पंजाब हरियाणा HC का बड़ा फैसला, चेक बाउंस मामलों में मुकदमेबाजी के किसी भी चरण पर समझौता संभव
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस से जुड़े अपराध में मुकदमेबाजी के किसी भी चरण पर सुलह की जा सकती है यहां तक कि मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी ठहराए जाने और सेशन कोर्ट द्वारा अपील खारिज होने के बाद भी। जस्टिस सुमित गोयल ने कहा कि हाईकोर्ट सजा को रद कर सकता है यदि विवाद निजी प्रकृति का हो और दोनों पक्ष समझौते पर पहुंच गए हों।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि चेक बाउंस से जुड़ा अपराध (धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम) मुकदमेबाजी के किसी भी चरण पर सुलह-सफाई (कंपाउंड) में तबदील किया जा सकता है। यह अधिकार तब भी लागू रहेगा, जब आरोपित को मजिस्ट्रेट दोषी ठहरा चुका हो और उसकी अपील सेशन कोर्ट द्वारा भी खारिज कर दी गई हो।
जस्टिस सुमित गोयल ने आदेश में कहा कि भारतीय न्याय संहिता के नये प्रविधानों और सर्वोच्च न्यायालय के स्थापित फैसलों के आलोक में हाईकोर्ट के पास पूर्ण अधिकार है कि वह ऐसे मामलों में सजा को रद कर सके, जहां विवाद मूल रूप से निजी प्रकृति का हो और दोनों पक्ष आपसी समझौते पर पहुंच गए हों।
हाईकोर्ट ने कहा कि बीएनएनएस की धारा 359 , 147 परक्राम्य लिखत अधिनियम और धारा 528 को साथ पढ़ने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि चेक बाउंस का मामला मुकदमे की हर अवस्था में सुलह योग्य है। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियां केवल प्रक्रियात्मक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और दुरुपयोग रोकने के लिए उसकी असल आत्मा हैं।
जस्टिस गोयल ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट का दायित्व है कि वह ऐसे हालात में हस्तक्षेप करे, जहां कानून की धारा स्पष्ट रूप से समाधान न देती हो। न्यायालय का अस्तित्व न्याय की निरंतरता और अन्याय को रोकने के लिए है। इसलिए उसके पास असीमित शक्तियां होनी चाहिएं, ताकि न्याय से कोई समझौता न हो। हाई कोर्ट का यह आदेश उस याचिका पर आया, जिसमें गुरुग्राम की अदालत ने जुलाई 2022 में आरोपित को दोषी ठहराया था और जून में सेशन कोर्ट ने सजा बरकरार रखी थी।
lकोर्ट ने सुलह के आधार पर सजा को रद करते सुनाया फैसला lनये प्रविधानों, सुप्रीम कोर्ट पूर्व के फैसलों पर दिया निर्णय
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