नियमितीकरण से इन्कार सैन्य कर्मचारियों के साथ अन्याय, हाईकोर्ट की केंद्र सरकार को फटकार
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सैन्य फार्म कर्मचारियों को नियमित न करने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि 30 वर्षों से अधिक सेवा देने वालों के साथ यह अन्याय और न्यायालय की अवमानना है। सरकार ने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया और अदालत को गुमराह किया।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि तीन दशक से अधिक समय तक सेवा देने वाले सैन्य फार्म कर्मचारियों के नियमितीकरण से इन्कार न केवल न्यायालय की अवमानना है, बल्कि उन कर्मचारियों के साथ अन्याय भी है जिन्होंने अपने जीवन का सबसे अहम समय सरकार की सेवा में समर्पित किया।
जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने कहा कि सरकार ने न केवल तथ्यों में हेरफेर किया, बल्कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और अदालत दोनों को गुमराह किया। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि सरकार का यह रवैया यह दर्शाता है कि वह न्यायालय के आदेशों का पालन करने के बजाय उन्हें टालने का प्रयास कर रही है।
यह केस सैन्य फार्म के उन कर्मचारियों से जुड़ा है जिन्हें 1988 के आसपास नियुक्त किया गया था। 1998 में कर्मचारियों ने सेवा नियमितीकरण के लिए कैट का दरवाजा खटखटाया था। मार्च 1999 में ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट आदेश दिए कि केंद्र सरकार उनके दावे पर विचार करें और रोजगार विनिमय से नाम प्रायोजित न होने को आधार बनाकर नियमितीकरण से इन्कार न करे।
हालांकि, इसके बाद भी कई कर्मचारी दैनिक वेतन पर ही काम करते रहे। 2019 में कैट ने दोबारा पाया कि सैन्य फार्म में 64 पद स्वीकृत हैं और सरकार को इन पर विचार करना चाहिए। लेकिन जून 2019 में केंद्र ने कर्मचारियों की मांग खारिज कर दी और तर्क दिया कि पद समाप्त कर दिए गए हैं तथा नाम रोजगार विनिमय से प्रायोजित नहीं हैं।
मार्च 2025 में कैट ने सरकार के इस फैसले को खारिज करते हुए कहा कि 64 पद अगस्त 2020 तक समाप्त नहीं हुए थे, यानी कर्मचारियों के दावे खारिज करने का आधार ही गलत था। इसके बाद केंद्र सरकार ने कैट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि जब 1999 में ही रोजगार विनिमय प्रायोजन का आधार खारिज कर दिया गया था तो 2019 में उसी आधार पर कर्मचारियों की मांग ठुकराना सीधा न्यायालय की अवमानना है। अदालत ने सरकार को याद दिलाया कि यह कर्मचारी फरवरी 2020 तक काम कर रहे थे, ऐसे में 2018 में पद समाप्त होने का दावा भ्रामक और असत्य है।
खंडपीठ ने कहा, यह सरकार की मानसिकता को दर्शाता है कि वह न्यायालय के आदेशों का सम्मान करने के बजाय बार-बार पुराने और खारिज किए जा चुके आधारों पर कर्मचारियों के अधिकार छीन रही है। जिन लोगों ने 30 साल से अधिक समय तक सेवा दी, उन्हें उनका हक मिलना ही चाहिए।
अदालत ने केंद्र सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कैट के आदेश को बरकरार रखा और निर्देश दिया कि कर्मचारियों के दावे पर ईमानदारी से विचार कर उन्हें न्याय दिलाया जाए।
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