'अस्थायी कर्मचारियों का नहीं कर सकते शोषण', हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को दिए ये आदेश
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने तदर्थ नियुक्तियों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार संविदा पर स्थायी प्रकृति का काम नहीं करवा सकती। अदालत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 16 और 21 का उल्लंघन बताया। 10 साल से अधिक समय से अनुबंध पर काम कर रहे फायरमैन की सेवाएँ नियमित करने का आदेश दिया।

दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सरकार में तदर्थता (एड-हाकिज्म) की संस्कृति पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य सरकार संवैधानिक नियोक्ता होने के नाते वर्षों तक कर्मचारियों से संविदा (कान्ट्रैक्ट) पर स्थायी प्रकृति का काम नहीं करवा सकती।
अदालत ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 16 व 21 का उल्लंघन करार देते हुए पंजाब सरकार को 10 वर्ष से अधिक समय से अनुबंध पर कार्यरत फायरमैन की सेवाएं नियमित करने का आदेश दिया।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि यह प्रवृत्ति चिंताजनक है कि लंबे समय से कार्यरत कर्मचारियों को एडहाक आधार पर लगाया जाता है जबकि उनका काम स्थायी प्रकृति का होता है। संवैधानिक नियोक्ता होने के नाते राज्य अपने अस्थायी कर्मचारियों का शोषण नहीं कर सकता। ऐसा करना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। राजपुरा नगर परिषद द्वारा सितम्बर 2013 में अनुबंध पर नियुक्त किए गए फायरमैन पिछले एक दशक से बिना नियमितीकरण के काम कर रहे हैं।
उनकी नियमितीकरण की मांग को 26 अप्रैल 2022 के आदेश से खारिज कर दिया गया था। सुनवाई में बताया गया कि नगर परिषद ने उनके नियमितीकरण का प्रस्ताव पारित कर दिया था और इसे पंजाब के स्थानीय निकाय निदेशक ने भी मंजूरी दे दी थी लेकिन नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी ने आदेश जारी नहीं किए।
याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने पंजाब सरकार को छह सप्ताह के भीतर उनकी सेवाएं नियमित करने के आदेश दिए। साथ ही कहा कि यदि समयसीमा में आदेश लागू नहीं हुआ, तो फायरमैन स्वतः नियमित माने जाएंगे। उन्हें वरिष्ठता और अन्य लाभ भी पिछले सेवाकाल से दिए जाएंगे।
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