Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आजादी आंदोलन के नायक रहे बाबा दयाल सिंह के नाम पर रखा सिविल अस्पताल कोटकपूरा का नाम

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 22 Nov 2021 09:00 AM (IST)

    बाबा दयाल सिंह सिविल अस्पताल का नाम कोटकपूरा के महान स्वतंत्रता संग्रामी बाबा दयाल सिंह के आजादी की लहर में डाले गए महान योगदान को मुख्य रखकर रखा गया था।

    Hero Image
    आजादी आंदोलन के नायक रहे बाबा दयाल सिंह के नाम पर रखा सिविल अस्पताल कोटकपूरा का नाम

    चन्द्र कुमार गर्ग, कोटकपूरा : बाबा दयाल सिंह सिविल अस्पताल का नाम कोटकपूरा के महान स्वतंत्रता संग्रामी बाबा दयाल सिंह के आजादी की लहर में डाले गए महान योगदान को मुख्य रखकर रखा गया था।

    बाबा दयाल सिंह यादगार ट्रस्ट के महासचिव सुरिंदर सिंह ने बताया कि बाबा दयाल सिंह सरकारी अस्पताल का नाम क्वीन मैरी जनरल अस्पताल था और इसका नींव पत्थर मई 1935 में उस समय के फरीदकोट रियासत के राजा हरिंदर सिंह बराड़ ने रखा था। आजादी से कुछ वर्षो के बाद तक यह नाम इस तरह ही चलता रहा, परंतु बाबा दयाल सिंह जी के देहांत के बाद उस समय के पंजाब के डिप्टी सीएम हरचरन सिंह बराड़ ने इस अस्पताल के नाम बदलने की पेशकश की और 30 मई 2002 को सेहत मंत्रालय के पत्र के आधार पर इस क्वीन मैरी जनरल अस्पताल कोटकपूरा का नाम बदलकर बाबा दयाल सिंह सिविल हस्पताल कोटकपूरा कर दिया गया। बाबा दयाल सिंह का जन्म गांव शेर सिंह वाला में 1895 को हुआ था

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बाबा दयाल सिंह जी का जन्म गांव शेर सिंह वाला (फरीदकोट) में पांच अगस्त 1895 को हुआ था। बचपन में ही पिता का साया उनके सिर से उठ गया और माता पंजाब कौर की मदद के साथ उन्होंने बचपन में ही खेती शुरू कर दी थी। उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन 1923 में जैतो वाले मोर्चो में भाग लेकर शुरू किया और 1935 में अकाली दल के खजांची बने। 1937 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए। आजादी से पहले फरीदकोट रियासत एक छोटी सी रियासत थी और आजादी की लड़ाई में हिस्सा डालने वाली यह रियासत अगली कतारों में थी, और आजादी की लड़ाई को और भी तेज करने के लिए उस समय के दौरान बाबा दयाल सिंह जी की तरफ से प्रजा मंडल की नींव रखी गई थी। इसके बाद फरीदकोट पुलिस द्वारा उनको परेशान करना शुरू कर दिया गया था। उनको जनवरी 1938 में कोटकपूरा थाने में 24 घंटे बंद रखा गया। जुलाई 1939 में दो साल की सजा सुनाकर जेल भेज दिया और फिर जेल के नियम तोड़ने का चार्ज लगाकर सजा को नौ महीने और ज्यादा कर दिया गया। उस समय देश के राष्ट्रपति बने ज्ञानी जैल सिंह जी भी उनके साथ थे। बाबा जी को उस समय सबसे खतरनाक कैदी समझा जाता था। इसलिए जेल में उनके साथ बुरा बरताव किया जाता था। इस कारण उनकी दाहिनी कलाई टूट गई थी। इसके रोष के तौर पर बाबा जी की तरफ से 23 दिन की लंबी भूख हड़ताल की गई थी। कुछ दिनों के बाद जेल अधिकारियों ने उनको फिर कष्ट देने शुरू कर दिए। डंडा बेड़ी की 2 हफ्तों की सख्त सजा और 15 दिन खड़ी चक्की सजा सुनाई गई। उनको सख्त सजा दी जाती रही परंतु वह अपने इरादे पर दृढ़ रहे।

    1940 में कैदियों के हक में उठाई थी आवाज

    उनके द्वारा मार्च 1940 में राजनैतिक कैदियों को अच्छी खुराक न दिए जाने के खिलाफ भूख हड़ताल की और इस दौरान आठ घंटे खड़ी हथकड़ी लगाई जाती रही। आखिर 33 महीने बाद उनको रिहा कर दिया गया। उन्होंने 28 अप्रैल 1946 को झंडा सत्याग्रह शुरू किया। इसी दौरान बाबा दयाल सिंह को कौंसिल आफ एक्शन का प्रधान बनाया गया और 27 मई 1946 को पंडित नेहरू के फरीदकोट आने पर यह सत्याग्रह कामयाबी के साथ खत्म हुआ और पंडित नेहरू ने बाबा जी को गांधी आफ फरीदकोट के नाम के साथ सम्मानित किया गया। पंजाब कांग्रेस और आल इंडिया कांग्रेस के 20 साल मेंबर रहने के बाद वह कुछ समय बीमार रहने लगे और जुलाई 1987 को उनका देहांत हो गया। उस समय के डिप्टी कमिश्नर भुपिंदर सिंह सिद्धू की तरफ से कोटकपूरा की तिनकौनी चौक का नाम बाबा दयाल सिंह चौक रख दिया और अब उनके परिवार की तरफ से इस चौक में बाबा जी का बुत लगा कर इस को बढि़या दिखावट प्रदान कर दी गई। अस्पताल में 80 बेडों की सुविधा उपलब्ध

    बाबा दयाल सिंह सिविल अस्पताल के सीनियर मेडिकल अफसर डा. हरिदर सिंह गांधी ने बताया कि इस अस्पताल में 80 बेडों की सुविधा उपलब्ध है और अस्पताल में सात स्पेशल डाक्टर और पांच जनरल डाक्टर हैं। अस्पताल में गायनी विभाग, हड्डियों का विभाग, डायलिसिस विभाग, स्किन समस्या और ब्लड बैंक में मरीजों का इलाज किया जाता है। उन्होंने बताया कि अस्पताल में सर्जरी करने वाले सर्जन डाक्टर और रेडियोलाजिस्ट की जरूरत है।