सेवानिवृत्त कर्मचारी की पेंशन रोकने के पंजाब सरकार के आदेश पर हाई कोर्ट कुछ ऐसा कहा...
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को सेवानिवृत्त कर्मचारी की पेंशन रोकने पर फटकार लगाते हुए 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ कर्मचारी का अधिकार है जो उनके सम्मानजनक जीवन यापन को सुनिश्चित करता है। सेवानिवृत्ति के बाद 14 साल पुराने आरोपों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करना नियमों का उल्लंघन है। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि सेवानिवृत्त कर्मचारी की पेंशन लाभों को रोके रखना “कानून का घोर उल्लंघन” है। कोर्ट ने सरकार पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है और यह राशि 30 दिनों के भीतर याचिकाकर्ता को अदा करने का आदेश दिया है।
मामला एक सेवानिवृत्त डिवीजनल इंजीनियर का है, जिनके खिलाफ सेवानिवृत्ति के बाद 14 साल पुराने आरोपों को लेकर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई थी। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने स्पष्ट किया कि पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ कर्मचारी का अधिकार है, जो उसकी गरिमापूर्ण जीवन यापन सुनिश्चित करता है।
इन लाभों में देरी करना न केवल अनुचित है बल्कि यह कर्मचारी के मौलिक अधिकारों का भी हनन है।कोर्ट ने कहा कि 28 अप्रैल को जारी चार्जशीट, याचिकाकर्ता की 29 फरवरी 2024 को हुई सेवानिवृत्ति के एक साल से भी ज्यादा समय बाद दी गई, जबकि नियम साफ कहते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद चार साल से पुराने मामलों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि सेवानिवृत्ति लाभ किसी प्रकार की कृपा नहीं बल्कि कर्मचारी की वर्षों की सेवा का वैधानिक अधिकार है। अक्सर ये लाभ ही सेवानिवृत्त कर्मचारियों और उनके परिवारों का एकमात्र सहारा होते हैं।
राज्य द्वारा इन्हें रोके रखना उनके जीवन यापन और अस्तित्व पर सीधा प्रहार है। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त "जीवन के अधिकार" का उल्लंघन माना और कहा कि एक कल्याणकारी राज्य का दायित्व है कि वह सेवानिवृत्त कर्मचारियों और उनके परिजनों को सम्मानजनक जीवन यापन हेतु समय पर पेंशन और लाभ उपलब्ध कराए।
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