हीमोफीलिया के मरीजों का इलाज नहीं, सरकारी अस्पतालों में टीकों की कमी पर हाईकोर्ट सख्त; नायब सरकार से मांगा जवाब
हरियाणा में हीमोफीलिया से जूझ रहे मरीजों को सरकारी अस्पतालों में इंजेक्शन नहीं मिल रहे हैं। जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सरकार को 10 दिन में जवाब देने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता ने बताया कि यह एक आनुवंशिक रक्त विकार है जिसके इलाज के लिए मुफ्त इंजेक्शन की व्यवस्था होनी चाहिए लेकिन राज्य के अस्पतालों में इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में हीमोफीलिया जैसी गंभीर और जानलेवा बीमारी से जूझ रहे 900 से अधिक मरीजों को सरकारी अस्पतालों में जरूरी इंजेक्शन तक नहीं मिल पा रहे हैं।
इस स्थिति को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार को 10 दिन के भीतर उचित कदम उठाकर जवाब दायर करने का आदेश दिया।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान याची के वकील ने इस मामले में कोर्ट के नोटिस के बाद भी कोई उचित कार्रवाई नहीं होने की कोर्ट को जानकारी दी।
चीफ जस्टिस शील नागु और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने सरकार को जवाब दायर करने को कहा है। याचिका दाखिल करते हुए पलवल निवासी विकास शर्मा ने हाईकोर्ट को बताया कि हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर में रक्त का थक्का जमने पर समस्या होती है।
चोट लगने या सर्जरी के बाद रक्त का थक्के से आंतरिक रक्तस्राव का खतरा बढ़ जाता है। इस रोग से पीड़ित लोगों को मुफ्त इलाज देने के लिए सरकार नीति भी लेकर आई थी। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को एक इंजेक्शन लगाना पड़ता है जो एंटी हीमोफीलिया डोज होती है।
याची ने बताया कि बाजार में इसकी कीमत करीब 12 हजार रुपये हैं। याची ने हाईकोर्ट को बताया कि राज्य के अधिकतर जिला अस्पतालों में यह इंजेक्शन उपलब्ध ही नहीं है। इतना महंगा इंजेक्शन कैसे कोई गरीब आदमी बाजार से खरीद कर लगातार लगवा सकता है।
याचिका में सरकार पर मुफ्त इलाज की जिम्मेदारी से बचने का आरोप लगाया गया है। कोर्ट को बताया गया कि यह कोई एक बार की दवा नहीं है। कोर्ट से अपील की गई कि इस गंभीर मुद्दे पर राज्य को ध्यान देने के लिए उचित आदेश जारी किए जाएं।
कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए हरियाणा सरकार को याचिका पर नोटिस जारी कर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।
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