पंजाब में बीस साल नहीं हुआ एसआईआर, हुआ तो कटेंगे लाखों वोट, क्योंकि विदेश में बस गए लोग
बिहार में आगामी चुनाव से पहले वोटर सूची पर बहस के बीच यदि पंजाब में भी एसआईआर हो तो लाखों वोट कट सकते हैं। पंजाब में 2006 के बाद एसआईआर नहीं हुआ है। चुनाव आयोग का उद्देश्य वोटर लिस्ट से फर्जी नाम हटाना है। पलायन के कारण बड़ी संख्या में युवा विदेश में बस गए हैं पर उनके वोट यहां बने हुए हैं।

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। बिहार में विधानसभा चुनाव से पूर्व वोटर सूची को लेकर किए जा रहे स्पेशल इन्टेंसिव रिविजन (एसआईआर) को लेकर छिड़ी बहस के बीच यदि पंजाब में भी इसी प्रकार का प्रयोग किया जाता है तो यहां भी लाखों वोट कटेंगे। क्योंकि लाखों लोग विदेश में बस गए हैं। पंजाब में आखिरी बार एसआईआर 2006 में हुआ था।
हर साल और किसी भी चुनाव से पूर्व स्पेशल समरी रिविजन (एसएसआर) होता है लेकिन चूंकि एसआईआर को लेकर विवाद खड़ा हो गया है और बिहार के केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी केस चल रहा है। इसलिए फिलहाल राज्यों में एसआईआर का काम शुरू करने से पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाएगा।
भारतीय चुनाव आयोग सभी राज्यों को एसआईआर कराने का आदेश दिया है। बिहार में यह एसआरआर हो चुका है। एसआईआर के तहत वोटर लिस्ट में सुधार किया जा रहा है। इसका उद्देश्य है कि वोटर लिस्ट से फर्जी नाम हटाए जाएं। डुप्लीकेट नाम काटे जाएं और लिस्ट को और भी सही-सटीक बनाया जाए। एसआईआर में सभी का वोट शुरू से बनता है। ऐसे में बिहार में 63 लाख से ज्यादा वोट कटने की संभावना है।
पंजाब में इसलिए एसआईआर जरूरी
पंजाब के मामले में एसआईआर को लेकर दिया आदेश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले दो दशकों से पंजाब से भारी पलायन हुआ है। खासतौर पर युवा वोटर जो पढ़ाई के नाम पर विदेशों जिनमें कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और यूके में जाने का रूझान है। लाखों लोग विदेश गए हैँ और वहां के स्थायी नागरिक बन गए हैं। चूंकि देश में दोहरी वोट का कोई प्रविधान नहीं है इसलिए उनकी वोट कटवाई जानी बनती हैं। चुनाव आयोग के पास ऐसा कोई मैकेनिज्म भी नहीं है कि विदेशों में गए ऐसे एक एक व्यक्ति की नागरिकता की पहचान कर ले इसलिए वे बरसों से यहां भी वोटर बने हुए हैं।
एसआईआर का उद्देश्य वोटर लिस्ट को सटीक बनाना
एसआईआर का मुख्य उद्देश्य ही वोटर लिस्ट से फर्जी, डुप्लीकेट नाम काटना और लिस्ट को और सही-सटीक बनाया जाना होता है। चुनाव विभाग के सूत्रों का कहना है कि मतदाता सूची में तो हर साल ही रिविजन होता है और जिसमें शामिल किए जाने वाले और काटे जा रहे मतदाताओं को लेकर दावे और ऐतराज मांगे जाते हैं । अगर किसी का नाम शामिल करने को लेकर कोई ऐतराज जताता है तो संबंधित एआरओ उसे दूर करते हैं।
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