चंडीगढ़ में बच्ची से छेड़छाड़ की सूचना में देरी पर स्कूल प्रशासक व बस कांट्रेक्टर को राहत, 10 साल बाद कोर्ट का आदेश
चंडीगढ़ में 10 साल पुराने पॉक्सो मामले में स्कूल प्रशासक और बस कांट्रेक्टर को अदालत ने बरी कर दिया। उन पर नाबालिग छात्रा से छेड़छाड़ की सूचना समय पर पुलिस को न देने का आरोप था। अदालत ने पाया कि उन्होंने मामले को गंभीरता से लिया और उचित कार्रवाई की। बस कंडक्टर जो छेड़छाड़ का दोषी पाया गया पहले ही सजा काट चुका है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। शहर के एक निजी स्कूल के प्रशासक कैप्टन संजीव कुमार और बस कांट्रेक्टर अमरीक सिंह को गंभीर आरोपों से राहत मिल गई है। जिला अदालत ने 10 साल पुराने मामले में दोनों को बरी कर दिया। इन पर आरोप था कि उन्होंने नाबालिग छात्रा से छेड़छाड़ के मामले की सूचना निर्धारित समय (24 घंटे) में पुलिस को नहीं दी। यह केस वर्ष 2015 में दर्ज हुआ था और काफी चर्चा में रहा था।
11 मई 2015 को पुलिस को शिकायत मिली थी कि स्कूल बस का कंडक्टर जगजीत सिंह बस में पांच साल की एक बच्ची से छेड़छाड़ करता है। यह बस कांट्रेक्टर अमरीक सिंह की थी और आरोपित जगजीत सिंह कंडक्टर पिछले चार वर्षों से उसमें काम कर रहा था। इस मामले में पुलिस ने जगजीत को गिरफ्तार कर लिया था और एक साल बाद उसे जिला अदालत से पांच साल की सजा हो गई थी।
पुलिस ने स्कूल प्रशासक और बस कांट्रेक्टर पर भी पाक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया था। हालांकि लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने माना कि आरोपित प्रशासक और कांट्रेक्टर ने मामले को गंभीरता से लिया था और तत्काल कदम भी उठाए थे। इसलिए दोनों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया
स्कूल प्रशासक ने की थी तुरंत कार्रवाई
आरोपितों का केस लड़ने वाले एडवोकेट विकास सागर ने कहा कि शिकायत मिलने के बाद प्रशासक संजीव कुमार ने तुरंत कांट्रेक्टर अमरीक सिंह से पूछताछ की थी। अमरीक सिंह ने बताया कि उसने अन्य बच्चों व ड्राइवर से पूछताछ की थी।
स्कूल प्रशासक ने बच्ची के पिता को तुरंत सलाह दी कि यह मामला पुलिस को बताया जाना चाहिए, लेकिन पिता ने सामाजिक कारणों से पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से इन्कार कर दिया था। बाद में भी जब संजीव कुमार ने उन्हें लिखित शिकायत देने को कहा तो वह तैयार नहीं हुए। फिर भी स्कूल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए स्टाफ को नोटिस जारी कर बच्चों पर और सतर्क नजर रखने के निर्देश दिए। ऐसे में उनके खिलाफ केस नहीं बनता था।
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