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    चंडीगढ़ में शिक्षा विभाग का दोहरा रवैया, सेक्टरों के स्कूलों में पर ध्यान, गांवों के बच्चों की चिंता नहीं

    Updated: Sun, 10 Aug 2025 01:42 PM (IST)

    चंडीगढ़ के सेक्टरों में बने सरकारी स्कूलों में बेहतर सुविधाएं देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च हो रहे लेकिन गांवों के स्कूलों की अनदेखी की जा रही है। शौचालयों और साफ पानी की सुविधा का भी अभाव है। शिक्षा विभाग वर्षों से इन समस्याओं पर आंख मूंदे बैठा है। इससे बच्चों की पढ़ाई पर भी असर पड़ रहा है।

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    सरकारी स्कूलों की हालत बयां करती ये पुरानी तस्वीर है। तीन साल पहले बने स्कूल की दीवार ढह गई थी।

    मोहित पांडेय, चंडीगढ़। वाह रे शिक्षा विभाग तेरा दोहरा रवैया। सेक्टरों में बने सरकारी स्कूलों में बेहतर सुविधाएं देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च हो रहे, लेकिन गांवों के स्कूलों की अनदेखी क्यों। सवाल यह है कि क्या सिर्फ सेक्टर के बच्चों की पढ़ाई और सुरक्षा की चिंता है, गांवों की नहीं। इन बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई, दोनों सवालों के घेरे में हैं। 

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     शहर में कुल 119 सरकारी स्कूल हैं, लेकिन गांवों के स्कूलों में बदहाली अपने चरम पर है। गांव मलोया, राजदरबार, हल्लोमाजरा, रायपुर खुर्द, खुड्डा जस्सू और खुड्डा अलीशेर जैसे स्कूलों में बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ने जाने को मजबूर हैं।

    दैनिक जागरण के अभियान कितने सुरक्षित हैं स्कूल के तहत की जा रही पड़ताल में सामने आया कि गांवों या शहर के दूर दराज इलाकों में स्थित सरकारी स्कूलों की तस्वीर डराने वाली है। यहां न तो मूलभूत सुविधाएं हैं, न ही भवनों की हालत सुरक्षित कही जा सकती है।

    कई स्कूलों में दीवारें जगह-जगह से टूटी हुई हैं, तो कहीं पिलर जर्जर होकर खतरा बन चुके हैं। छोटे-छोटे क्लासरूम में बच्चों को ठूंस कर पढ़ाया जा रहा है, जिससे पढ़ाई पर भी असर पड़ रहा है। शौचालयों और साफ पानी की सुविधा का भी अभाव है। शिक्षा विभाग वर्षों से इन समस्याओं पर आंख मूंदे बैठा है।

    अभिभावक नहीं उठाते आवाज, तभी तो नहीं दे रहा काई ध्यान 

    स्कूलों की बदहाली के लिए केवल शिक्षा विभाग या प्रशासन जिम्मेदार नहीं है। बल्कि बच्चों के अभिभावक भी जिम्मेदार है। अधिकतर अभिभावक स्कूल में जाकर कभी नहीं देखते कि उनका बच्चों किन स्थितियों में पढ़ रहा है। इसके साथ बहुत सारे अभिभावक ऐसे हैं, जो बच्चों को स्कूल के गेट के सामने छोड़ने और लाने तक ही सीमित हैं। वह कभी स्कूल के अंदर जाकर स्कूल का असल स्वरूप नहीं देखतेहैं और सवाल नहीं उठाते हैं।