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    पश्चिमी कमान को सैल्यूट, स्थापना दिवस पर आप भी पढ़िये शौर्य चक्करों के साथ गौरवशाली इतिहास

    Updated: Mon, 15 Sep 2025 06:01 PM (IST)

    चंडीगढ़ में भारतीय सेना की पश्चिमी कमान ने 79वां स्थापना दिवस मनाया।पश्चिमी कमान के जीओसी-इन-सी लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार ने सैनिकों की सेवाओं की सराहना की और बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी गई। पश्चिमी कमान की स्थापना 1947 में हुई थी और इसे कई वीरता पुरस्कार मिले हैं। कमान आधुनिक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है और आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

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    पश्चिमी कमान के जीओसी-इन-सी लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार ने बलिदानियों को नमन किया।

    जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। भारतीय सेना की पश्चिमी कमान ने सोमवार को चंडीमंदिर सैन्य स्टेशन पर अपना 79वां स्थापना दिवस पूरे सैन्य गौरव और देशभक्ति की भावना के साथ मनाया। यह अवसर खास इसलिए भी रहा क्योंकि इस वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध की विजय की 60वीं वर्षगांठ भी है। समारोह में पश्चिमी कमान के जीओसी-इन-सी लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार ने सभी सैनिकों और अधिकारियों की निस्वार्थ सेवाओं की सराहना की।

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    उन्होंने हाल ही में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में आई भीषण बाढ़ के दौरान राहत और बचाव अभियानों में दिखाए गए साहसिक प्रयासों की विशेष प्रशंसा की। साथ ही आपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियानों में उत्कृष्ट प्रदर्शन पर संतोष जताया। जनरल कटियार ने कहा पश्चिमी कमान सदैव देश की सीमाओं की रक्षा में अग्रणी रही है। वीरता की परंपराएं और अनुशासन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।

    बलिदानियों को किया नमन

    स्थापना दिवस पर पश्चिमी कमान मुख्यालय के चीफ आफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल मोहित वाधवा ने वीर स्मृति युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित कर बलिदानियों को नमन किया। उन्होंने कहा कि मातृभूमि की रक्षा में दिए गए सर्वोच्च बलिदान कभी भुलाए नहीं जा सकते। यह श्रद्धांजलि उन सैनिकों के साहस और निस्वार्थ समर्पण की याद दिलाती है जिन्होंने राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर किए।

    गौरवशाली इतिहास

    पश्चिमी कमान की स्थापना 15 सितंबर 1947 को देश के विभाजन की उथल-पुथल के बीच हुई थी। उस समय इसे दिल्ली और पूर्वी पंजाब कमान कहा जाता था और यह दिल्ली व पंजाब की रक्षा की जिम्मेदारी निभाती थी। दिलचस्प तथ्य यह है कि शुरूआती दिनों में इसका मुख्यालय एक मोबाइल ट्रेन से संचालित होता था, जिसे अब चंडीमंदिर संग्रहालय में संरक्षित किया गया है। 20 जनवरी 1948 को इसका नाम बदलकर पश्चिमी कमान रखा गया और इसे जम्मू-कश्मीर में सैन्य अभियानों की जिम्मेदारी सौंपी गई। उत्तरी कमान के गठन से पहले यह पूरे उत्तरी सीमा क्षेत्र जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश तक की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाती थी।

    अब तक 11 परमवीर चक्र, 1 अशोक चक्र और 143 महावीर चक्र

    पश्चिमी कमान को भारत के हृदय स्थल के रक्षक के रूप में जाना जाता है। अपने आदर्श वाक्य सदैव पश्चिम की ओर के अनुरूप इस कमान ने हमेशा आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया और निर्णायक विजय दिलाई। अपने इतिहास में पश्चिमी कमान को अब तक 11 परमवीर चक्र, 1 अशोक चक्र और 143 महावीर चक्र सहित अनेक वीरता पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। यह सम्मान न केवल सैनिकों की वीरता का प्रतीक हैं, बल्कि भारतीय सेना की दृढ़ प्रतिबद्धता का भी प्रमाण हैं।

    भविष्य की ओर कदम

    पश्चिमी कमान आधुनिक समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए लगातार तैयारी कर रही है। सेना का ध्यान अब आधुनिकीकरण, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने, यथार्थवादी प्रशिक्षण और संयुक्त अभियानों पर केंद्रित है। बदलते सुरक्षा परिदृश्य में यह कमान परिचालन तत्परता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए पश्चिमी मोर्चे पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए कटिबद्ध है।