फिल्म द कश्मीर फाइल्स देख लोग बोले- यह कश्मीरी पंडितों पर हुई बर्बरता की दास्तान है
चंडीगढ़ के सिनेमा घरों में 11 मार्च को रिलीज हुई फिल्म द कश्मीरी फाइल्स को देखने के लिए शहर के लोगों में भी उत्साह है। ट्राईसिटी के लगभग सभी सिनेमा घरों में इस फिल्म के रोजाना दो से तीन शो चल रहे हैं।
वैभव शर्मा, चंडीगढ़
चंडीगढ़ के सिनेमा घरों में 11 मार्च को रिलीज हुई फिल्म द कश्मीरी फाइल्स को देखने के लिए शहर के लोगों में भी उत्साह है। ट्राईसिटी के लगभग सभी सिनेमा घरों में इस फिल्म के रोजाना दो से तीन शो चल रहे हैं। लोगों में फिल्म को लेकर जो उत्साह है, उसका प्रमाण स बात से मिलता है कि द कश्मीर फाइल्स के सभी शो हाउसफुल चल रहे है। लोगों का कहना है कि यह फिल्म नहीं दास्तान है कश्मीरी पंडितों पर हुई बर्बरता की। साल 1990 में कश्मीरी पंड़ितों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। लगभग 32 साल बाद कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म को लेकर विवेक अग्निहोत्री ने द कश्मीर फाइल्स फिल्म बनाई। शहर का हर वर्ग इस फिल्म को देखने के लिए सिनेमा घरों के बाहर एकत्रित हो रहा है। इस फिल्म को देखने के लिए लोगों ने ऑनलाइन भी टिकट बुकिग कर रहे हैं। लोगों की प्रतिक्रियाएं
फिल्म में जो दिखाया गया है वो सत्य है। जो जख्म 1990 में कश्मीरी पंडितों को मिले थे वो आज भी ताजा है। मैं खुद उस मंजर का गवाह हूं। हमारा घर जला दिया गया था, हमारे साथ बुरा व्यवहार किया गया और हमें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया। फिल्म के माध्यम से उन सब बातों को बखूबी दिखाया गया है।
- हरिश पंडित, कश्मीरी पंडित। कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को इस फिल्म अच्छे से दिखाया गया है। अभी तक कश्मीरी पंड़ितों पर हुए अत्याचार को केवल बताया जाता रहा है, उसके बारे में लिखा भी गया है। लेकिन कश्मीरी पंड़ितों के साथ उस दिन क्या-क्या हुआ वह कभी नहीं दिखाया गया। विवेक अग्निहोत्री ने दो साल पहले फिल्म को बनाने के लिए बात की थी, तभी से मैं इस फिल्म के साथ जुड़ा हुआ हूं।
- रोमेश पंडिता, कश्मीरी पंडित और पूर्व अध्यक्ष कश्मीरी सहायक सभा जब कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से निकाला जा रहा था, तब मेरा परिवार वहां से चंडीगढ़ आ गया। आज भी वह मंजर हमारी आंखों के सामने घूमता रहता है। 32 साल से कश्मीरी पंडित इंसाफ मांग रहे हैं। न तो उनको इंसाफ मिल रहा है और न ही उनकी घर वापसी हो रही है। फिल्म कई रिकार्ड तोड़ेगी, क्योंकि पूरा देश इस फिल्म को देख रहा है।
- एडवोकेट गहना वैष्णवी, कश्मीरी पंडित हमने सुना था कि कश्मीरी पंडितों के साथ 1990 में बर्बरता हुई थी। लेकिन फिल्म के माध्यम से यह सब कुछ लोगों ने देख भी लिया। जब फिल्म देखने के बाद हमारा गला भर गया तो उस समय उन लोगों पर क्या बीती होगी जिनको उनके घरों से निकाला गया। सत्य घटनाओं पर आधारित कई फिल्में देखी लेकिन इस फिल्म को देख कर रोंगटे खड़े हो गए थे।
- हर्ष भट्ट, दर्शक।
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