पंजाबी हो या गैर पंजाबी.. कामेडी किंग जसविंदर भल्ला का सभी के दिलों में रहेगा राज
मशहूर हास्य कलाकार जसविंदर भल्ला का 65 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने जसपाल भट्टी की तरह ही सामाजिक कुरीतियों पर व्यंग्य के माध्यम से प्रहार किया। उनके निधन से पंजाबी सिनेमा में शोक की लहर है। उन्होंने छणकाटा और चाचा चतर सिंह जैसे किरदारों से लोगों के दिलों में खास जगह बनाई। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। जसविंदर भल्ला और जसपाल भट्टी की राशि ही एक नहीं थी बल्कि दोनों का समाज में फैली कुरुतियों को देखने और व्यंग्यात्मक एक्ट से उन पर चोट करने की शैली भी एक जैसी थी। जसपाल भट्टी के जाने के बाद जसविंदर भल्ला उनकी इस कमी को पूरा कर रहे थे लेकिन आज यह दीपक भी बुझ गया।
हास्य कलाकार जसविंदर भल्ला के जाने की खबर ने सभी के चेहरों को उदास और रूआंसा कर दिया। पंजाबी हो या गैर पंजाबी..जसविंदर भल्ला ने सभी के दिलों में एक सी जगह बनाई थी और शायद ही कोई पंजाबी फिल्म इन दिनों बन रही थी जिसमें वे न हों हालांकि पिछले कुछ समय से जब से उन्होंने अपनी दिल की बीमारी के कारण काम करना कम कर दिया था, से वह उदास से रहने लगे थे।
चालीस साल तक उनके साथ काम करने वाले उनके सहयोगी बाल मुकंद शर्मा बताते हैं कि पिछले कुछ समय में ही उनका भार 25 किलो तक गिर गया था। उनके मन पर यह बोझ बन रहा था कि वह काम नहीं कर पा रहे हैं। शायद यही वजह उनके ब्रेन स्ट्रोक का कारण बनी।
जिस तरह से इंजीनियर की नौकरी के साथ साथ जसपाल भट्टी ने अपने ''उलटा-पुलटा'' और ''फ्लाप शो'' के जरिए समाज की कुरुतियों को एक अलग नजरिए देखने में सफलता पाई उसी तरह जसविंदर भल्ला ने 1988 से ''छणकाटा'' के जरिए ये छटा बिखेरी।
जब कैप्टन की पत्नी को लेकर कह दी थी कोई बात
अक्सर उनके व्यंग्य इतने तीखे होते थे कि कई बार लोग बुरा भी मना जाते थे। शाही शहर पटियाला की उस शाम को कोई कैसे भूल सकता है जब सांस्कृतिक कार्यक्रम में कैप्टन अमरिंदर सिंह की मौजूदगी में जसविंदर भल्ला ने उनकी पत्नी परनीत कौर के लिए कोई बात कह दी।
कैप्टन साहिब को बात काफी बुरी लगी लेकिन उन्होंने इसे जाहिर नहीं होने दिया। अगले दिन जसविंदर भल्ला माफी मांगने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दफ्तर आए।
कैप्टन के दफ्तर में हुए दुर्व्यवहार को नहीं भूले, किए तीखे प्रहार
कैप्टन अमरिंदर सिंह दफ्तर में नहीं थे लेकिन उनके प्रिंसिपल सेक्रेटरी संजीत कुमार सिन्हा ने सभी कर्मचारियों, सुरक्षाकर्मियों के सामने उनके साथ बहुत दुर्व्यवहार किया। अखबारों में यह खबरें प्रकाशित होने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह खेद व्यक्त किया लेकिन जसविंदर भल्ला अपने इस अपमान को भूले नहीं। कैप्टन की सरकार रहते तक उन्होंने अपने टीवी एक्ट में कैप्टन सरकार '' जड़ ते कोके'' नाम के तखलस के जरिये इतने तीखे प्रहार किए जिसका कोई मुकाबला नहीं था।
पंजाबियों के मन से आतंकियों व पुलिस का डर कम किया
जसविंदर भल्ला ने जिस दौर में लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी थी, वह समय ऐसा था जब सभी के चेहरों पर डर और खौफ था। पंजाब का वह काला दौर शायद ही किसी को भूला हो, जब आम लोगों में आतंकियों और पुलिस का डर एक सा था। लेकिन बाल मुकंद शर्मा और नीलू के साथ छणकाटा कैसेट निकालकर उन्होंने लोगों के मनों से उस डर को कुछ हद तक खत्म करने का काम जरूर किया। हर नए साल में उनकी कैसेट आती। यह सफर 27 साल तक जारी रहा।
चाचा चतर सिंह के रूप में बनाई पहचान
चाचा चतर सिंह के रूप में उन्होंने अपनी ऐसी पहचान बनाई कि लोग यह भूल ही गए कि उनका नाम जसविंदर भल्ला है। लोग तो उन्हें नए नाम चाचा चतर सिंह के नाम से ही जानने लगे थे। छणकाटों के बाद जब उन्होंने पंजाबी फिल्मों में कदम रखा तो हर फिल्म में उनका कोई न कोई डायलाग ऐसा होता जो उस फिल्म की जान होता।
गंदी औलाद, न मजा न स्वाद, एडवोकेट ढिल्लों ने काला कोट ऐवें ही नहीं पाया, चंडीगढ़ ढह जू, पिंडा जोगा तां रह जू, चाचे छड़े तों, झोटे खड़े तो, जिना दूर रहो, उनां ही चंगा न जाने कितने ऐसे डायलाग हैं जो हर किसी की जुबान पर हैं।
आज जब उनकी हास्य अदाकारी के कारण पंजाबी फिल्में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परचम फहरा रही हैं, ऐसे मौके पर जसविंदर भल्ला को न जाने जल्दी जाने की क्या पड़ी थी। 65 साल कोई जाने की उम्र तो नहीं...अलविदा भल्ला साहिब।
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