पंजाब यूनिवर्सिटी ने तैयार किया कमाल का साॅफ्टवेयर, एआई पर असली और नकली आवाज में बताएगा फर्क
पंजाब यूनिवर्सिटी की फारेंसिक रिसर्च टीम ने एक एआई सॉफ्टवेयर बनाया है जो असली और नकली आवाज में फर्क कर सकता है। केंद्र सरकार ने इसे कॉपीराइट दिया है। यह तकनीक अपराध जांच में मददगार होगी और एआई से जुड़ी धोखाधड़ी रोकने में सहायक है। प्रो. कंवल कृष्ण के नेतृत्व में टीम ने 80 फीसदी सटीकता हासिल की है।

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के बढ़ते इस्तेमाल के दौर में नकली (क्लोन) आवाजें अपराध और धोखाधड़ी की नई चुनौती बन चुकी हैं। इस चुनौती का हल पंजाब यूनिवर्सिटी की फाॅरेंसिक रिसर्च टीम ने निकाला है, जिसने एक ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) साॅफ्टवेयर बनाया है जो असली और नकली आवाज में फर्क बताएगा। खास बात यह है कि केंद्र सरकार के काॅपीराइट कार्यालय ने इस अनोखी खोज को काॅपीराइट भी प्रदान किया है।
टीम ने यह साॅफ्टवेयर फोन धमकियों, अपराध जांच और सुरक्षा से जुड़े मामलों में मददगार बनाने के उद्देश्य से तैयार किया है। टीम का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फाॅरेंसिक वैज्ञानिक प्रो. कंवल कृष्ण ने किया। उन्होंने कहा कि एआई के जमाने में नकली आवाजें अपराध और धोखाधड़ी के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी हैं, ऐसे में यह तकनीक जांच एजेंसियों को नया हथियार देगी।
100 ऑडियो सैंपल 80 प्रतिशत सटीकता
यह प्रोजेक्ट एमए की छात्रा प्रतिभा की डिसर्टेशन का हिस्सा रहा। इसमें दमिनी सिवान, डाॅ. तेज कौर, अंकिता गुलरिया, राकेश मीणा, डाॅ. नंदिनी चितारा, पीहुल कृष्ण, आकांक्षा राणा और आयुषी श्रीवास्तव ने योगदान दिया। टीम ने 100 ऑडियो सैंपल (50 असली और 50 नकली आवाजें) पर सपोर्ट वेक्टर मशीन माॅडल को ट्रेन किया और 80 फीसदी सटीकता हासिल की।
फॉरेंसिक वैज्ञानिकों का काम आसान करेगा सॉफ्टवेयर
छह महीने तक चले इस शोध ने साबित किया कि यह साॅफ्टवेयर फॉरेंसिक वैज्ञानिकों का काम आसान करेगा और एआई से जुड़ी धोखाधड़ी व साइबर अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद करेगा। पीयू की कुलपति प्रो. रेनू विग ने कहा कि यह उपलब्धि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फाॅरेंसिक साइंस को जोड़ने का बेहतरीन उदाहरण है। इसका समाज पर बड़ा असर होगा और हमें गर्व है कि हमारे शोधकर्ता इस दिशा में नई राह बना रहे हैं।
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