रोजमर्रा की नोकझोंक, साधारण वैवाहिक झगड़े तलाक का आधार नहीं : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि पति-पत्नी के बीच मामूली झगड़े तलाक का आधार नहीं हो सकते। अदालत ने स्पष्ट किया कि तलाक के लिए क्रूरता को गंभीर होना चाहिए जिससे वैवाहिक जीवन हानिकारक लगे। अदालत ने पत्नी की याचिका खारिज की क्योंकि वह दहेज और मारपीट के आरोप साबित करने में विफल रही। उच्च न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि पति-पत्नी के बीच साधारण झगड़े, तुनकमिजाजी, रोजमर्रा की नोकझोंक या मतभेद को क्रूरता नहीं माना जा सकता और न ही ऐसे आधार पर तलाक दिया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि क्रूरता वही मानी जाएगी जो इतनी गंभीर हो कि पीड़ित पक्ष को यह उचित आशंका हो जाए कि वैवाहिक जीवन जारी रखना उसके लिए हानिकारक या असंभव है।
यह फैसला जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस दीपिंदर सिंह नलवा की खंडपीठ ने सुनाया। जस्टिस नलवा ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की मांग तभी स्वीकार की जा सकती है जब आचरण इतना गंभीर हो कि सहजीवन संभव न रह जाए। उन्होंने यह भी कहा कि अधिनियम की धारा 23(1)(ए) का उद्देश्य यही है कि कोई भी पति या पत्नी अपने ही गलत आचरण का लाभ उठाकर अदालत से राहत न ले सके।
मामला उस पत्नी से जुड़ा था जिसने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी। फैमिली कोर्ट ने उसकी तलाक याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि पति पर लगाए गए मानसिक और शारीरिक क्रूरता के आरोप प्रमाणित नहीं हो सके।
पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति ने दहेज के रूप में कार मांगी और कई बार मारपीट की, जिससे उसकी नाक की हड्डी तक टूट गई और उसे पानीपत के सिविल अस्पताल में इलाज कराना पड़ा।
फैमिली कोर्ट ने साक्ष्यों की पड़ताल के बाद पाया कि दहेज मांगने के आरोप मनगढ़ंत और झूठे थे। वहीं, चोट और मारपीट के दावों को साबित करने के लिए पत्नी कोई मेडिकल दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकी। इसके उलट, पत्नी ने अपनी जिरह में स्वयं स्वीकार किया कि उसकी आंख बचपन से ही टेढ़ी थी और बाएं नेत्र की दृष्टि भी कमजोर थी।
मेडिकल रिकॉर्ड से भी यह साबित हुआ कि पत्नी का इलाज पति ने ही एम्स, दिल्ली में करवाया था। इससे अदालत को यह निष्कर्ष मिला कि चोट और बीमारी के आरोप वास्तविकता से मेल नहीं खाते।हाईकोर्ट ने कहा कि तलाक का आधार बनने वाली क्रूरता शारीरिक भी हो सकती है और मानसिक भी। हालांकि, इसके लिए हर मामले को उसकी गंभीरता और संदर्भ में परखा जाना ज़रूरी है।
सामान्य मतभेद या छोटे-मोटे झगड़े दांपत्य जीवन का हिस्सा होते हैं और इन्हें तलाक का कारण नहीं माना जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि तलाक की राहत उन्हीं पक्षों को दी जानी चाहिए जो अदालत के सामने स्वच्छ हाथों से आए हों और जिन्होंने विवाह टूटने में खुद योगदान न दिया हो।
पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप जब साबित नहीं हुए और उसके स्वयं के आचरण में भी कमियां पाई गई तो वह तलाक की हकदार नहीं ठहराई जा सकती। आखिर में अदालत ने दोहराया कि “तलाक चाहने वाला पक्ष अपने ही गलत आचरण से लाभ नहीं ले सकता और इसे आधार बनाकर राहत नहीं मांग सकता।” इसी आधार पर हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
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