हत्या और फिरौती के दोषी कैदी की फरलो याचिका खारिज, अदालत ने समाज की सुरक्षा का दिया हवाला
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि हत्या और फिरौती के मामलों में उम्रकैद की सजा काट रहे कैदियों को फरलो नहीं दी जा सकती। जस्टिस संदीप मौदगिल ने सोनू उर्फ अमर की याचिका खारिज की जिसने फरलो मांगी थी। कोर्ट ने कहा कि ऐसे कैदियों को फरलो देने से समाज की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और यह कैदी का अधिकार नहीं बल्कि एक रियायत है।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि हत्या और फिरौती जैसे जघन्य अपराधों में उम्रकैद की सजा काट रहे कैदियों को फरलो (अस्थायी रिहाई) का लाभ नहीं दिया जा सकता।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने सुनवाई के बाद कैदी सोनू उर्फ अमर की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने चार सप्ताह की फरलो मांगी थी।
सोनू उर्फ अमर के खिलाफ थाना गन्नौर, जिला सोनीपत में 26 दिसम्बर 2005 को एफआईआर दर्ज हुई थी, जिसमें हत्या, अपहरण, फिरौती मांगने, आपराधिक साजिश और सबूत मिटाने जैसी धाराएं शामिल थीं।
ट्रायल पूरा होने पर उसे आजीवन कारावास और 38,000 रुपये जुर्माना भुगतने की सजा सुनाई गई। उसकी अपील भी हाई कोर्ट ने 2012 में खारिज कर दी थी।
कैदी ने जेल अधीक्षक के समक्ष फरलो की मांग यह कहते हुए रखी कि उसने जेल में अच्छे आचरण से रिमिशन (सजा में छूट) अर्जित की है और वह अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करना चाहता है।
लेकिन सोनीपत जेल अधीक्षक ने 24 अप्रैल 2025 को उसका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हरियाणा गुड कंडक्ट प्रिज़नर्स (टेम्परेरी रिलीज़) एक्ट, 2022 की धारा 4(3) के तहत हत्या-फिरौती जैसे अपराधों में दोषी ठहराए गए कैदी फरलो के पात्र नहीं हैं।
राज्य सरकार की ओर से दाखिल जवाब में यह भी कहा गया कि कैदी पहले ही 16 बार पैरोल/फरलो पर बाहर जा चुका है, इसलिए अब उसे नए कानून के तहत राहत नहीं मिल सकती।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पैरोल और फरलो कैदी का अधिकार नहीं बल्कि एक रियायत है, जिसे परिस्थितियों और कानूनी परविधान के आधार पर दिया जा सकता है।
कानून में संशोधन के बाद नया नियम उसी दिन से सभी कैदियों पर लागू होता है, चाहे उनकी सज़ा पहले हुई हो या बाद में। कोर्ट ने कहा कि हत्या और फिरौती जैसे अपराधों में उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी को फरलो देने से समाज की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
कोर्ट ने साफ कहा कि सोनू उर्फ अमर “हार्डकोर प्रिजनर” की श्रेणी में आता है और कानून के मुताबिक उसे फरलो का लाभ नहीं दिया जा सकता।जस्टिस संदीप मौदगिल ने जेल अधीक्षक का आदेश बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी और कहा कि इस मामले में कोई राहत नहीं दी जा सकती।
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