Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Farmers Protest: सिंघू में चल रहे पिज्जा बर्गर तो टीकरी में सादी रोटी, पंजाब के किसानों के अलग अंदाज

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Wed, 16 Dec 2020 12:59 PM (IST)

    Farmers Protest दिल्‍ली-हरियाणा बार्डर पर आंदाेलन में शामिल पंजाब के किसानों के अलग अंदाज नजर आ रहे हैं। सिंघु बार्डर पर किसानों के बीच पिज्‍जा व बर्गर चल रहे हैं तो टीकरी बार्डर पर किसान सादी रोटी से गुजारा कर रहे हैं।

    Hero Image
    Farmers Protest: पंजाब के किसान आंदोलन के दौरान लंगर चखते हुए। (फाइल फोटो)

    चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। Farmers Protest: कृषि सुधार कानूनों के विरोध में हरियाणा-दिल्ली सीमाओं पर आंदोलन में घू और टीकरी सीमा पर किसान आंदोलन के दो अलग - अलग रूप देखने को मिल रहे हैं। हालांकि दोनों जगह एक ही मुद्दे पर किसान डटे हुए हैं लेकिन दोनों पंजाब की कृषि के दो अलग चेहरे नजर आते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दिल्ली की सिघू व टीकरी सीमा पर अलग- अलग दिखता है पंजाब के किसानों के आंदाेलन का चेहरा

    सिंघू सीमा पर किसानों के लिए जहां पिज्जा, बर्गर और बादाम आदि के लंगर चल रहे हैं, मसाज मशीनों से किसानों की मसाज हो रही है, कपड़े धोने के लिए मशीनें और फोन चार्ज करने के लिए विशेष सोलर पैनल लगे हैं तो इसके विपरीत टीकरी सीमा पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा। यहां किसानों को लंगर में केवल रोटी, सब्जी और दाल ही उपलब्ध है।

    एक ही मुद्दे पर दो जगह आंदोलन की यह तस्वीरें पंजाब में कृषि की दशा को भी इंगित करती दिखाई दे रही हैं। सिंघू सीमा पर उन उन किसानों का आंदोलन दिखाई दे रहा है जिनके पास काफी जमीन है, कृषि करने योग्य जमीन बहुत अच्छी है और मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर है।

    बड़े किसानों और सीमांत किसानों के आंदोलन का फर्क भी साफ नजर आ रहा है

    इनमें बड़ी संख्या में वह किसान शामिल हैं जो माझा (जिला अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन और पठानकोट) के अलावा लुधियाना से साथ लगते मालवा के एक छोटे से हिस्से से आए हैं। उनमें दोआबा (जिला जालंधर, होशियारपुर, कपूरथला, नवांशहर, रूपनगर और मोहाली) के किसान भी हैं जिनके पास कम जमीन है लेकिन परिवार के लोग विदेश में होने के कारण वह कृषि जरूरतों को पूरा करने के लिए संपन्न हैं।

    दूसरी तरफ टीकरी सीमा पर कोर मालवा इलाके के किसान हैं जिनके कम जमीन है। मालवा के जिला बठिंडा, मानसा, फरीदकोट आदि जिलों का भूजल भी खारा है इसलिए इनकी खेती नहरी पानी पर ही निर्भर है जो इन्हें पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता। इस इलाके के किसान ज्यादातर ठेके पर जमीन लेकर कृषि करते हैं और एक एकड़ जमीन का ठेका भी प्रति वर्ष 65 से 70 हजार रुपये है। जाहिर है कि इस क्षेत्र के किसानों की वर्ष की दोनों फसलें भरपूर मात्रा में भी मिल जाएं तो भी उनके अपने हिस्से में कुछ नहीं आता। इसी कारण यह क्षेत्र किसान आत्महत्याओं के मामले में भी पंजाब में सबसे आगे है। पंजाब में अब तक हुईं किसान आत्महत्याओं में 90 फीसद मामले मालवा क्षेत्र के ही हैं।

    सीमांत किसान, जिन्हें बिजली सब्सिडी की सबसे ज्यादा जरूरत है उनके पास तो ट्यूबवेल ही नहीं हैं। सरकारें भले दावे करती रहें वह हर साल 6500 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी (कृषि क्षेत्र को मुफ्त बिजली) किसानों को देती हैं लेकिन इन सीमांत किसानों के हिस्से तो 65 पैसे भी नहीं आते। सरकार चाहे अकाली दल और भाजपा गठबंधन की रही हो या कांग्रेस की, दोनों सरकारें इस स्थिति से वाकिफ रही हैं लेकिन सुधार के लिए कदम आगे नहीं बढ़ाए गए।

    सिंघू और टीकरी सीमा पर इस स्थिति को लेकर भाकियू (राजेवाल) के महासचिव ओंकार सिंह अगौल ने कहा कि ¨सघू आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गया है और सभी यूनियनों के नेता सिंघू में हैं। यहीं बैठकों का दौर चलता है। इसलिए सभी सहयोग करने वाली संस्थाओं का केंद्र भी यही है। उन्होंने कहा कि यह कहना ठीक नहीं है कि टीकरी सीमा पर सीमांत किसान हैं इसलिए वहां पर सामान नहीं भिजवाया जा रहा है। सेवा कर रही संस्थाओं को टीकरी में भी ज्यादा से ज्यादा सामान भिजवाने का आग्रह किया जाएगा।

    यह भी पढ़ें: Farmers Protest: कांग्रेस MP रवनी‍त बिट्टू की बड़ी टिप्‍पणी, कहा- किसान नेता होटलों में, पंजाब का युवा ठंड में

     

    यह भी पढ़ें: CoronaVirus: हरियाणा के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री अनिल विज की खास सोच आई सामने, जानें क्‍यों मेदांता में नहीं हुए भर्ती


    यह भी पढ़ें: सपनों ने दी हिम्मत, चंडीगढ़ के सिक्योरिटी गार्ड का बेटा बना लेफ्टिनेंट, जानें संघर्ष की अनोखी कहानी

     

    पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


    हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

     

    comedy show banner