'मेडिकल रिपोर्ट से नहीं... जिंदगी पर पड रहे असर से तय हो दिव्यांगता', पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने क्यों कहीं ये बात?
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सड़क दुर्घटना में अपंगता के मूल्यांकन पर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि मूल्यांकन में पीड़ित के जीवन और रोजगार पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखा जाए। जस्टिस मंदीप पन्नू ने इंश्योरेंस कंपनी की अपील खारिज करते हुए पीड़ित अनूप सिंह को 10 लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश दिया।

दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि सड़क दुर्घटना में पीड़ित की अपंगता का मूल्यांकन केवल चिकित्सीय दृष्टिकोण तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसके जीवन, रोजगार और भविष्य की संभावनाओं पर पड़ने वाले वास्तविक प्रभावों को ध्यान में रखकर यह आकलन किया जाना चाहिए।
जस्टिस मंदीप पन्नू ने यह टिप्पणी एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी की अपील को खारिज करते हुए की। कंपनी ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी) हिसार द्वारा दिए गए 14.7 लाख रुपये के मुआवजे को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने न सिर्फ कंपनी की अपील खारिज की, बल्कि पीड़ित अनूप सिंह की क्रास-आब्जेक्शन याचिका स्वीकार करते हुए 10 लाख रुपये मुआवजा बढ़ा दिया। पांच जनवरी 2014 को सड़क दुर्घटना में 24 वर्षीय अनूप सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
उनकी बायीं टांग घुटने से नीचे काटनी पड़ी। उस समय वे सीआरपीएफ की भर्ती प्रक्रिया में शामिल हुए थे और लिखित परीक्षा पास कर चुके थे। दुर्घटना ने उनकी नौकरी की संभावना पूरी तरह छीन ली और खेती-किसानी करने की क्षमता भी प्रभावित कर दी।
फरवरी 2016 में एमएसीटी हिसार ने अनूप सिंह को 14.7 लाख रुपये का मुआवजा 7% ब्याज सहित प्रदान किया।
इंश्योरेंस कंपनी ने इसे चुनौती देते हुए कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार अपंगता केवल 60% है और यह अंग विशेष तक सीमित है, इसलिए मुआवजा कम होना चाहिए। अनूप सिंह ने क्रास-आब्जेक्शन दाखिल कर मुआवजे में वृद्धि की मांग की।
ऐसे मामलों में अदालतें संकीर्ण दृष्टिकोण न अपनाएं: कोर्ट
हाई कोर्ट ने माना कि डाक्टर की रिपोर्ट में भले ही अपंगता 60% हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि अनूप सिंह अपने सपनों का करियर खो बैठे व आजीविका पर गहरा असर पड़ा। इसलिए अधिकरण द्वारा 100% अपंगता मानना उचित है।
हाईकोर्ट ने अंतिम मुआवजा बढ़ाकर 24 लाख 51 हजार 900 रुपये कर दिया, जो अधिकरण से करीब 10 लाख रुपये अधिक है। साथ ही ब्याज दर को 7% से बढ़ाकर 7.5% प्रतिवर्ष कर दिया गया, जो दावा याचिका दाखिल करने की तारीख से लागू होगी। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए।
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