पंजाब में लैंड पूलिंग पॉलिसी पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, अब सुप्रीम कोर्ट जाएगी मान सरकार?
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने लैंड पूलिंग पॉलिसी पर एक महीने की रोक लगा दी है जिसके बाद अफसरशाही में बहस छिड़ गई है। सरकार ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए कानूनी सलाह लेना शुरू कर दिया है। अधिकारियों का मानना है कि भूमि अधिग्रहण कानून का पालन नहीं किया गया और मजदूरों के पुनर्वास की कोई योजना नहीं है।

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट की ओर से लैंड पूलिंग पॉलिसी पर एक महीने के लिए रोक लगा देने के बाद से जहां इस केस को लेकर अफसरशाही में बहस छिड़ गई है।
वहीं, सरकार ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेनी शुरू कर दी है। बताते हैं कि आज भी मुख्य सचिव केएपी सिन्हा और हाउसिंग विभाग के प्रमुख सचिव विकास गर्ग के बीच एक बैठक भी हुई है हालांकि इस बैठक का विवरण नहीं मिल सका है।
हाई कोर्ट ने एक महीने की लगाई रोक
हाई कोर्ट ने जिन बिंदुओं को लेकर लैंड पूलिंग पॉलिसी पर एक महीने की रोक लगाई है उसको लेकर अफसरशाही में भी बहस छिड़ी हुई है। अधिकारियों का मानना है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में जमीन का अधिग्रहण से पूर्व उस जगह का सोशल इम्पेक्ट एसेसमेंट करवाना अनिवार्य किया गया है तो इस नीति को लागू करने में ऐसा क्यों नहीं किया गया?
हाउसिंग विभाग के एक अधिकारी ने कहा जब यह नीति वालंटियरली है तो सोशल इम्पेक्ट एसेसमेंट की जरूरत क्यों? जिसकी एक सीनियर अधिकारी ने दलील दी कि जब मालवा नहर बनाने के लिए सरकार सोशल इम्पेक्ट एसेसमेंट करवाने का काम गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी को सौंपा है जिसमें बहुत कम जमीन ली जानी है तो 65 हजार एकड़ भूमि लेने वाली योजना में यह क्यों नहीं करवाई जा रही?
उन्होंने कहा कि जिन किसानों के पास जमीन है उन्हें तो उनकी जमीन के बदले में आवासीय व व्यवसायिक प्लाट मिल जाएंगे । अगर वे प्राइवेट बिल्डरों को भी बेच देते हैं तो उन्हें मिलने वाले पैसे से वे और कहीं जाकर जमीन खरीद सकते हैं लेकिन इस जमीन पर निर्भर रहने वाले मजदूरों का क्या होगा?
वे कहां जाएंगे? क्या सरकार ने उनको स्थापित करने का कोई योजना तैयार की है। इसके अलावा इस नीति में विवाद होने पर किसी किसान किसका दरवाजा खटखटाएंगे, इसका कोई प्राविधान नहीं है। ऐसे में यह निश्चित ही था कि हाई कोर्ट इस पॉलिसी पर रोक लगाएगी।
एक अन्य सीनियर अधिकारी ने कहा कि जब संसद का पारित किया हुआ भूमि अधिग्रहण कानून है तो फिर लैंड पूलिंग पॉलिसी क्यों? ऐसे में संसद या विधानसभाओं में पारित किए गए कानूनों का क्या औचित्य रह जाता है अगर कानून को बाईपास करके पॉलिसी लाकर इसे लागू किया जा रहा है।
2012-13 में लाई गई थी लैंड पूलिंग पॉलिसी
एक पूर्व हाउसिंग सचिव ने कहा कि जब 2012 -13 में लैंड पूलिग पॉलिसी लाई गई थी तब किसानों को प्लाट के साथ साथ यह भी विकल्प दिया गया था कि उन्हें उनकी जमीन का भूमि अधिग्रहण कानून के तहत पैसा भी दिया जाएगा। इसलिए कभी भी इस नीति को लेकर विवाद नहीं हुआ। लेकिन मौजूदा नीति में यह सबसे बड़ी बाधा है कि सरकार ने भूमि की कीमत देने का कोई विकल्प नहीं दिया है।
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