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    Punjab: ग्राम पंचायतों को भंग करने के पंजाब सरकार के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती, 17 अगस्त को होगी सुनवाई

    By Inderpreet Singh Edited By: MOHAMMAD AQIB KHAN
    Updated: Wed, 16 Aug 2023 10:08 PM (IST)

    पंजाब सरकार द्वारा राज्य की सभी ग्राम पंचायतों को भंग करने की अधिसूचना जारी करने के बाद पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर इसे रद्द करने की मांग की गई है। दायर याचिका में कहा गया पंजाब सरकार कि 10 अगस्त की अधिसूचना पूरी तरह से अवैध मनमानी और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है।

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    ग्राम पंचायतों को भंग करने का पंजाब सरकार के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती : जागरण

    चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो: पंजाब सरकार द्वारा राज्य की सभी ग्राम पंचायतों को भंग करने की अधिसूचना जारी करने के एक हफ्ते से भी कम समय के बाद, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर इसे रद्द करने की मांग के साथ यह निर्णय न्यायिक जांच के दायरे में आ गया है।

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    दायर याचिका में कहा गया पंजाब सरकार कि 10 अगस्त की अधिसूचना पूरी तरह से अवैध, मनमानी और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। याचिका पर गुरुवार को जस्टिस राज मोहन सिंह और जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ की खंडपीठ द्वारा सुनवाई की जानी है।

    याचिकाकर्ताओं ग्राम पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों/सरपंचों अपनी याचिका में कहा कि अधिसूचना कानून के खिलाफ है। याचिका में तर्क दिया कि पंजाब राज्य में सभी ग्राम पंचायतों को निर्वाचित प्रतिनिधियों के कार्यकाल/कार्यकाल की समाप्ति से पहले गलत और अवैध रूप से भंग कर दिया गया था।

    2019 में ही सरपंच निर्वाचित होकर संभाला था कार्यभार

    याचिकाकर्ताओं ने जनवरी 2019 में ही सरपंच निर्वाचित होकर कार्यभार संभाला था। ऐसे में उनका कार्यकाल जनवरी 2024 तक था। लेकिन राज्य सरकार द्वारा 31 दिसंबर तक ग्राम पंचायतों के चुनाव कराने का निर्णय लिया गया था।

    ग्राम पंचायत के कार्यों को करने के लिए किया प्रशासक नियुक्त

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सभी ग्राम पंचायतें भंग कर दी गईं और निदेशक, ग्रामीण विकास और पंचायत-सह-विशेष सचिव को ग्राम पंचायत के सभी कार्यों को करने और शक्तियों का प्रयोग करने के लिए प्रशासक नियुक्त करने के लिए अधिकृत किया गया।

    उन्होंने कहा कि किसी भी समय चुनाव की घोषणा करने की शक्ति और पंचायतों को भंग करने का मतलब यह नहीं हो सकता कि संविधान द्वारा निर्धारित कार्यकाल को संबंधित प्राधिकारी की इच्छा और इच्छानुसार कम किया जा सकता है। संविधान ने पहली बैठक की तारीख से शुरू होकर पांच साल के कार्यकाल की गारंटी दी है।