पंजाब एवं हरियाणा HC का अहम फैसला, चेक बाउंस से जुड़े मामलों में अपील पर 20% जमा कराना अनिवार्य नहीं
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि चेक बाउंस मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को अपील करने या उसके निपटारे के लिए मुआवजे की 20% राशि जमा करना अनिवार्य नहीं है। अदालत ने कहा कि परक्राम्य लिखत अधिनियम का उद्देश्य वाणिज्यिक लेनदेन को सुरक्षित करना है लेकिन इसे अपील के अधिकार पर पूर्व शर्त के रूप में लागू नहीं किया जा सकता।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि चेक बाउंस से जुड़े मामलों में दोषसिद्ध आरोपित को अपील करने या अपील के निपटारे के लिए मुआवजे की राशि का 20 प्रतिशत जमा करना अनिवार्य नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि धारा 148, परक्राम्य लिखत अधिनियम का उद्देश्य वाणिज्यिक लेन-देन को सुरक्षित करना जरूर है, लेकिन इसे कानून का विस्तार कर अपील के अधिकार पर पूर्व-शर्त की तरह लागू नहीं किया जा सकता।
जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस संजय वशिष्ठ की खंडपीठ ने यह फैसला चार कानूनी बिंदुओं पर विचार करते हुए सुनाया। अदालत ने कहा कि अपीलीय अदालत सजा स्थगन की याचिका पर विचार करते समय 20 प्रतिशत राशि जमा करने की शर्त लगा सकती है। यदि आरोपित इस शर्त का पालन नहीं करता, तो अदालत सजा स्थगन वापस ले सकती है।
कोर्ट ने कहा कि अपील करने का अधिकार और जमानत पाने का अधिकार आरोपित के मौलिक अधिकार हैं। इन अधिकारों को 20 प्रतिशत राशि जमा करने की शर्त के आधार पर छीना नहीं जा सकता। खंडपीठ ने यह भी कहा कि अपील लंबित रहते समय लगाई जाने वाली शर्तें ‘न्यायसंगत’ होनी चाहिएं, ताकि वे किसी भी पक्ष पर असंगत बोझ न डालें।
फैसले में यह भी उल्लेख किया गया कि यह प्रविधान ज्यूरिस्टिक पर्सन यानी कंपनियों या संस्थाओं पर असरदार नहीं है, क्योंकि उन्हें कैद की सजा नहीं हो सकती। ऐसे में सजा स्थगन या अपील जैसे अधिकारों को राशि जमा करने की शर्त से नहीं जोड़ा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यदि अपील 60 दिन के भीतर निपट नहीं पाती है तो अपीलीय अदालत आरोपित को 20 प्रतिशत राशि जमा करने का निर्देश दे सकती है, जिसे 30 दिन और बढ़ाया जा सकता है।
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