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    अनुसूचित जाति के व्यक्तियों पर नहीं लगा सकते SC-ST एक्ट, जमानत पर सुनवाई को लेकर हाईकोर्ट की टिप्पणी

    Updated: Wed, 29 Jan 2025 03:44 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (एससी/एसटी एक्ट) के प्रावधान केवल उन व्यक्तियों पर लागू होते हैं जो एससी/एसटी समुदाय से संबंधित नहीं हैं। इस मामले में अपीलकर्ता स्वयं एससी समुदाय के थे इसलिए उनके खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के प्रावधान लागू नहीं हो सकते थे।

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    एससी/एसटी वर्ग के सदस्यों के खिलाफ नहीं लगाया जा सकता है। हाईकोर्ट

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी एक्ट) के तहत अग्रिम जमानत प्रदान करते हुए स्पष्ट किया कि इस अधिनियम के परविधान केवल उन व्यक्तियों पर लागू होते हैं, जो एससी/एसटी समुदाय से संबंधित नहीं होते।

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    जस्टिस मनीषा बत्रा ने कहा, अपीलकर्ता अवतार सिंह और जगसीर सिंह स्वयं अनुसूचित जाति समुदाय के हैं। इसलिए अधिनियम, 1989 के परविधान के उनके खिलाफ लागू नहीं हो सकते, क्योंकि यह केवल गैर-एससी/एसटी व्यक्तियों पर ही लगाया जा सकता है।

    क्या है पूरा मामला?

    मामला अधिनियम की धारा 14-ए के तहत दायर एक अपील से जुड़ा है, जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता के तहत और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3 के तहत श्री मुक्तसर साहिब में एफआईआर दर्ज की गई थी।

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    आरोप था कि अपीलकर्ताओं ने शिकायतकर्ता की जाति को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की और एक समूह पर डंडों से हमला किया। अपीलकर्ताओं के वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर की सामग्री से यह स्पष्ट होता है कि किसी भी प्रकार की चोट अपीलकर्ताओं से जोड़कर नहीं बताई गई है।

    नहीं की थी जातिसूचक टिप्पणी

    कोर्ट ने सुनवाई के बाद यह पाया कि एफआईआर में अपीलकर्ताओं का नाम होने के बावजूद, किसी भी व्यक्ति को चोट पहुंचाने का आरोप नहीं है। कोर्ट ने देखा कि एफआईआर में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि अपीलकर्ताओं ने शिकायतकर्ता के खिलाफ जातिसूचक टिप्पणी की।

    हाईकोर्ट ने शाजन स्केरिया बनाम केरल राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट पर यह दायित्व होता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि अभियुक्तों को बिना किसी अनावश्यक अपमान का सामना न करना पड़े। जस्टिस बत्रा ने कहा कि अदालतें यह जांचने से नहीं बच सकतीं कि क्या शिकायत/एफआईआर में उल्लिखित तथ्यों से एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध की आवश्यक शर्तें पूरी होती हैं।

    अपीलकर्ताओं शर्तों के साथ मिली अग्रिम जमानत

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि आरोपों से एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध की आवश्यक शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो केवल आरोप के आधार पर धारा 18 के तहत जमानत पर रोक नहीं लगाई जा सकती। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और अपीलकर्ताओं को कुछ शर्तों के साथ अग्रिम जमानत दे दी।

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