार जेल काटने के पश्चात जेल से रिहा होते ही वह फिर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े व 1946 में शुरू किए गए झंडा सत्याग्रह में उन्हें कौंसिल आफ एक्शन चुना गया। आंदोलन के दौरान उन्होंने कोटकपूरा की ऐतिहासिक पुरानी अनाज मंडी के पीपल के पेड़ पर तिरंगा फहरा इस क्षेत्र में तत्कालीन सरकार व राजवंश के विरुद्ध संघर्ष का झंडा बुलंद किया। 15 अगस्त 1947 को देश की स्वतंत्रता के बाद भी उन्हें तत्कालीन राजा फरीदकोट के आदेश पर प्रजा मंडल लहर के सक्रिय सदस्य होने के चलते जेल जाना पड़ा जहां से वह 10 अक्टूबर 1948 को रिहा हुए। फरीदकोट के नामवर देश भक्तों में शुमार बाबा दियाल सिंह आखिर 31 जुलाई 1987 को इस संसार से विदा हो गए।