Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Punjab Day: चुनौतियों भरा रहा सफर, नए पंजाब की यही कहानी पानी, राजधानी और किसानी

    By Kamlesh BhattEdited By:
    Updated: Sun, 01 Nov 2020 12:05 PM (IST)

    Punjab Day 1966 में पंजाब का विभाजन हुआ। हरियाणा और हिमाचल प्रदेश दो नए राज्य अस्तित्व में आए। इस दौरान पंजाब का सफर चुनौतियों भरा रहा है। पंजाब में ...और पढ़ें

    Hero Image
    पंजाब दिवस (Punjab Day) पर विशेष आलेख।

    चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। Punjab Day: आजादी से लेकर वर्तमान तक पंजाब का सफर चुनौतियों भरा रहा। पहले 1947 में देश के विभाजन के समय दर्द सहा और इसके बाद 1966 में एक बार फिर पंजाब का विभाजन हुआ। हरियाणा और हिमाचल प्रदेश दो नए राज्य अस्तित्व में आए। टुकड़ों में बंटते चले गए पंजाब का आकार छोटा हो गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भूगोल और भाषा के नाम पर विभाजन हुआ तो नए पंजाब का मौजूदा स्वरूप सामने आया। कभी इस टूट तो कभी आंतकवाद के दौर में पंजाब और पंजाबियों ने बहुत कुछ खोया पर हौसला नहीं टूटने दिया। यही कारण है कि पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत का डंका पूरे विश्व बजता है। पंजाब दिवस पर इन्हीं पहलुओं पर दैनिक जागरण की यह विशेष प्रस्तुति।

    पंजाब दिवस मौजूदा हालात को देखते हुए भले ही जश्न मनाने जैसा दिन नहीं है, लेकिन उम्मीद रखना तो बेमानी नहीं कि जैसे आज तक पंजाब हर चुनौती का सामना करता आया है इन चुनौतियों को भी ढेर कर देगा। बार-बार विभाजन का दंश ङोलने वाले पंजाब ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। चाहे देश की सीमाओं की सुरक्षा का मामला हो या अन्न सुरक्षा का। पंजाब के शूरवीर जहां सीमाओं पर पहरा देते हुए अपनी कुर्बानी के लिए जाने जाते हैं वहीं यहां के किसान हरित क्रांति के पुरोधा बने।

    भाषा के नाम पर अलग हुए पंजाब की मांगें आज भी 54 वर्षोंं से वैसे ही हैं जैसी पहले थीं। इन मांगों को पूरा करवाने के लिए शुरू हुए संघर्ष में पंजाब ने अपनी एक पूरी पीढ़ी आतंकवाद की आग में झोंक दी। आतंकवाद के खिलाफ जब 15 वर्ष की लड़ाई की यह आग ठंडी हुई तो पंजाब को इससे हुए नुकसान से निकालने के बजाय केंद्र सरकार ने पड़ोसी पहाड़ी राज्यों में इंडस्ट्री लगाने के लिए करों में छूट देकर रही सही कसर भी पूरी कर दी।

    पंजाब से बड़ी संख्या में इंडस्ट्री हिमाचल और जम्मू कश्मीर में शिफ्ट हो गई। 2004 के एक आकलन के अनुसार केंद्र के इस फैसले से राज्य सरकार को दस हजार करोड़ का नुकसान हुआ। कृषि और इंडस्ट्री दोनों में नुकसान होने के बाद यहां के युवाओं ने विदेश का रुख कर लिया है। अब हर वर्ष करीब डेढ़ लाख बच्चे कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि देशों में अपना भविष्य ढूंढ़ रहे हैं।

    पानी

    भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय दो बड़ी नदियां झेलम और चिनाब पाकिस्तानी पंजाब के हिस्से आईं और शेष बचे तीन नदियों के पानी में से राजस्थान और हरियाणा को हिस्सा मिला। हरित क्रांति के नाम पर देश खाद्यान्न भंडार भरते समय पंजाब के किसानों ने अपना सारा भूजल भी खर्च कर दिया। इसी कारण पांच दरियाओं की धरती आज सूख रही है, बंजर होने की ओर बढ़ रही है। पानी के मुद्दे पर पंजाब अब जंग लड़ रहा है।

    राजधानी

    पंजाब राजधानी को लेकर भी पड़ोसी राज्य हरियाणा के साथ लंबे समय से लड़ाई लड़ता आ रहा है। चंडीगढ़ पंजाब को मिले इसे लेकर कई प्रयास हुए हालांकि इनमें कामयाबी नहीं मिली, लेकिन लड़ाई जारी है।

    किसानी

    पिछले सवा महीने से तीन केंद्रीय कृषि सुधार कानूनों को लेकर पंजाब के किसान संगठनों का संघर्ष रेलवे ट्रैक पर उतर आया। पंजाब के बिल भी किसान ने ठुकरा दिए हैं। कृषि में घाटे की वजह से खुदकशी करने को मजबूर होता पंजाब का किसान व कृषि आज जिस दौर में है, उसे देखते हुए खेती को लेकर नए सिरे से सोचा जाना चाहिए। गेहूं और धान पर फोकस करने से देश का बफर स्टाक दोगुना से ज्यादा हो गया है। सरकार इन्हें खरीदने से हाथ पीछे खींच रही है।

    राज्य सरकार 30 किसान संगठनों से बात कर रही है तो यह एक बड़ा मौका है कि पंजाब की जोनिंग की जाए। दालों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद करवाकर उपभोक्ताओं को उचित दामों पर दिलाई जाए। क्वांटिटी पर नहीं बल्कि क्वालिटी पर जोर देना होगा। मध्यप्रदेश की गेहूं का पंजाब में बिकना, पंजाब के किसानों के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। वक्त आ गया है कि पुराने मुद्दों को भूलकर आगे बढ़ा जाए।

    पंजाबी भाषा: चिंता को चिंतन में बदलने की जरूरत

    पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के पूर्व प्रोफेसर सतीश कुमार वर्मा का कहना है कि पंजाबी भाषा को लेकर हम चिंतित हैं और यह चिंता जायज भी है। इसका कारण है पहले देश का विभाजन और फिर एक नवंबर, 1966 को भारतीय पंजाब का पुनर्गठन। देश विभाजन से पहले पंजाब के 36 हजार गांवों में बोली जाने वाली पंजाबी अब पंजाब के लगभग बारह हजार गांवों तक सीमित रह गई है।

    भारतीय पंजाब के पुनर्गठन के दौरान पंजाबी बोलने वाले बहुत से इलाके हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में चले गए। हिमाचल में कभी पंजाबी लाहुल स्पीति तक और हरियाणा में महेंद्रगढ़ तक बोली जाती थी। अब पंजाबी भाषा हिमाचल में कालका और हरियाणा में कुरूक्षेत्र से आगे नहीं जा पाती। पंजाब में भी स्थिति संतोषजनक नहीं। राजभाषा के बावजूद सरकारी दफ्तरों में पत्रचार अंग्रेजी में होता है।

    जैसे बीमार को ठीक करने के लिए दवा की जरूरत होती है ठीक उसी तरह पंजाबी भाषा के बारे में चिंता को चिंतन में बदलने की जरूरत है। पांच स्तरीय इस योजना में पहले स्तर पर पंजाब के सभी जिलों, दूसरे स्तर पर हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली, राजस्थान जैसे पड़ोसी राज्य, तीसरे स्तर पर भारत के अन्य राज्यों, चौथे स्तर पर आठ करोड़ पंजाबियों वाले पाकिस्तान और पांचवें स्तर पर विश्व के उन देशों ,जहां पंजाबी रहते हैं, में पंजाब सरकार को पंजाबी अकादमी स्थापित करवाने के लिए माहौल बनाना चाहिए।

    मौजूदा हालात में हमारे लेखकों, साहित्य से संबंधित अकादमियों, यूनिवर्सिटियों की ओर से जो काम किया जाना चाहिए, उसके तहत यहां गुरमुखी में प्रकाशित साहित्य वहां शाहमुखी में और उधर शाहमुखी में प्रकाशित साहित्य हमारे यहां गुरमुखी में मुहैया करवाया जाना चाहिए। अब तो विभिन्न तरह के साफ्टवेयर तैयार हो चुके हैं। दुनिया के बाकी देशों में रह रहे पंजाबियों की पंजाबी भाषा का रंग यहां के भाषायी रंग से अलग होगा, क्योंकि हर देश के वातावरण और हालात का असर भाषा पर पड़ता है। इसका प्रमाण शब्दावली में विभिन्नता है।

    अब वैश्वीकरण के दौर में पंजाबी भाषा के प्रसार के मद्देनजर पंजाबी भाषा के इन अलग-अलग रंगों को वैसे ही स्वीकार करना होगा जैसे ब्रिटिश इंग्लिश, अमेरिकी इंग्लिश आदि स्वीकृत हैं। हमें अपनी डिक्शनरियां भी अपडेट करनी होंगी, ताकि दुनिया के 150 देशों में रहते पंजाबियों के संबंधित देशों से जुड़े शब्द आपस में जुड़कर एक विशाल शब्द भंडार बन सकें।

    यह भी पढ़ें : अच्छी खबर... अब सेवानिवृत्ति के दिन से ही मिलेगी EPFO से पेंशन, हिसार का कर्मचारी बना पहला लाभार्थी

    यह भी पढ़ें : हिसार के एक स्कूल में छात्र से टीचर तक सब कुछ फर्जी, जुर्माना मात्र एक लाख, हाई कोर्ट ने दिए विस्तृत जांच के आदेश

    यह भी पढ़ें : हरियाणा के सुलतान का एक और प्रयोग, हल्दी की खेती से संकट का हल, करक्युमिन से कोरोना पर वार

    यह भी पढ़ें : Farmer's Agitation: पंजाब में ट्रेनों की आवाजाही पूरी तरह बंद, कच्चे माल की कमी से संकट में इंडस्ट्री