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    'शादी का झांसा देकर मेरा रेप किया', महिला की दलील के बाद आरोपी बरी; कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 09:45 AM (IST)

    एक महिला ने एक व्यक्ति पर शादी का वादा करके बलात्कार करने का आरोप लगाया, लेकिन अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि महिला के आरोपों में असंगतियां थीं और वह अपना मामला साबित करने में विफल रही। अदालत ने यह भी कहा कि महिला ने शारीरिक संबंध बनाने से पहले कोई विरोध नहीं किया था और उसके पास आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे।

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    अदालत ने रेप के आरोपी को किया बरी (जागरण फोटो)

    दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि शादीशुदा और पूर्णत: परिपक्व महिला का यह दावा कि वह विवाह के वादे पर शारीरिक संबंध बनाने को तैयार हुई, कानूनी और तथ्यात्मक रूप से बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं। इसलिए इस आधार पर किसी आरोपित पर लगाए गए दुष्कर्म के आरोप टिक नहीं सकते। जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने अपने आदेश में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह सहमति झूठे वादे पर आधारित नहीं, बल्कि विवाह संस्था की लापरवाही का प्रतीक है।

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    अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता स्वयं एक अधिवक्ता है, जिसने 2019 में कानून की डिग्री ली है, वकालत कर रही है और वैवाहिक विवाद में शामिल है। ऐसा व्यक्ति अपने हर कदम की कानूनी परिणति जानता है। इसलिए अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक वैध रूप से विवाहित, शिक्षित और कानूनी जानकारी रखने वाली महिला को किसी भी व्यक्ति द्वारा विवाह के वादे पर ‘प्रलोभित’ किया जाना अकल्पनीय है।

    मामले में फरवरी 2020 में दर्ज एफआईआर में आरोपित अधिवक्ता पर धारा 376(2), 180 और 506 आइपीसी के आरोप लगाए गए थे, जिन्हें कोर्ट ने पूरी तरह रद करते हुए कहा कि इस घटना की परिस्थितियाँ स्वयं यह दिखाती हैं कि पक्षकारों का रिश्ता दीर्घकालीन और सहमति पर आधारित था।

    इस मामले में आरोपित अधिवक्ता और उसके पिता शिकायतकर्ता महिला के वकील थे। पेशेगत संबंधों के दौरान दोनों करीब आए, और यह रिश्ता वर्षों तक सहमति के साथ चलता रहा। परंतु नाटकीय मोड़ तब आया जब शिकायतकर्ता की सगी बहन की सगाई उसी आरोपित अधिवक्ता से हो गई।

    अदालत ने कहा कि दस्तावेज़ों और तथ्यों से स्पष्ट है कि शिकायत उसके बाद उत्पन्न हुई भावनात्मक उथल-पुथल, असंतोष और निजी अस्थिरता का परिणाम थी, न कि किसी दंडनीय अपराध का। जस्टिस नागपाल ने कहा कि अदालत न केवल पुलिस जांच की सामग्री बल्कि वे दस्तावेज भी देख सकती है जिनकी सत्यता पर कोई विवाद नहीं है।

    दुष्कर्म का आरोप कानून की आत्मा के विपरीत विवाह के वादे पर ‘भ्रमित होकर’ संबंध बनाना तथ्यगत और विवेकगत दोनों स्तरों पर असंभव है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि यह मान भी लिया जाए कि आरोपी ने विवाह का वादा किया था, तब भी एक शादीशुदा महिला का इस वादे पर संबंध बनाना “कानूनी तर्क से परे” है। अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में दुष्कर्म का आरोप बनना कानून की आत्मा और तर्क दोनों के विपरीत है। विवाह का वादा केवल तब ‘प्रलोभन’ माना जा सकता है।