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    'पैरोल आवेदन पर चार महीने में फैसला जरूरी...', पंजाब-हरियाणा HC का अहम आदेश, अफसरों ने की देरी तो होगा एक्शन

    Updated: Fri, 11 Jul 2025 03:41 PM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पैरोल आवेदनों पर महत्वपूर्ण आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि जेल प्रशासन को चार महीने में पैरोल आवेदनों पर फैसला लेना होगा। ऐसा न करने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि पैरोल में देरी कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन है और अस्थायी रिहाई से कैदियों को सामाजिक समावेशन में मदद मिलती है।

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    पैरोल आवेदन पर चार माह में फैसला अनिवार्य, नहीं तो अधिकारियों पर चलेगी अवमानना की कार्रवाई (Jagran Photo)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पैरोल संबंधी मामलों में एक अहम आदेश पारित करते हुए कहा है कि जेल प्रशासन को सभी पैरोल आवेदनों पर चार माह की निश्चित अवधि के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य होगा।

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    कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि इस आदेश का पालन नहीं किया गया तो संबंधित अधिकारी के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।

    जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ की एकल पीठ ने कहा, आवेदकों और उनके परिवारों को अनावश्यक कठिनाइयों से बचाने के लिए यह निर्देश दिया जाता है कि पैरोल की अस्थायी रिहाई से संबंधित सभी आवेदन प्राप्ति की तिथि से चार माह के भीतर निर्णय किए जाएं। हाई कोर्ट ने इस तरह के मामलों में देर से निर्णय को कैदी के अधिकारों का उल्लंघन माना है।

    महीनों तक लंबित रहते हैं पैरोल के आवेदन

    कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई कि आपातकालीन परिस्थितियों में भी कई बार कैदियों के पैरोल आवेदन महीनों तक लंबित रहते हैं, जिससे उनकी पीड़ा और बढ़ जाती है।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी अधिकारी ने न्यायोचित कारणों के बिना समय सीमा का उल्लंघन किया तो संबंधित कैदी संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल कर सकते हैं।हाई कोर्ट ने यह टिप्पणियां कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की जहां याचिकाकर्ताओं द्वारा पारिवारिक कारणों से पैरोल मांगी गई थी।

    कोर्ट ने देखा की कई याचिका में तो पैरोल के लिए अर्जी देने के दस माह बाद भी प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे याची के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन हुआ है।

    'सामाजिक समावेशन में मिलती है मदद'

    हाई कोर्ट ने कहा कि गुड कंडक्ट प्रिजनर्स (अस्थायी रिहाई) अधिनियम, का उद्देश्य मानवीय है। कोर्ट ने कहा अस्थायी रिहाई से कैदी समाज से जुडे रहते हैं, जिससे उनके पुनर्वास और पुन सामाजिक समावेशन में सहायता मिलती है।

    यह जेल के अंदर अच्छे आचरण को भी प्रोत्साहित करता है। कोर्ट ने कहा कि यह अत्यंत खेदजनक है कि राज्य एजेंसियां अस्थायी रिहाई के मामलों को गंभीरता से नहीं लेतीं।

    प्रशासन शायद ही उस स्वतंत्रता के मूल्य को समझ सकता है, जिसे कैदी प्रतिदिन खोता है ऐसे अधिकार जिनके लिए कानून में स्पष्ट व्यवस्था की है, यदि उसे वंचित किया जाता है तो यह कैदियों को द्वितीय श्रेणी नागरिक जैसा व्यवहार करना है।

    हाई कोर्ट ने इस आदेश की कॉपी हरियाणा, पंजाब सरकार व चंडीगढ़ प्रशासन को भेजने का आदेश देते हुए इसकी पालना सुनिश्चित करने का आदेश दिया है।

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