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    लॉ पाठ्यक्रम में EWS की 10% आरक्षण की मांग खारिज, हाई कोर्ट ने कहा- 'रिजर्वेशन नीतिगत फैसला, न्यायिक दखल का औचित्य नहीं'

    Updated: Sat, 01 Nov 2025 02:00 AM (IST)

    पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट उच्च न्यायालय ने लॉ पाठ्यक्रम में ईडब्ल्यूएस के लिए 10% आरक्षण की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि आरक्षण ...और पढ़ें

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    पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के विधि विभाग में एलएलबी (तीन वर्षीय) पाठ्यक्रम के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि आरक्षण देना या न देना पूरी तरह नीतिगत निर्णय है, जिसमें न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं।

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    यह याचिका पंजाब के पठानकोट निवासी पुनीत सिंह ने दाखिल की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय ने एलएलबी 2025-2028 सत्र की प्रवेश प्रक्रिया में ईडब्ल्यूएस श्रेणी को शामिल नहीं किया, जिससे संवैधानिक और कार्यकारी दोनों स्तरों पर निर्धारित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ।

    आवेदन प्रक्रिया के दौरान जब उन्होंने ईडब्ल्यूएस श्रेणी का विकल्प नहीं देखा तो उन्होंने कई बार ईमेल भेजकर विश्वविद्यालय से आग्रह किया कि आवेदन फार्म और विवरणिका में यह श्रेणी जोड़ी जाए।

    इसके जवाब में विश्वविद्यालय की ओर से ईमेल मिला कि आवेदन फार्म में अब बदलाव संभव नहीं है, लेकिन प्रवेश के समय ईडब्ल्यूएस वर्ग पर विचार किया जाएगा।
    इस भरोसे के आधार पर उन्होंने आवेदन शुल्क जमा कर परीक्षा दी और परिणाम में सफल भी हुए, परंतु आरक्षण का लाभ न मिलने के कारण उन्हें प्रवेश नहीं मिल सका।

    पुनीत सिंह ने दलील दी कि विश्वविद्यालय की यह निष्क्रियता संवैधानिक चूक है, जिससे उन्हें कानूनी शिक्षा और करियर में आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल सका। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रोहित कपूर की खंडपीठ ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने का प्रश्न राज्य सरकार की नीति से जुड़ा विषय है।

    जब तक इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, तब तक किसी अलग दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार, हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने का निर्णय केवल नीति-निर्माण के दायरे में आता है, न कि न्यायिक समीक्षा के।