पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का कड़ा एक्शन, ED कार्रवाई रुकवाने के मामले में तीन IPS समेत 10 पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के आदेश
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने ईडी की कार्रवाई से बचाने के मामले में हरियाणा पुलिस की कार्यप्रणाली पर सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने शिकायत को आठ महीने तक दबाए रखने पर 10 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि ईडी की कार्रवाई रुकवाने के लिए करोड़ों रुपये की डील हुई थी।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने ईडी की कार्रवाई से बचाने के एक मामले में हरियाणा पुलिस की कार्यप्रणाली पर कड़ा रुख अपनाते हुए आठ माह तक गंभीर शिकायत लंबित रखने पर 10 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।
इनमें तीन आइपीएस अधिकारी भी शामिल हैं। जस्टिस सुमित गोयल ने कहा कि पुलिस का यह रवैया कानून के खिलाफ है और इससे न्यायिक प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि यह न्यायालय आंखें मूंदकर नहीं बैठ सकता। यह कैसे हो सकता है कि एक गंभीर शिकायत इतनी लंबी अवधि तक बिना किसी कार्रवाई के पुलिस के पास पड़ी रहे।
कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट में पेश हुई रिपोर्ट से पता चला है कि 23 अक्टूबर 2024 से 19 जून 2025 तक पंचकूला पुलिस में कई अधिकारी बदलते रहे, लेकिन शिकायत पर कार्रवाई समय पर नहीं हुई।
इस दौरान उप निरीक्षक प्रकाश चंद लगातार जांच अधिकारी बने रहे। वहीं, निरीक्षक कमलजीत सिंह दो जून 2025 तक आर्थिक अपराध शाखा के इंचार्ज रहे।
उनके बाद निरीक्षक हितेंद्र सिंह ने 19 जून 2025 तक कार्यभार संभाला। पर्यवेक्षण स्तर पर भी कई अधिकारी बदलते रहे।
शुरुआत में एसीपी मनप्रीत सिंह (आइपीएस) ने 18 फरवरी 2025 तक निगरानी की। इसके बाद एसीपी विक्रम नेहरा (एचपीएस) को जिम्मेदारी मिली, लेकिन उनके प्रशिक्षण पर जाने के दौरान (दो अप्रैल से दो मई 2025 तक) एसीपी सुरेंद्र सिंह (एचपीएस) को लिंक अधिकारी बनाया गया।
बाद में विक्रम नेहरा ने फिर से कार्यभार संभाला। डीसीपी स्तर पर भी तबादले हुए। डीसीपी हिमाद्री कौशिक (आइपीएस) तीन जून 2025 तक पदस्थापित रहीं। इसके बाद डीसीपी सृष्टि गुप्ता (आइपीएस) ने जिम्मेदारी संभाली।
पुलिस आयुक्त का कार्य भी इस दौरान दो अधिकारियों ने संभाला। पहले सीपी शिबास कविराज (आइपीएस) ने एक नवंबर 2024 तक अतिरिक्त प्रभार संभाला।
उसके बाद सीपी राकेश कुमार आर्या (आइपीएस) 23 अप्रैल 2025 तक पदस्थापित रहे। इसके बाद फिर से सीपी शिबास कविराज (आइपीएस) को जिम्मेदारी मिली।
कोर्ट ने सूची में शामिल पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करते हुए केवल पंचकूला की वर्तमान डीसीपी सृष्टि गुप्ता को छोड़ दिया।
कोर्ट ने कहा कि सृष्टि गुप्ता ने चार जून को पदभार ग्रहण किया और उनके कार्यकाल में 15 दिनों के भीतर ही एफआइआर दर्ज कर दी गई थी।
हाई कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इस मामले में अलग से याचिका दर्ज कर इसे चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए ताकि संबंधित पुलिस अधिकारियों पर उचित कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।
ईडी की छापेमारी में बचने के लिए हुई थी करोड़ों की डील
शिकायतकर्ता मलकीयत सिंह ने आरोप लगाया था कि 23 जनवरी 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी के बाद मोहाली के एक विधायक कुलवंत सिंह के पीए बताए जाने वाले तरनजीत सिंह और उसके साथी सरवजीत सिंह उनके पास पहुंचे।
उन्होंने परिवार को यह झांसा दिया कि यदि वे एक करोड़ रुपये अदा कर दें तो ईडी की कार्रवाई रुक जाएगी। परिवार ने दबाव में आकर 50-50 लाख रुपये अंबाला और मोहाली में आरोपितों को सौंप दिए।
इसके बाद दोनों ने परिवार से अतिरिक्त आठ करोड़ रुपये की मांग की और धमकाया कि पैसा नहीं देने पर गिरफ्तारी और जान से मारने तक की साजिश रच दी जाएगी।
शिकायत 23 अक्टूबर 2024 को दर्ज करवाई गई थी, लेकिन पुलिस ने इसे करीब आठ माह तक दबाए रखा और आखिरकार 19 जून 2025 को पंचकूला के चंडीमंदिर थाने में एफआइआर दर्ज की गई। इसमें धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात की धाराएं लगाई गईं।
इस मामले में आरोपित सरवजीत सिंह उर्फ गैरी और तरनजीत सिंह उर्फ तरुण ने अग्रिम जमानत की याचिकाएं दायर की थीं।
जस्टिस गोयल की बेंच ने माना कि एफआइआर में आरोप स्पष्ट और प्रत्यक्ष हैं। इस तरह के आर्थिक अपराध में कस्टोडियल इंटरोगेशन (हिरासत में पूछताछ) आवश्यक है ताकि पूरे षड्यंत्र का खुलासा हो सके।
अदालत ने कहा कि अग्रिम जमानत असाधारण परिस्थिति में ही दी जा सकती है, जबकि यहां आरोपियों की भूमिका प्रथम दृष्टया बेहद गंभीर है।
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