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    चंडीगढ़ में एक साथ मरे 50 तोते, इन पक्षियों की मौत के लिए तूफान नहीं विभाग और अधिकारी जिम्मेदार

    By Ankesh ThakurEdited By:
    Updated: Sun, 30 May 2021 04:31 PM (IST)

    चंडीगढ़ की स्वयंसेवी संस्था युवसत्ता के फाउंडर प्रमोद शर्मा ने कहा कि हॉर्टीकल्चर विभाग कभी भी एक मत नहीं होता। जिसे जो ठीक लगता है वह करके चला जाता है। इसका खामियाजा पर्यावरण को भुगतना पड़ रहा है। इस समय शहर के दो तिहाई पेड़ खोखले हो चुके हैं।

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    चंडीगढ़ के सेक्टर-37 में एक साथ मरे 50 तोते।

    चंडीगढ़, [सुमेश ठाकुर]। चंडीगढ़ को पत्थरों के साथ हरियाली के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इसकी पहचान ग्रीनरी या फिर इसकी बनावट के लिए नहीं बल्कि शहर में बैठे अधिकारियों से होगी। शहर के पर्यावरण की संभाल के लिए पांच विंग हैं। बावजूद शहर के पर्यावरण को ज्यादा नुकसान हो रहा है। इसी का खामियाजा रविवार सुबह सेक्टर-37 में देखने को मिला। जहां पर एक पेड़ में घर बनाकर रह रहे करीब 50 तोते तूफान से गिरे पेड़ के कारण एक साथ मर गए।

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    उल्लेखनीय है कि नगर निगम चंडीगढ़ के पास हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट दो भागों में बंटा है। उसी तरह से प्रशासन में भी हॉर्टीकल्चर विभाग दो अधिकारियों के अधीन काम कर रहा है। वहीं वन विभाग के लिए अलग से विंग तैयार कर दिया गया है। जिनका आपस में तालमेल ठीक नहीं होने के चलते शहर पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। 

    दो तिहाई पेड़ हो चुके हैं खोखले

    चंडीगढ़ की स्वयंसेवी संस्था युवसत्ता के फाउंडर प्रमोद शर्मा ने कहा कि हॉर्टीकल्चर विभाग कभी भी एक मत नहीं होता। जिसे जो ठीक लगता है वह करके चला जाता है। इसका खामियाजा पर्यावरण को भुगतना पड़ रहा है। इस समय शहर के दो तिहाई पेड़ खोखले हो चुके हैं। कुछ पेड़ों की जड़ें कमजोर हो चुकी हैं। कई पेड़ ऐसे हैं जिनमें दीमक लगा हुआ है। वहीं, कई पेड़ ऐसे है जिनकी प्रोनिंग सही ढंग से नहीं हुई है। इस वजह से आंधी तूफान के कारण यह पेड़ धराशायी हो रहे हैं। इससे शहरवासियों को भी नुकसान हो रहा है और पक्षी भी मर रहे हैं। इसी का ही नतीजा है कि शनिवार को आए तूफान से सैकड़ों पेड़ गिर गए।

    कंक्रीट डाल कम कर दी पेड़ों की जिदंगी

    प्रमोद शर्मा ने कहा कि शहर में ब्यूटीफिकेशन के नाम पर कंक्रीट की लिपापोती की जा रही है। कभी शहर में साइकिल ट्रैक बनता है तो कहीं पर स्लिप रोड। जिसके चलते पेड़ की जड़ों को कंकरीट से भर दिया जाता है। जब पेड़ की जड़े कंकरीट से ढक जाती हैं तो उनमें न तो पानी जा पाता है और इसका परिणाम होता है कि जड़े खुद की पकड़ मिट्टी से छोड़ जाती हैं और एक हवा के झटके से ही पेड़ गिर जाता है।

    यह है एक्सपर्ट की राय

    पर्यावरण विशेषज्ञों की मानें तो पेड़ की किस्म देखकर उसकी जड़ों के लिए जमीन खुली छोड़नी चाहिए। बरगद के पेड़ की जड़े 10 से 15 फीट तक जाती है जबकि पीपल की जड़े छह से आठ फीट और अन्य फूलदार पेड़ों की जड़ों के लिए पांच से सात फीट की जगह मिलनी जरूरी है। यदि जड़ों को इतना खुला नहीं छोड़ा जाता तो वह समय से पहले हरे-भरे होने के बावजूद गिर जाते है।