तहकीकात: वो साइकिल पर आता, टॉफी देकर… पंजाब में 17 मासूमों के साथ हैवानियत, पढ़िए कहानी ‘बेबी किलर’ दरबारा सिंह की
साल 2004 की बात है इन दिनों पंजाब में एक शख्स रोजाना साइकिल पर फेरी लगाया करता था। साथ कुछ टॉफियां रखता था और जब उसे गली में खेलते बच्चे दिखाई देते तो उन्हें लालच देकर अपनी साइकिल की पीछे वाली सीट पर बिठा लेता। फिर न तो इस फेरी वाले शख्स का पता चलता और न ही पता चलता उस मासूम का जो टॉफी लिए उसके साथ बैठ जाता।

गुरप्रीत चीमा, चंडीगढ़। करीब 21 साल पहले की बात है। तारीख थी 25 अक्टूबर, 2004। जालंधर में एक बस्ती मिट्ठू नाम का इलाका है। यहां एक मजदूर की छह साल की बच्ची अपने चचेरे भाई के साथ खेल रही थी। इस दौरान एक साइकिल सवार शख्स बच्ची के पास रुकता है, अपने बैग से कुछ टॉफियां निकालकर उसे देता है। बच्ची साइकिल वाले अंकल के साथ पीछे वाली सीट पर बैठ जाती है। शाम तक बच्ची के घर न पहुंचने पर घर वाले पुलिस को खबर देते हैं।
दैनिक जागरण की ‘तहकीकात’ में पहली कहानी उस सीरियल किलर की, जिसने 2004 से 2008 तक 17 मासूमों के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं।
आज की कहानी में हम बात करेंगे पंजाब के कुख्यात ‘बेबी किलर’ उर्फ दरबारा सिंह की। वो बेबी किलर जो बच्चों का शोषण करने के बाद गला काटकर बेरहमी से मार डालता। दरबारा ने एक के बाद एक करीब 20 मासूमों को अपना शिकार बनाया।
- कहानी की शुरुआत साल 1952 से… जब पंजाब की पवित्र नगरी अमृतसर के ब्यास में इस दरिंदे दरबारा सिंह का जन्म होता है।
- पढ़-लिखकर दरबारा सिंह 1975 में भारतीय वायु सेना में भर्ती हो जाता है और पोस्टिंग पठानकोट के एयरफोर्स स्टेशन में होती है।
- कुछ सालों बाद दरबारा पर एक मेजर के परिवार पर हैंड ग्रेनेड फेंकने के आरोप लगते हैं, हालांकि इस मामले में उसे बाद में बरी भी कर दिया जाता है।
इसके बाद दरबारा सिंह का नाम पहली बार 1996 में हाईलाइट होता है। मामला कपूरथला में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या को अंजाम देने का था। 1997 में तीन और दुष्कर्म के मामलों में दरबारा को अदालत ने 30 साल की सजा सुनाई। कई साल ये शख्स जेल में कैद रहा, लेकिन 2003 में इसके कुछ अच्छे कामों को देखते हुए इसे रिहा कर दिया गया।
इसके बाद शुरू होती है दरबारा सिंह उर्फ बेबी किलर के जुर्म की असली कहानी।
जेल में बैठा दरबारा सिंह भले ही अच्छे काम कर रहा हो लेकिन उसके मन में बदले की आग थी। बदले की जिस वजह से उसे जेल जाना पड़ा था। दरअसल, जेल जाते ही उसके मन में एक बात आ जाती है कि अप्रवासी मजदूर की वजह से उसे जेल जाना पड़ा।
साइकिल वाले अंकल टॉफियां लेकर आते और ले जाते
साल 2004 में 25 अक्टूबर के दिन साइकिल पर फेरी लगा रहा शख्स यही दरबारा सिंह था। जो टॉफियों से भरा एक बैग लिए गली-गली घूम रहा था। उसकी नजर रास्ते में खेलती 6 साल की बच्ची पर पड़ी। दरबारा मासूम बच्ची को कहीं दूर ले गया। शाम को परिवार वालों ने पुलिस को बच्ची के लापता होने की सूचना दी।
2005 में अप्रैल तक गायब होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती ही गई। छानबीन के बाद पुलिस को दरबारा के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। इन दिनों 'बेबी किलर' के नाम से लोग खौफ खाने लगे थे।
अधमरी हालत में शिकार को गला काटकर मार डालता
इस पूरे मामले की जैसे-जैसे परतें खुलती गईं, पुलिस के होश भी उड़ गए। पुलिस के पैरों तले जमीन तो तब खिसकी जब दरबारा सिंह ने इस बात को अपने मुंह से कबूला कि उसने 17 मासूम बच्चों के साथ हैवानियत की।
दरबारा ने बताया कि वह हैवानियत को अंजाम देने के बाद लड़कियों की लाशों को खडूर साहिब में एक रैया नाम की जगह पर दफना दिया करता था। इन 17 मासूमों में 15 लड़कियां थीं और 2 लड़के। उसने ये बात भी बताई कि बच्चों को मारने से पहले वह उनका शोषण किया करता था। इसके बाद जब मासूम की हालत अधमरी हो जाती तो वह उन्हें आराम से मार देता था।
पत्नी ने 'बेबी किलर' का शव लेने से किया इनकार
कुख्यात दरबारा सिंह को 7 जनवरी 2008 को मौत सजा सुनाई गई। लेकिन 2009 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया और पटियाला की सेंट्रल जेल में वह उम्र कैद की सजा काटता रहा। इसके बाद ये दरिंदा जेल में ही बीमार पड़ता है और 2018 में इसे एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है, जहां इसकी मौत हो गई।
बड़ी बात ये है कि दरबारा सिंह की पत्नी और एक बेटी भी थी, जिन्होंने उसकी मौत के बाद उसका शव स्वीकार नहीं किया। दरबारा का शव राजिंद्रा अस्पातल में करीब चार दिन तक यूंही पड़ा रहा। इसके बाद जेल प्रबंधन को ही उसका अंतिम संस्कार करना पड़ा।
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