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    दुनिया भर में प्रसिद्ध है चंडीगढ़ का रॉक गार्डन, नेकचंद ने 1957 में की थी नेक पहल, जानें इसकी खासियत

    By Ankesh ThakurEdited By:
    Updated: Thu, 16 Dec 2021 10:29 AM (IST)

    चंडीगढ़ के रॉक गार्डन को किसी पहचान की जरूरत तो नहीं है लेकिन यहां कुछ खास है उसके बारे में लोग पूरी तरह नहीं जानते होंगे। इस खास मौके पर चंडीगढ़ की पहचान और चंडीगढ़ की शान कहे जाने वाले रॉक गार्डन के बारे में आपको रू-ब-रू करवाएंगे।

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    नेकचंद ने वेस्‍ट मैटीरियल से करीब 40 एकड़ में इस गार्डन को तैयार किया था।

    आनलाइन डेस्क, चंडीगढ़। आज उस शख्स की जयंती है जिन्होंने चंडीगढ़ के रॉक गार्डन (Chandigarh Rock Garden) को देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी पहचान दिलाई है। हम बात कर रहे हैं रॉक गार्डन निर्माता नेकचंद सैनी की। पद्मश्री नेकचंद भले आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे एक ऐसे कलाकार थे, जिनकी बनाई दुनिया को देखने के लिए देश विदेश से पर्यटक चंडीगढ़ आते हैं। अब चंडीगढ़ के इस गार्डन को किसी पहचान की जरूरत तो नहीं है लेकिन यहां कुछ खास है उसके बारे में लोग पूरी तरह नहीं जानते होंगे। इस खास मौके पर चंडीगढ़ की पहचान और चंडीगढ़ की शान कहे जाने वाले रॉक गार्डन के बारे में आपको रू-ब-रू करवाएंगे।

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    चंडीगढ़ का रॉक गार्डन दुनिया के सबसे ज्‍यादा फेमस गार्डंस में शुमार है। देश के मशहूर रॉक आर्टिस्‍ट नेकचंद ने वेस्‍ट मैटीरियल से करीब 40 एकड़ में इस गार्डन को तैयार किया था। नेकचंद ने 1957 में यह नेक पहल की। करीब 18 साल के अथक प्रयास के बाद इस विश्‍वप्रसिद्ध रॉक गार्डन को तैयार कर सके। पंजाब के रहने वाले नेकचंद ने लोकनिर्माण विभाग में 1951 में सड़क निरीक्षक के तौर पर काम करते हुए प्रसिद्ध सुखना झील के निकट जंगल के एक छोटे से हिस्से को साफ करके औद्योगिक और शहरी कचरे की मदद से वहां एक बगीचा सजाकर लोगों को एक अनूठी जादुई दुनिया से रू-ब-रू कराया था, जिसे आज हम रॉक गार्डन के नाम से जानते हैं। इस गार्डन का उद्घाटन 1976 में किया गया था।

    टूटी-फूटी चूड़ि‍यों, प्लेट, कप, गिलास आदि बेकार चीजों से इन मूर्तियों को तैयार किया गया है।

    नेकचंद को 1984 में मिला था पद्मश्री

    चंडीगढ़ के अलावा अब दुनिया के दूसरे देशों में भी ऐसे रॉक गार्डन तैयार किए गए हैं। टूटे फूटे खराब सामान से तैयार नायाब रॉक गार्डन ने पूरी दुनिया पर प्रभाव छोड़ते हुए अनूठा संदेश दिया है। इसके बाद वाशिंगटन, स्पेन, इंग्लैंड, जर्मनी, पेरिस जैसे बहुत से शहरों में मिनी रॉक गार्डन बनाए गए। नेकचंद के नाम पर इंटरनेशनल फाउंडेशन बनाई गई जो इन्हें देखती है। रॉक गार्डन के निर्माण के लिए 1984 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

    रॉक गार्डन में लगे झुले पर्यटकों को काफी आकर्षित करते हैं।

    ऐसे गढ़ा गया यह नायाब गार्डन

    सन 1951 में नेकचंद ने लोक निर्माण विभाग में सड़क निरीक्षक के तौर नौकरी मिली थी। ऐसे में वह अपने खाली समय में साइकिल पर बैठकर बेकार पड़ी चीजों जैसे ट्यूब लाइट्स, टूटी-फूटी चूड़ि‍यों, प्लेट, चीनी के कप, बोतलें और उनके ढक्कन जैसी अलग-अलग तरह की बेकार चीजों को इकट्ठा करते थे और उन्हें यहां सेक्टर-1 में जमा करते थे। वह इस कचरे से कलाकृतियां बनाना चाहते थे। उन्होंने अपनी सोच को आकार देने के लिए इन सामग्रियों को रिसाइकल करने की योजना बनाई और इसके फिर वह रोज रात को गुपचुप तरीके से साइकल पर सवार होकर जंगल के लिए निकल जाते। यह सिलसिला करीब 2 दशक तक चला। आखिरकार नेकचंद की परिकल्‍पना ने रॉक गार्डन के रूप में आकार ले लिया। हालांकि उस वक्‍त कई राजनेताओं ने इस गार्डन को अवैध निर्माण बताकर गिराने की भी कोशिश की, लेकिन ऐसा हो न सका। नेकचंद के नेक काम को पहचान मिली।

    गार्डन में वाटरफॉल, पूल और घूमावदार रास्ते सहित 14 लुभावने चैंबर हैं।

    अचरज में पड़ जाते हैं पर्यटक

    रॉक गार्डन में आने वाले पर्यटक यहां की मूर्तियों, मंदिरों, महलों आदि को देखकर अचरज में पड़ जाते हैं। रॉक गार्डन में वाटरफॉल, पूल और घूमावदार रास्ते सहित 14 लुभावने चैंबर हैं, जो नवीनता और कल्पनाशीलता को दर्शाते हैं। इस गार्डन में कई मूर्तियां हैं, जो घर के बेकार समानों जैसे टूटी हुई चूड़ी, चीनी मिट्टी के बर्तन, तार, ऑटो पार्ट्स और ट्यूब लाइट से बनी हैं। भवन के कचरे, खेलने की गोलियां और टेराकोटा बर्तन को भी गार्डन में भवन, मानवीय चेहरा और जानवर सहित अनेक रूपों में प्रदर्शित किया गया है। यह अद्भुत गार्डन हर दिन सुबह 9 बजे खुल जाता है। गार्डन में झरनों और जलकुंड के अलावा ओपन एयर थियेटर भी देखा जा सकता है। यह रॉक गार्डन चंडीगढ़ में सुखना झील के नजदीक है।