नौसेना भर्ती में बिना कारण अयोग्य ठहराया, पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने दिया युवक को ढाई लाख का मुआवजा
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने नौसेना भर्ती मामले में कहा कि भर्ती एजेंसी केवल अयोग्य लिखकर उम्मीदवार को खारिज नहीं कर सकती। कोर्ट ने पारदर्शिता और ठोस कारण की अनिवार्यता पर जोर दिया। दीपक सिंह नामक एक उम्मीदवार को बिना कारण बताए अयोग्य घोषित करने पर कोर्ट ने नौसेना को उसे 2.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भारतीय नौसेना भर्ती मामले में एक बड़ा फैसला सुनाते हुए साफ किया है कि किसी भी भर्ती एजेंसी को यह अधिकार नहीं है कि वह केवल “अयोग्य ” लिखकर उम्मीदवार को खारिज कर दे।
अदालत ने कहा कि जब तक भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता नहीं बरती जाती और ठोस कारण सामने नहीं रखे जाते, तब तक किसी भी उम्मीदवार की उम्मीदवारी खारिज करना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता। इसी आधार पर कोर्ट ने भारतीय नौसेना को आदेश दिया कि वह युवक को 2.5 लाख रुपये मुआवजा दे।
दीपक सिंह ने 2018 में किया था आवेदन
दीपक सिंह ने वर्ष 2018 में उसने भारतीय नौसेना में सीनियर सेकेंडरी रिक्रूट पद के लिए आवेदन किया था।
लिखित परीक्षा पास करने के बाद वह शारीरिक फिटनेस टेस्ट में शामिल हुआ। इस टेस्ट में 1.6 किलोमीटर दौड़ सात मिनट में पूरी करनी थी, 20 स्क्वैट्स और 10 पुश-अप्स करने थे। दीपक का कहना है कि उसने दौड़ और स्क्वैट्स सफलतापूर्वक पूरे कर लिए थे, लेकिन जैसे ही उसने पुश-अप्स शुरू किए, वहीं मौजूद एक परीक्षक ने अचानक उसे बिना कोई कारण बताए मैदान से बाहर जाने को कह दिया।
याचिकाकर्ता ने मांगा स्पष्टीकरण
याचिकाकर्ता ने तत्काल लिखित रूप से स्पष्टीकरण मांगा और बाद में कई बार पत्राचार भी किया, लेकिन किसी स्तर पर उसे कोई जवाब नहीं मिला। नतीजतन उसकी उम्मीदवारी खारिज कर दी गई।
इसके बाद उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। नौसेना की ओर से अदालत में दलील दी गई कि उम्मीदवार को मानक नियमों के अनुसार “अयोग्य ” घोषित किया गया था और अन्य 16 उम्मीदवार भी असफल हुए थे। लेकिन नौसेना न तो रिजल्ट शीट में और न ही अपने जवाब में यह बता पाई कि दीपक को किस आधार पर असफल करार दिया गया।
रिकॉर्ड में लिखा था सिर्फ अयोग्य
जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने सुनवाई के बाद कहा कि रिकॉर्ड में सिर्फ “अयोग्य” शब्द लिखा हुआ है, जबकि यह नहीं बताया गया कि उम्मीदवार दौड़, स्क्वैट्स या पुश-अप्स में असफल रहा।
अदालत ने माना कि जब कोई एजेंसी अपने निर्णय की नींव रखने वाले कारणों और दस्तावेजों को ही छिपा ले, तो उसकी कार्यप्रणाली निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं कही जा सकती।
कोर्ट ने आगे कहा कि सात साल बीत जाने के बाद अब दीपक अधिकतम आयु सीमा पार कर चुका है और नौसेना भर्ती में शामिल होने का उसका हक खत्म हो गया है। ऐसे में उसे न्याय दिलाने का एकमात्र रास्ता मुआवजा ही है।
कोर्ट ने नौसेना को आदेश दिया कि दीपक सिंह को 2,50,000 रुपये की एकमुश्त क्षतिपूर्ति दी जाए। कोर्ट ने टिप्पणी की कि भर्ती एजेंसियां मानक तय करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वे संविधान के निष्पक्षता, समानता और पारदर्शिता जैसे मूल सिद्धांतों से बंधी हैं। किसी उम्मीदवार को बाहर करने की स्थिति में एजेंसी पर यह जिम्मेदारी होती है कि वह ठोस कारण प्रस्तुत करे।
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