लॉरेंस बिश्नोई साक्षात्कार मामले में बर्खास्त DSP गुरशेर की याचिका पर पंजाब सरकार को नोटिस, SIT से मांगा जवाब
लॉरेंस बिश्नोई इंटरव्यू मामले में बर्खास्त डीएसपी गुरशेर सिंह संधू की याचिका पर हाईकोर्ट ने पंजाब के गृह सचिव से जवाब तलब किया है। संधू ने एफआईआर में कार्रवाई को चुनौती दी है और रिकॉर्ड तलब करने की मांग की है। उन्होंने एडीजीपी द्वारा जारी नोटिसों को भी अवैध बताया है। संधू ने सुप्रीम कोर्ट में लंबित कार्यवाही का हवाला देते हुए दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने का आग्रह।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। लारेंस बिश्नोई साक्षात्कार मामले में बर्खास्त डीएसपी गुरशेर सिंह संधू द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पंजाब के गृह सचिव व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (प्रोविजनिंग)-सह-विशेष जांच दल के सदस्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया है कि एफआईआर में उनके खिलाफ की जा रही कार्रवाई को गैरकानूनी करार देते हुए तत्काल प्रभाव से रोका जाए।
याचिकाकर्ता ने याचिका में आग्रह किया है कि 5 जनवरी 2024 पंजाब स्टेट क्राइम पुलिस स्टेशन, फेज 4 एसएएस नगर में एफआईआर दर्ज होने से पहले और उसके बाद की पूरी रिकार्ड फाइल जिसमें केस डायरी, पत्राचार, सामग्री, नामांकन संबंधित दस्तावेज आदि शामिल हैं तलब की जाए, ताकि स्पष्ट हो सके कि उन्हें इस एफआईआर में कैसे और क्यों नामजद किया गया।
याचिका में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (प्रोविजनिंग)-सह-विशेष जांच दल के सदस्य, द्वारा जारी किए गए दो नोटिस जो 21 मई 2025 और दिनांक 23 मई 2025 को जारी किए गए को चुनौती दी गई है। इन नोटिसों के जरिए याचिकाकर्ता को उपस्थित होने के लिए कहा गया था, जो अब याचिकाकर्ता के अनुसार भारतीय विधि के तहत अमान्य हैं।
गुरशेर सिंह संधू का तर्क है कि यह समस्त कार्यवाही न केवल लंबित सुप्रीम कोर्ट कार्यवाही के दौरान की गई है, बल्कि यह भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की आत्मा के भी विरुद्ध है। उन्होंने अदालत से निवेदन किया है कि इन नोटिसों को अविलंब रद्द किया जाए और राज्य सरकार तथा पुलिस को उनके विरुद्ध कोई भी जबरदस्ती या दंडात्मक कार्रवाई करने से रोका जाए।
याचिका में यह भी आग्रह किया गया है कि अदालत अंतरिम राहत के रूप में एफआईआर तहत उनके खिलाफ की जा रही समस्त कार्यवाही पर स्थगन लगाए तथा उपरोक्त नोटिसों के प्रभाव और संचालन पर रोक लगाए। साथ ही याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई भी दमनात्मक या दंडात्मक कार्रवाई न की जाए, जब तक कि न्यायालय इस याचिका पर अंतिम निर्णय नहीं दे देता।
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